Operation Green Hunt Kya Hai: डॉ मनमोहन के समय में शुरू हुआ ऑपरेशन ग्रीन हंट, क्या था ऑपरेशन ग्रीन हंट, आइए जानते हैं
Operation Green Hunt Kya Hai: 2009 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ग्रीन हंट की घोषणा की।हालांकि सरकार ने इस ऑपरेशन को औपचारिक रूप से कभी "ऑपरेशन ग्रीन हंट" का नाम नहीं दिया
Operation Green Hunt Kya Hai: ऑपरेशन ग्रीन हंट (Operation Green Hunt) भारत सरकार द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी उग्रवादियों के खिलाफ शुरू किया गया एक विशेष सुरक्षा अभियान है। इसे वर्ष 2009 में शुरू किया गया था। इस ऑपरेशन का उद्देश्य माओवादी उग्रवाद का सफाया करना और इन क्षेत्रों में शांति एवं विकास को सुनिश्चित करना था। यह भारत के सबसे विवादास्पद और बड़े सुरक्षा अभियानों में से एक है।
ऑपरेशन ग्रीन हंट की पृष्ठभूमि
1960-70 के दशक में चारू मजूमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में नक्सलवादी आंदोलन पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ। यह आंदोलन भूमिहीन किसानों और मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई के रूप में शुरू हुआ था। बाद में, यह आंदोलन उग्र रूप लेकर माओवादी उग्रवाद में बदल गया। 2000 के दशक तक नक्सली गतिविधियां 10 से अधिक राज्यों में फैल गईं।
झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में नक्सलियों ने व्यापक प्रभाव जमा लिया।नक्सलियों द्वारा पुलिस, सुरक्षाबलों और सरकारी इमारतों पर हमले और नागरिकों की हत्याओं ने स्थिति को गंभीर बना दिया।
ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत
2009 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ग्रीन हंट की घोषणा की।हालांकि सरकार ने इस ऑपरेशन को औपचारिक रूप से कभी "ऑपरेशन ग्रीन हंट" का नाम नहीं दिया, लेकिन मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे यही नाम दिया।ऑपरेशन का मुख्य लक्ष्य माओवादियों के प्रभाव वाले "रेड कॉरिडोर" को कमजोर करना और उन्हें समाप्त करना था।
रेड कॉरिडोर में छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल थे।
ऑपरेशन की रणनीति
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), भारतीय रिजर्व बटालियंस (IRB) और राज्य पुलिस बलों की विशेष टीमों को तैनात किया गया।कोबरा (Commando Battalion for Resolute Action) बल को विशेष रूप से माओवादियों के खिलाफ प्रशिक्षित किया गया।
ऑपरेशन के तहत नक्सलियों के ठिकानों पर आक्रमण करना और स्थानीय निवासियों के बीच विश्वास कायम करना प्राथमिक उद्देश्य था।प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें, अस्पताल और स्कूल जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण किया गया।
स्थानीय समुदायों और खुफिया एजेंसियों के माध्यम से माओवादियों के ठिकानों की पहचान की गई।
सफलताएँ
ऑपरेशन के तहत माओवादी ठिकानों पर कई हमले किए गए, जिससे उनकी ताकत कमजोर हुई।अभियान के दौरान बड़ी संख्या में माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया।प्रभावित क्षेत्रों में सड़क निर्माण, स्कूलों की स्थापना और रोजगार योजनाओं के माध्यम से विकास को बढ़ावा दिया गया।
चुनौतियाँ और आलोचना
मानवाधिकार उल्लंघन:ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों पर मानवाधिकार हनन के आरोप लगे। आरोप था कि निर्दोष ग्रामीणों को माओवादी समर्थक मानकर प्रताड़ित किया गया।सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस ऑपरेशन को "आदिवासी विरोधी" करार दिया।
स्थानीय निवासियों का विस्थापन:माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीणों को विस्थापित होना पड़ा।
