Necrophilia: भारत में डेडबॉडी से रेप करना अपराध नहीं, जानें दूसरे देश में क्या हैं नेक्रोफिलिया के कानून
Necrophilia:नेक्रोफिलिया एक ऐसी हरकत है, जिसमें अपराधी को मृत शरीर के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट बनाया जाता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के कानूनों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसे अपराध बनाने की सिफारिश की है।
Necrophilia: यह आपके लिए चौंकाने वाला बात हो सकता है लेकिन नेक्रोफीलिया को भारत में बलात्कार नहीं माना जाता है। भारत का कानून नैक्रोफिलिया का जिक्र ही नहीं करता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि किसी मृत शरीर का यौन उत्पीड़न भारतीय दंड संहिता के तहत रेप या अननैचुरल अपराध के दायरे में नहीं आता है।
नेक्रोफिलिया क्या है?
नेक्रोफिलिया एक पैराफिलिया है जिसमें अपराधी मृतकों(डेडबॉडी) के साथ यौन संबंध बनाने जैसे जघन्य अपराध से आनंद प्राप्त करता है। नेक्रोफिलिया एक "साइकोसेक्सुअल डिसऑर्डर(Psychosexual Disorder)" है जिसे DSM-IV (डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर) द्वारा "पैराफिलिया(Paraphilia" के रूप में पहचान किया गया है, जिसमें Pedophilia, Exhibitionism और Sexual mutilation शामिल हैं।
इन देशों में हैं नेक्रोफिलिया के कानून,
ब्रिटेन में डेडबॉडी के साथ किसी भी तरह का सेक्सुअल हैरेसमेंट करना या असाधारण शारीरिक क्रिया( inappropriate physical conduct ) कानूनी रूप से खिलाफ है इस मामले में दोषी ठहराए जाने पर छह महीने से लेकर दो साल तक जेल या जुर्माना हो सकता है। कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी नेक्रोफीलिया के खिलाफ कानून मौजूद है। कनाडा देश में तो नेक्रोफीलिया शब्द का यूज किए बिना यह मेंशन है कि मृत शरीर की गरिमा व अधिकार को नुकसान पहुंचाने पर ज्यादा से ज्यादा 5 साल की सजा का हवाला दिया जा सकता है। वहीं, न्यूजीलैंड में इस कानून को लेकर अधिकतम 2 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
मामला क्या है?
अदालत ने एक व्यक्ति को 25 वर्षीय महिला की हत्या करने के बाद रेप करने के आरोप में फैसला लेते हुए यह आदेश पारित किया। कोर्ट ने कहा कि "दुर्भाग्यवश भारत में कोई विशिष्ट कानून नेक्रिफिलिया से संबंधित नहीं बनाया गया है, जिसमें गरिमा को बनाए रखने और महिला के मृत शरीर के खिलाफ अधिकारों की रक्षा और अपराध के उद्देश्य से आईपीसी के प्रावधान शामिल हो" निचली अदालत ने संदिग्ध को हत्या और यौन शोषण का दोषी ठहराया था। व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहे कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आरोपी को हत्या के आरोप में दोषी ठहराने के आदेश को बरकरार रखा।
हत्या के आरोप में सजा
अपीलकर्ता को उसके घर से खून से सने हथियार और कपड़े मिलने के साथ-साथ आपत्तिजनक परिस्थितियों की व्याख्या करने में विफलता के आधार पर हत्या का दोषी पाया गया। अदालत ने फैसला लिया कि, "रिकॉर्ड के तर्ज पर सबूत स्पष्ट रूप से प्रमाणित करते हैं कि, वारदात की परिस्थितियों के आधार पर, अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से हटकर दलीले देकर बात साबित कर दिया है कि संदिग्ध मृतक की मानव हत्या का दोषी है।"
कोर्ट ने संविधान का क्या हवाला दिया?
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 376 के तहत महिला की डेड बॉडी से सेक्सुअल हैरेसमेंट का मामला कानूनी नहीं है। पुराने मामले की बात करे तो, उच्च न्यायालय ने जून 2015 में तुमकुरु जिले में एक 21 वर्षीय लड़की की गला रेतकर हत्या करने के बाद उसके शव का sexual harassment करने के आरोप में एक व्यक्ति को रेप के आरोप से बरी कर दिया।
न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और न्यायमूर्ति वेंकटेश नाइक की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने बताया कि एक मृत शरीर के साथ यौन उत्पीड़न नेक्रोफिलिया के बराबर है, लेकिन यह आईपीसी की धारा 375 और 377 के दायरे में नहीं आता है, यह कहा कि आईपीसी के धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं है।
बेंच ने कहा कि रेप जिंदा इंसान से होने पर अपराध है मृत शरीर से नहीं। अदालत ने कहा, "यह एक व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध किया जाने वाला अपराध है। एक मृत शरीर रेप के लिए न ही सहमति दे सकता है न ही विरोध कर सकता है, न ही वह तत्काल और गैरकानूनी फिजिकल हार्म के डर से रो सकता है। रेप के अपराध की अनिवार्यता(necessity) में व्यक्ति के प्रति गुस्से की भावनाएँ शामिल है।”
केंद्र सरकार से कानूनी रूप अपराध मानने की सिफारिश
कर्नाटक हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से नेक्रोफीलिया के खिलाफ कानून लाने की सिफारिश केंद्र सरकार से की है। अदालत ने कहा कि हालांकि, ऐसे अपराधों को दंडित करने के प्रावधान की आवश्यकता है और सिफारिश की, कि केंद्र सरकार भारतीय दंड संहिता में संशोधन करे और नेक्रोफिलिया को आपराधिक घोषित करे।
अदालत ने कहा, "केंद्र सरकार को मृतक के शरीर की गरिमा की रक्षा के लिए आईपीसी के प्रावधानों में संशोधन करने की सिफारिश की जाती है ताकि व्यक्ति के जीवन के अधिकार की रक्षा सुनिश्चित हो सके, जिसमें उसके मृत शरीर का अधिकार भी शामिल है, जैसा कि धारा 21 के अनुच्छेद 21 के तहत विचार किया गया है। इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से 6 (छह) महीने की अवधि के भीतर भारत के संविधान में बदलाव किया जाए। ”
मुर्दाघर में नियमों को सख्त करने के आदेश
इसके अलावा, कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि महिला के मृत शरीर के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए हर सरकारी शवगृह और निजी अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। राज्य को ज्यादातर रूप से मुर्दाघर की स्वच्छता बनाए रखने, मुर्दाघरों में प्राइवेसी और सिक्योरिटी बनाए रखने के लिए, इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े बाधाओं को दूर करने और मुर्दाघर के कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने का आदेश सख्ती से दिया है।