मां ने बेचीं शराब बेटा बना IAS, कहानी जान कर सोच में पड़ जाएंगे आप

वो कहते हैं न जहां चाह वहां रहा होती है। अगर आपने अपने जीवन में कुछ करने का सोचा है तो वो उसे पाने के लिए अपनी सारी मेहनत लगा देता है।

Update: 2020-03-13 10:52 GMT

नई दिल्ली: वो कहते हैं न जहां चाह वहां रहा होती है। अगर आपने अपने जीवन में कुछ करने का सोचा है तो वो उसे पाने के लिए अपनी सारी मेहनत लगा देता है। अक्सर लोग अपने घर की हालात देख कर अपनी हालत सुधारने का सोचते हैं। हम आपको ऐसे ही एक होनहार इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने गरीबी को मात दिया और आज IAS बन गए हैं। खबर महाराष्ट्र के धुले जिले के डॉ। राजेंद्र भारूड़ की है जिनकी मां घर में शराब बेचती थी और उनके घर में शराबियों का जमघट लगा होता था। इस माहौल के बीच राजेंद्र पढ़ाई की और IAS बने हैं।

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आज राजेद्र की कहानी सभी के लिए एक है, जो हर चीज के लिए सुविधाएं नहीं होने का जिक्र करते हैं। डॉ। राजेंद्र भारूड ने अपने जीवन में बेहद संघर्ष किया और कलेक्टर बने है। उन्होंने ऐसे महौल में रहकर पढ़ाई की है, जहां पढ़ाई-लिखाई की बात करना भी बेमानी है।

इसलिए मां को बेचनी पड़ी शराब

उन्होंने एक मीडिया को बताया कि 'मैं गर्भ में था, तभी पिता गुजर गए थे । इसलिए पिता को देखने का सौभाग्य नहीं मिल पाया। इसके बाद घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। समय ऐसा आया कि एक वक्त का खाना भी मुश्किल से जुट पाता था। गन्ने के खरपतवार से बनी एक छोटी सी झोपड़ी में हमारा 10 लोगों का परिवार रहता था। गरीबी में कुछ काम ऐसा नहीं दिखा, जिससे कि घर का खर्च चल सके। इसलिए मां को शराब बेचनी पड़ी। राजेंद्र ने बताया कि मैं महाराष्ट्र के धुले जिले के आदिवासी भील समाज से हूं।'

उन्होंने कहा बचपन से मैंने कई तरह के दुख-दर्द देखे हैं। मेरे चारों तरफ अज्ञान, अंधविश्वास, गरीबी, बेरोजगारी और भांति-भांति के व्यसनों का दंश था। मां कमलाबहन मजदूरी करती थीं। 10 रु। मिलते थे। इससे जरूरतें पूरी नहीं होती थी। इसलिए मां ने देसी शराब बेचनी शुरू की।

घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर की पढ़ाई

राजेंद्र ने बताया कि सर्दी-खांसी हो तो दवा की जगह दारू मिलती थी। जब मैं चौथी कक्षा में था, घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर पढ़ता था। लेकिन, शराब पीने आने वाले लोग कोई न कोई काम बताते रहते थे। पीने वाले लोग स्नैक्स के बदले पैसे देते थे। उसी से किताबें खरीदता था।

राजेंद्र ने बताया कि उन्होंने 10वीं 95% अंकों के साथ पास की। 12वीं में 90% लाया। इसके साथ ही 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठा। ओपन मेरिट के तहत मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।2011 में कॉलेज का बेस्ट स्टूडेंट बना। उसी साल UPSC का फॉर्म भरा और कलेक्टर भी बना। लेकिन, मेरी मां को पहले कुछ पता नहीं चला। जब गांव के लोग, अफसर, नेता बधाई देने आने लगे तब उन्हें पता चला कि राजू कलेक्टर की परीक्षा में पास हो गया है। इस पर मां सिर्फ रोती रही।

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लोग कहते थे- लड़का भी शराब बेचेगा

राजेंद्र ने बताया कि 'शराब पीने घर आने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि लड़का पढ़-लिखकर क्या करेगा? अपनी मां से कहना कि लड़का भी शराब ही बेचेगा। भील का लड़का भील ही रहेगा। मैंने ये बात मां को बताई। तब मां ने संकल्प किया कि बेटे को डॉक्टर-कलेक्टर बनाऊंगी। लेकिन, वह नहीं जानती थी कि यूपीएससी क्या है? लेकिन, मैं इतना जरूर मानता हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं, मां के विश्वास की बदौलत ही हूं।'

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