Old Parliament Memory: 96 साल के इतिहास में कई महत्वपूर्ण पलों की साक्षी रही है पुरानी संसद

Old Parliament Historical Moments: मंत्रोच्चारण और सेंगोल की स्थापना के साथ नए संसद भवन का उद्घाटन हो गया। पुरानी संसद अब एक याद के तौर पर हो गई। ऐसी कि खुद तमाम ऐतिहासिक पलों को संजोए हुए है।

Update:2023-05-28 23:39 IST
Old Parliament (Image: Social Media)

Old Parliament Historical Moments: रविवार 28 मई 2023 का दिन भारत के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिंम अक्षरों में दर्ज हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भव्य समारोह में पूरे धार्मिक अनुष्ठान के साथ संसद भवन की नई इमारत का उद्घाटन किया। इस मौके पर प्राचीन भारत में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक रहे राजदंड सेंगोल को संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बगल में स्थापित किया गया। नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ ही पुराना संसद भवन अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है।

संसद के आगामी सत्र अब नए संसद भवन में ही आयोजित होंगे। संसद भवन की नई इमारत हर मायने में पुराने से अधिक उन्नत है। इसमें अधिक सांसदों की बैठने की सुविधा के साथ-साथ इसे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है। इन सबके बावजूद पुरानी संसद जिन ऐतिहासिक पलों का गवाह रहा है, उससे उसकी महत्व कम नहीं होती। कुछ विपक्षी नेता नए संसद भवन का विरोध भी इसी बात को लेकर कर रहे हैं, उनका कहना है कि ये इतिहास को मिटाने की कोशिश है। तो चलिए एक नजर उन ऐतिहासिक घटनाओं पर डालते हैं, जिसका गवाह पुरानी संसद रही है।

1. भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जब फोड़ा था बम

पुराने संसद भवन की आधारशिला ब्रिटिशकाल में रखी गई थी। 24 जनवरी 1927 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया था। इसलिए आजादी तक भारत में इसे ब्रिटिश शासन के प्रतीक के तौर पर देखा जाता था, जहां अक्सर ऐसे कानून पारित कराए जाते थे, जो ब्रिटिश क्राउन की सत्ता को मजबूत करता था। उस जमाने में संसद को काउंसिल हाउस कहा जाता था। यहां अंग्रेजों की मनमानी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए देश के दो महान क्रांतिकारियों ने बैठक के दौरान बम फोड़ दिया था। इन दो महान क्रांतिकारियों को देश आज भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के रूप में याद करता है।

2. अंग्रेजों के हाथ से भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण

पुरानी संसद के सबसे यादगार लम्हों में साल 1947 के अगस्त महीने की वो 15 तारीख है, जब दुनिया के मानचित्र पर गुलामी की जंजीरों को तोड़कर एक नए देश का जन्म हुआ। इस मौके पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा अपना प्रसिद्ध भाषण ‘‘नियति से साक्षात्कार’’ (ट्रिस्ट विद डेस्टिनी) दिया गया। जिसके बाद संविधान सभा के सदस्यों ने स्वयं को राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया।

3. महात्मा गांधी के निधन की घोषणा

भारत ने अंग्रेजों से लंबी लड़ाई लड़ने के बाद आजादी हासिल की थी। लेकिन देश का इसका सही से जश्न नहीं मना सका। क्योंकि बंटवारे ने इस मुल्क को दो हिस्सों में बांट दिया था और कल तक अंग्रेजों के खिलाफ साथ मिलकर लड़ने वाले एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। बंटवारे का जख्म भरा भी नहीं था कि एक घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े प्रतीक महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को हत्या कर दी गई। तब लोकसभा में एक बैठक के दौरान जी.वी. मावलंकर ने बापू की मृत्यु की घोषणा की थी।

