राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: ये है वो शख्सियत जिसने आजाद भारत को बताया शिक्षा का महत्व

11 सितंबर 2008 को केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया था। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 15 अगस्त 1947 से 02 फरवरी 1958 तक बतौर शिक्षा मंत्री अपना कार्यभार संभाला था।

Update: 2020-11-11 03:57 GMT
11 सितंबर 2008 को केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया था।

लखनऊ: स्कूल प्रयोगशालाएं है, जहां भावी नागरिकों का उत्पादन किया जाता है। ये कहना था आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का। उनका जन्म 11 नवंबर 1888 को सउदी अरब के मक्का में हुआ था। उनकी जयंती के अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके कार्यों को स्मरण करने और उनको श्रद्धाजंलि देने के लिए देश में हर साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इसकी शुरूआत वर्ष 2008 में तब हुई थी, जब तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने इसकी घोषणा की थी। इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए शिक्षा और व्यक्ति को साक्षर बनाने को लेकर जन जागरूकता फैलाई जाती है।

इस दौरान शिक्षा मंत्री रहे अबुल कलाम आजाद

11 सितंबर 2008 को केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया था। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 15 अगस्त 1947 से 02 फरवरी 1958 तक बतौर शिक्षा मंत्री अपना कार्यभार संभाला था।

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इस दौरान उनकी पहल पर ही संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी का गठन हुआ। वर्ष 1956 में उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी की स्थापना की। उन्होंने शिक्षा मंत्री रहते हुए सूचना एवं तकनीक के क्षेत्र की शिक्षा पर ध्यान दिया और इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी का गठन करवाया। उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने के साथ ही देश में मुफ्त शिक्षा के लिए भी काफी काम करते हुए देश में 14 साल तक के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने की शुरूआत की।

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कांग्रेस के साथ आजादी की आंदोलन से जुडे़

शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों के अलावा मौलाना आजाद का झुकाव राजनीति की ओर ज्यादा था और वह एक अच्छे पत्रकार थे। उन्होंने युवाओं को क्रांति से जोड़ने के लिए उर्दू की साप्ताहिक पत्रिका अल हिलाल भी निकाली थी। इसके साथ ही देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी योगदान था। वह महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हो कर कांग्रेस के साथ आजादी की आंदोलन से जुडे़।

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जब देश में कांग्रेस की अगुवाई में आजादी की लड़ाई चल रही थी तब मौलाना आजाद ने भी इसमे सक्रिय भूमिका निभाई थी। वह महज 35 साल की उम्र में ही कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने थे।

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