अगर ये काम कर लें मोदी सरकार तो देश की जीडीपी बढ़कर हो जाएगी 10 फीसदी

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती के गर्त से बाहर आ चुकी है।

Update: 2020-02-27 09:13 GMT

नई दिल्ली: नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती के गर्त से बाहर आ चुकी है। अगले वित्त वर्ष में इसकी वृद्धि दर छह फीसदी रहने का अनुमान है, लेकिन 10 फीसदी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इसे दुनिया के लिए और खोलना होगा।

भारत के बजट 2020 पर चर्चा के दौरान पनगढ़िया ने कहा कि भारतीय विकास दर आने वाले समय में 7-8 फीसदी तक पहुंच जाएगी, जैसा कि पिछले 15-16 वर्षों से चलता आ रहा है। हालांकि, इसे 10 फीसदी के महत्वाकांक्षी स्तर तक पहुंचाने के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए और खोलना होगा।

भारत-अमेरिका रणनीतिक भागीदारी फोरम के साथ एक कार्यक्रम में अर्थशास्त्री ने कहा कि सुस्ती पर मेरा आकलन है कि अब हम इससे बाहर आ चुके हैं। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में सुधार के कई संकेत दिख रहे हैं। भारत 2003 से ही सात फीसदी की औसत दर से विकास कर रहा है और मोदी के पहले पांच साल के कार्यकाल में यह 7.5 फीसदी था।

उन्होंने कहा कि इस बजट की सबसे बड़ी खामी आयात को लेकर रक्षात्मक रवैया रहा। भारत पिछले दो-तीन साल से आयात का विकल्प तलाशने पर जोर दे रहा है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा से पीछे हट रहा है। हमारे पास 50 करोड़ से भी ज्यादा की संख्या में श्रमशक्ति है और अगर इसका उत्पादन में इस्तेमाल नहीं कर सकते तो यह हमारे ढांचे की आधारभूत कमी है।

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एनपीए से निपटना आसान नहीं

पनगढ़िया ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने कई सुधार किए हैं। सुस्ती की सबसे बड़ी समस्या वित्तीय बाजार को लेकर थी, जिसने बैंकों के साथ कॉरपोरेट बैलेंसशीट को भी गड़बड़ा दिया था। हां, इस बात पर सरकार की आलोचना की जा सकती है कि उसने एनपीए से निपटने में देरी कर दी, जो 2013 में ही सामने आ गई थी।

बावजूद इसके एनपीए जैसी समस्या का जल्द समाधान कभी आसान नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि बजट में राजकोषीय घाटे पर नरम रुख, कॉरपोरेट टैक्स घटाना, आयकर प्रक्रिया सरल बनाना और निजीकरण जैसे कदम सराहनीय रहे हैं।

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