Narmada-Ganga Pollution Causes: खतरे में नर्मदा और गंगा, लाखों के जीवन को चुनौती

Narmada-Ganga Water Pollution Causes: अनंत काल से बहती चली आ रही नर्मदा को मांस मदिरा की छाया से बचाने की पहल अब जा कर की गई, ये बहुत बड़ी बात है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2024-09-18 09:15 IST

Narmada-Ganga Water Pollution Causes

Narmada-Ganga Pollution Causes: हम प्रकृति पूजक लोग हैं। नदी, पहाड़, वृक्ष, सूर्य, चन्द्रमा सब कुछ हमारे लिए पूजक हैं। दुनिया में हम नायाब हैं। दुनिया में इस तरह की आस्था अन्यत्र कहीं और नहीं है। नदियां तो खासकर हमारी आराध्य हैं। गंगा को तो हमने मां कहा है। नर्मदा को तो शिव जी की पुत्री माना गया है। हमारी सभ्यता भी नदियों के किनारे ही विकसित हुई है।

हमारी पूजा और आस्था के क्रम में अब मध्य प्रदेश में नर्मदा के बारे में एक नई फिक्र सामने आई है। नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश से है सो यह महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश की सरकार अपने प्रदेश में नर्मदा के पूरे रास्ते में उसके किनारे पड़ने वाले शहरों, कस्बों और गांवों में शराब और मांसाहार जैसी चीजों पर पाबंदी लगाने का इरादा लेकर सामने आई है।

इरादा नर्मदा की पवित्रता को सहेजने का है। दक पवित्र नदी के किनारे मांस और मदिरा का उपभोग अब नहीं चलेगा। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के अमरकंटक से शुरू होकर खंभात की खाड़ी में मिलने वाली 1312 किलोमीटर लंबी नर्मदा नदी मध्य प्रदेश में 1079 किलोमीटर तक फैली हुई है। नर्मदा नदी के किनारे इस प्रदेश के 21 जिले, 68 तहसील और 1126 घाट हैं। इस फैसले का असर उन सभी इलाकों पर पड़ेगा जिन्हें धार्मिक स्थल माना जाता है।

नर्मदा की चिंता

नर्मदा की इतनी चिंता याद नहीं पड़ता किसी सरकार ने पहले कभी की है। अनंत काल से बहती चली आ रही नर्मदा को मांस मदिरा की छाया से बचाने की पहल अब जा कर की गई, ये बहुत बड़ी बात है। अभी तलक तो हम सिर्फ मां गंगा की फिक्र ही करते रहे थे। उसे साफ, निर्मल बनाने में जुटे हुए थे। आज भी लगे हुए हैं। आखिर, गंगा करीब 40 करोड़ की आबादी का भरण-पोषण करती जो है।


हम तो गंगा को दशकों पहले से यानी सन 1980 के दशक से ही स्वच्छ निर्मल बनाने में लगे हुए हैं। गंगा के किनारे बसे 97 शहरों में मदिरा, मीट के बारे में हम नहीं कुछ कह सकते लेकिन इतना जरूर पता है कि इन्हीं शहरों से 2,953 मिलियन लीटर सीवेज निकलता है, और हर रोज़ गंगा की मुख्य धारा में बहता है।


इसी को खत्म करने के लिए 1985 में ‘मिशन क्लीन गंगा’ शुरू किया गया और हमने अपने पेट काट कर बेशुमार पैसा गंगा मइया की निर्मलता के लिए बहा दिया। कितना बहाया, इसका एक अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि सन 2014 से अब तक नमामि गंगे प्रोजेक्ट में 40 हजार करोड़ रुपए हमने खर्च किये हैं। सन 85 से 14 तक का हिसाब आप खुद जोड़ लें।

मैली नदियाँ

हमने गंगा के किनारे कंस्ट्रक्शन, शौच करने, कपड़े धोने, प्लास्टिक, कचरा वगैरह सब चीजों पर बैन लगा रखा है। इतनी फिक्र और गंगा आरती, गंगा स्नान, गंगा जल के बावजूद गंगा सबसे प्रदूषित नदियों में शुमार बनी हुई है। गंगा ही क्यों, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2018 में बताया था कि भारत में 351 नदियां मैली हैं।


