नोएडा प्लॉट घोटाला : यूपी की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव की सजा बरकरार

Update:2017-08-02 21:40 IST

लखनऊ/दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव की तीन साल की सजा बरकरार रखी है। उन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप था। कहा गया था कि उन्होंने नोएडा में गलत तरीके से प्लॉट का आवंटन किया था। नीरा यादव 1994 से 1995 तक इलाके की चेयरपर्सन और सीईओ रही थीं। उन्हें 20 नवंबर 2012 को तीन साल की सजा सुनाई गई थी।

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नोएडा उद्यमी एसोसिएशन ने 1997 को न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट अथॉरिटी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया था। इसके बाद 1998 में सीबीआई ने इसकी जांच शुरू की थी। सीबीआई ने इस मामले से जुड़े करीब 36 मामलों की जांच के बाद नीरा यादव और आईएएस अधिकारी राजीव कुमार के खिलाफ 2002 में चार्जशीट दाखिल की थी।

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इसके बाद नीरा यादव ने गाजियाबाज की सीबीआई कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद कोर्ट ने यादव को डासना जिला जेल भेजने का आदेश दिया था, जिससे कि वो अपनी बाकी की सजा पूरी कर सकें।

गौरतलब है कि 2005 में समाजवादी पार्टी की सत्ता के दौरान नीरा यादव प्रदेश की पहली महिला मुख्य सचिव बनी थीं।

इसके बाद 2008 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।

इन आरोपों से चर्चा में रहीं नीरा यादव

-नीरा यादव को सुप्रीम कोर्ट ने जब 2005 में भ्रष्टाचार के आरोप के चलते चीफ सेक्रेटरी के पद से हटाया तब उनका नाम चर्चा मे रहा।

-नीरा 1994 में नोएडा अथॉरिटी की चेयरमैन थी। उस समय नौकरशाहों, उद्योगपतियों और करीबियों को नियम के उलट प्लाट आवंटित करने में फंस चुकी हैं।

-दिसंबर 2010 को सीबीआइ कोर्ट गाजियाबाद ने सुनाई थी नीरा और फ्लैक्स के मालिक अशोक को 4-4 साल की सजा।

-नोएडा प्लाट आवंटन घोटाले में हाईकोर्ट ने नीरा यादव और राजीव कुमार को तीन-तीन साल के कारावास सजा सुनाई थी।

कौन हैं नीरा यादव ?

-1971 बैच की नीरा यादव पूर्व आइपीएस व राजनीतिज्ञ महेंद्र यादव की पत्‍‌नी हैं।

-यह यूपी की चीफ सेक्रेटरी और यूपी आईएएस एसोसिएशन की अध्यक्ष रह चुकी हैं।

-पूर्व की भाजपा सरकार में महेंद्र यादव माध्यमिक शिक्षा मंत्री थे।

-तब नीरा यादव उसी विभाग में प्रमुख सचिव थीं।

-हालां​कि उन्हें जदयू से विधानसभा चुनाव में हार मिली थी।

-1997 में यूपी आईएएस अफसरों ने मतदान कर जिन तीन भ्रष्ट अफसरों को चुना था।

-उसमें उसमें अखंड प्रताप सिंह, बृजेंद्र यादव के अलावा नीरा यादव भी शामिल थीं।

-भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद नीरा को 1995 में मुख्य सचिव बनाया गया।

-कोर्ट के दखल के बाद नीरा को यह कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।

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