पटना : बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन में मचे घमासान के बीच जनता दल (युनाइटेड) भले ही भ्रष्टाचार के एक मामले में फंसे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से लगे आरोपों का तथ्यपूर्ण जवाब मांग रहा हो, लेकिन माना जाने लगा है कि नीतीश ने इसके जरिए नया सियासी दांव चला है। वैसे, नीतीश के सामने 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा है जबकि 2020 में बिहर विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य की कुर्सी बरकरार रखने की 'व्यावहारिकता' है।
माना जा रहा है कि नीतीश इन दोनों योजनाओं को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। वैसे बिहार की राजनीति में माना जाता रहा है कि नीतीश कुमार बिना रणनीति के राजनीति के बिसात पर कोई 'चाल' नहीं चलते।
बिहार में जारी सियासी संकट के बीच जहां राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद अपने बेटे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस्तीफे से साफ इनकार कर चुके हैं, वहीं नीतीश अपनी स्वच्छ छवि वाले 'चेहरे' को लेकर झुकने को तैयार नहीं हैं। हालांकि दोनों दलों के पास इस मामले को सुलझाने के लिए काफी समय है।
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बिहार की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले पटना के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि वैसे तो राजनीति में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता, लेकिन इस स्थिति में नीतीश को कोई नुकसान नहीं होने वाला है।
उन्होंने कहा कि नीतीश के लिए राजद के साथ गठबंधन तो चल ही रहा है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के दरवाजे भी खुले हैं।
किशोर का कहना है, "नीतीश स्वच्छ सरकार चलाने के लिए जाने जाते हैं, यह बात लालू प्रसाद भी जानते हैं। राजद हो या भाजपा, बिहार में आज की स्थिति में कोई भी बिना गठबंधन के बिहार में सरकार नहीं बना सकती। ऐसे में दोनों की नजर नीतीश कुमार पर है और नीतीश ने इसी को लेकर अपनी रणनीति बनाने के लिए समय ले लिया है।"
इधर, पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि जद (यू) के तेजस्वी से जवाब की मांग को लेकर वर्ष 2019 के लिए नीतीश कांग्रेस नीत संयुक्त प्रतिशील गठबंधन (संप्रग) पर भी दबाव बनाने की कोशिश में हैं। इस दबाव के तहत नीतीश विपक्ष गठबंधन से सम्मानजनक पद ले सकते हैं। अगर वह पद नहीं मिला तो वे आसानी से राजग की ओर हो जाएंगे, जो विपक्ष की एकजुटता को लेकर धक्का होगा।
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नीतीश यह भी जानते हैं कि इस बीच कानूनी दांव-पेंच में फंसे लालू परिवार पर भी अदालत से कोई न कोई फैसला आ जाएगा। इसके बाद नीतीश कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होंगे।
शुरू से ही राजद और जद (यू) का महागठबंधन के विषय में कहा जाता है कि यह गठबंधन एक-दूसरे के घुर विरोधी रहे नेताओं के बीच बना ऐसा गठबंधन है, जिसने विधानसभा चुनाव में राजग को करारी शिकस्त दी है। लेकिन, फिलहाल के कुछ महीनों में अपनी-अपनी विचारधारा को लेकर एक-दूसरे से जुबानी जंग की वजह से दोनों के बीच दूरी गहराती जा रही है।
संतोष सिंह भी कहते हैं, "नीतीश कुमार अकेले अपने दम पर चुनाव नहीं लड़ सकते, वे गठबंधन के साथ ही चुनाव जीत सकते हैं। वह गठबंधन भाजपा के साथ हो या राजद-कांग्रेस के साथ। अब अगर नीतीश को सत्ता में बने रहना है तो उन्हें मजबूत विपक्ष के लिए लालू से समझौता करना होगा या भाजपा के साथ जाना होगा।"
नीतीश ने इस जवाब मांग के जरिए कांग्रेस और राजद को भी आगे की रणनीति पर सोचने के लिए मैाका दे दिया है। सिंह हालांकि यह भी कहते हैं कि नीतीश अपनी स्वच्छ छवि से कभी समझौता नहीं करेंगे, क्योंकि यही उनकी पहचान रही है।
बहरहाल, नीतीश की यह चाल और उनका 'मौन' बिहार की सियासी में क्या गुल खिलाएगा, वह तो आने वाला वक्त बतलाएगा। लेकिन हाल के दिनों में बिहार की सियासत में गठबंधन नेताओं के बीच बयानबाजी का दौर जारी है।