प्रकृति प्रेम हमारा ऐतिहासिक है। पीपल बरगद की पूजा हम करें, नदियों की पूजा हम करें, पहाड़ों की पूजा हम करें, लेकिन ये कैसी पूजा की पूज्य के सिर पर ही अपना सब कचरा डाल जर हाथ झाड़ कर चलते बनें। पेड़ पूज्य हैं ।लेकिन उन्हें काटने, बर्बाद करने में एक क्षण हिचक नहीं होती। नदियां पूज्य हैं । लेकिन जिसे देखो वही प्लास्टिक की पन्नी में भर कर पूजा के बाद की बची चीजों को उन्हीं नदियों में डाल कर हाथ जोड़ कर निकल लेता है। पहाड़ पूज्य हैं । लेकिन हर पहाड़ में और कुछ मिले न मिले, शराब की बोतलें, प्लास्टिक कचरा, कागज कूड़ा बहुतायत से मिल जाएगा। पहाड़ों का मज़ा लेने वाले तो बहुत हैं । लेकिन इस मज़े में पहाड़ों को कितनी सज़ा मिल रही है उसका अंदाज़ा होते हुए भी सब नादान बने हुए हैं। हालात ऐसे बन चुके हैं कि लगता है पहाड़ ही मिट्टी में मिल जाएंगे। यही हाल पेड़ों व जंगलों का है।

अजीब सी बात है। जिन नस्लों, जिन मुल्कों के लिए नदियां - पहाड़ पूज्य नहीं बल्कि सिर्फ सामान्य नदी पहाड़ हैं वहां ये निर्मल, साफ और बेदाग बने हुए हैं। हम पूजक भी हैं और उन्हीं के बर्बादक भी। शायद इसीलिए हमने ये मुहावरा गढ़ा है : जिस थाली में खाना उसी में छेद करना। मुहावरा पुराना हो चला था सो अब छेद को हमने कुआं कर दिया है।

बढ़ता ख़तरा

नर्मदा को मीट मदिरा से मुक्ति के लिए चिंता तो जायज है लेकिन जिस अमरकंटक में ये नदी शुरू होती है वहीं इसके प्राकृतिक स्रोत अस्तित्व के खतरे में हैं। जो अमरकंटक सन अस्सी में मात्र दो हजार की आबादी वाला था, यवहां अब सालाना 5 - 7 लाख तीर्थयात्रियों का आना जाना होता है। जहां पहले घने जंगल हुआ करते थे और छोटी छोटी कई धाराएं थीं वो खत्म होती जा रही हैं।


नदियों - पहाड़ों - जंगलों की बातें तो खूब होती हैं, होती रहीं हैं और आगे भी होती रहेंगी। नदी तीरे मीट - मदिरा से लेकर नित्य कर्म और प्लास्टिक तक बैन लगते रहेंगे। नर्मदा परिक्रमा होती रहेगी। अमरकंटक में आश्रम और धर्मशालाएं बढ़ती जाएंगी। पुण्य कमाने वाले तीर्थयात्रियों की भीड़ बढ़ती जाएगी। पिकनिक करने वालों और रील बना कर मौज लेने वालों की तादाद कम नहीं होएगी। नर्मदा हो या कृष्णा या गंगा या युमना, सब यूँ ही हमारी आस्था में बनी रहेंगी और हम भी उन्हें उतनी ही शिद्दत और आस्था से भरपूर गंदा करते रहेंगे।

बात नदियों, पहाड़ों, जंगलों तक ही सीमित नहीं है। ये नज़रिए और व्यवहार की बात है। तभी तो नारी की पूजा के बारे में लिखे : "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" के बावजूद आज कोलकाता में नारी सम्मान की लड़ाई लड़ने वाले धक्के खा रहे हैं।

(लेखक पत्रकार हैं।)

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