4. शास्त्रीजी की जनता से अपील

साल 1962 में भारत और चीन के बीच भीषण जंग छिड़ गई थी। चीन ने अचानक भारत पर हमला बोल दिया था। इस युद्ध में भारत की शर्मनाक पराजय हुई थी। कहा जाता है कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चीन से मिले इस धोखे को सहन नहीं कर सके थे। देश इस हार से उबरा भी नहीं था कि पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ दिया। उस समय देश की कमान छोटे कद के मजबूत इरादे वाले नेता लाल बहादुर शास्त्री के हाथ में थी। देश में उपजे अन्न संकट से विचलित न होकर उन्होंने देशवासियों से हर हफ्ते एक समय का भोजन छोड़ने की अपील की थी। उन्होंने यह अपील संसद भवन से ही की थी।

5. बांग्लादेश का गठन

साल 1971 में भारतीय उपमहाद्वीप में एक और संप्रभु देश का उदय हुआ। भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में अपनी सेना को भेजकर वहां की अतातयी सेना को हथियार डालने के लिए मजबूर कर दिया। यह कारनामा इंदिरा गांधी के शासनकाल में हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिर गांधी ने संसद में पाकिस्तानी फौज के बिना शर्त आत्मसर्पण करने की जानकारी दी थी।

6. परमाणु परीक्षण

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद परमाणु हथियार दुनिया में ताकत और वर्चस्व का प्रतीक बन चुका था। विकसित देशो के साथ-साथ अन्य देशों में भी इसे हासिल करने की होड़ शुरू हो गई थी। भारत भी इन देशों में शामिल था। 22 जुलाई 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद में पोखरण में शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण करने की जानकारी दी। 24 साल बाद 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद भारत को परमाणु हथियार संपन्न देश घोषित किया था।

7. आपातकाल की घोषणा

तत्कालीन उप गृहमंत्री एफ.एच. मोहसिन ने 21 जुलाई 1975 को लोकसभा की बैठक में राष्ट्रपति द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने की घोषणा की थी। इस ऐलान के साथ ही राजनेताओं के सारे लोकतांत्रिक अधिकार निलंबित कर दिए गए और उन्हें जेल में डाल दिया गया। इस ऐलान का तब लोकसभा में सोमनाथ चटर्जी, जगन्नाथराव जोशी, एच.एन. मुखर्जी, पी.के. देव और इंद्रजीत गुप्ता जैसे नेताओं ने कड़ा विरोध किया था।

8. गठबंधन युग में प्रवेश

साल 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार के साथ ही देश गठबंधन युग में प्रवेश कर गया। देश के तमाम बड़े राज्यों में कांग्रेस का एकाधिकार पूरी तरह से ध्वस्त हो गया और ताकतवर रीजनल नेताओं का उदय हुआ। हालांकि, 1989 से लेकर 1998 तक देश में कई प्रधानमंत्री आए और गए। इनमें केवल नरसिम्हा राव ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। 1999 में अटल बिहार वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी, जिसने सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान कई राज्यों में भी गठबंधन की सरकारें बनीं।

9. बीजेपी ने हासिल किया स्पष्ट जनादेश

साल 2014 का आम चुनाव आजादी के बाद के भारत के राजनीतिक इतिहास के लिए अहम इसलिए है क्योंकि पहली बार किसी गैर कांग्रेसी दल ने केंद्र में अपने बल पर स्पष्ट बहुमत हासिल किया था। भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 272 के जादुई आंकड़े को पार कर लिया था। अभी तक ये कारनाम केवल कांग्रेस ही कर पाई थी। बीते दो दशकों से वो भी स्पष्ट जनादेश के लिए संघर्ष कर रही है। पीएम मोदी ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लॉन्च किया था।

10. संसद पर आतंकी हमला

पुराना संसद भवन आतंकी हमले का भी गवाह रहा है। 13 दिसंबर 2001 को पाकिस्तान पोषित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के दहशतगर्दों ने देश की सबसे बड़ी पंचायत को निशाना बनाया था। इस हमले में संसद भवन के गार्ड और दिल्ली पुलिस के जवान समेत 9 लोग मारे गए थे। जवाबी कार्रवाई में 5 आंतकी भी ढ़ेर हुए थे। इस घटना ने कारगिल युद्ध के बाद एकबार फिर भारत-पाकिस्तान को जंग के मुहाने पर खड़ा कर दिया था।

11. जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू कश्मीर को मिले विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लिया था। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का ऐलान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त 2019 को संसद में किया था।

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