माओवादियों की प्रतिक्रिया:माओवादियों ने ऑपरेशन ग्रीन हंट के जवाब में सुरक्षाबलों और सरकारी अधिकारियों पर बड़े हमले किए। दंतेवाड़ा (2010) का हमला, जिसमें 76 CRPF जवान मारे गए, इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक थी।
विकास की धीमी गति:कई क्षेत्रों में वादा किए गए विकास कार्यों को समय पर पूरा नहीं किया गया। इससे स्थानीय निवासियों का विश्वास सुरक्षा बलों और सरकार से उठ गया।
ऑपरेशन की वर्तमान स्थिति
ऑपरेशन ग्रीन हंट ने नक्सली आंदोलन को कमजोर करने में मदद की।लेकिन यह समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई। माओवादी अब भी छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ हिस्सों में सक्रिय हैं।वर्तमान में सरकार नक्सल समस्या से निपटने के लिए विकास और सुरक्षा का संतुलित दृष्टिकोण अपना रही है।
वार्ता और बातचीत की संभावनाएं
2005 में आंध्र प्रदेश में माओवादियों और कांग्रेस सरकार के बीच वार्ता शुरू हुई थी, लेकिन यह जल्द ही टूट गई। वर्तमान में, लोकतांत्रिक ताकतें राज्य और माओवादियों के बीच संघर्ष को समाप्त करने और बातचीत शुरू करने की मांग कर रही हैं।
विकास, लोकतांत्रिक स्थान और राज्य आतंकवाद
सरकार OGH को ‘विकास’ के नाम पर उचित ठहराने की कोशिश करती है। हालांकि, जमीन पर विकास योजनाएं भ्रष्टाचार का शिकार हो रही हैं।
प्रसिद्ध पुलिस अधिकारी केपीएस गिल ने इसे "विफलता की ओर बढ़ता अभियान" बताया है।
ऑपरेशन ग्रीन हंट ने माओवादियों की कमर तोड़ दी थी।
ऑपरेशन ग्रीन हंट माओवादियों के खिलाफ चलाया गया एक बड़ा अभियान था, जिसने रेड कॉरिडोर के राज्यों को एकजुट कर माओवादियों पर गहरा प्रहार किया।
इस अभियान की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुई थी। उनके नेतृत्व में माओवादियों के खिलाफ एक यूनिफाइड कमांड बनाई गई और इस संयुक्त प्रयास को ‘ग्रीन हंट’ का नाम दिया गया।
डॉ. मनमोहन सिंह: माओवाद विरोधी अभियान के सूत्रधार
डॉ. मनमोहन सिंह, जो अब हमारे बीच नहीं हैं, पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके कार्यकाल में माओवादियों के खिलाफ सबसे बड़ा अभियान शुरू किया गया।
ग्रीन हंट के चलते माओवादी उनके खिलाफ जंगल, पहाड़, और गांवों में पोस्टर व बैनर लगाकर विरोध जताते थे।
ग्रीन हंट: नक्सल प्रभावित राज्यों की एकजुटता का प्रतीक
2007-08 से पहले रेड कॉरिडोर में बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्य माओवादियों के खिलाफ अलग-अलग अभियान चला रहे थे।
ग्रीन हंट ने इन राज्यों को एकजुट कर दिया। सभी राज्य न केवल अभियान में एक साथ आए, बल्कि सूचनाओं का आदान-प्रदान भी शुरू हुआ। अभियान को प्रभावी बनाने के लिए "कमांडो बटालियन ऑफ रिजॉल्यूट एक्शन" (कोबरा) का गठन किया गया। कोबरा में सीआरपीएफ के विशेष जवान शामिल थे, जो नक्सलियों के गढ़ में घुसकर कार्रवाई करते थे।
पलामू का चक पिकेट: ग्रीन हंट की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि
झारखंड में ऑपरेशन ग्रीन हंट के दौरान, पलामू के चक क्षेत्र में पहली बार एक पिकेट स्थापित की गई। यह झारखंड-बिहार में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई का केंद्र बनी। इस पिकेट की स्थापना के बाद तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज सिंह पाटिल ने फ्रंट पर पहुंचकर जवानों का हौसला बढ़ाया।
माओवादियों ने इस पिकेट के विरोध में डेढ़ साल तक चक क्षेत्र को बंद रखा, लेकिन पिकेट की स्थापना ने माओवादियों की ताकत को चुनौती दी और ऑपरेशन ग्रीन हंट को एक ऐतिहासिक सफलता की ओर अग्रसर किया।
ऑपरेशन ग्रीन हंट ने नक्सल समस्या को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, यह स्पष्ट हो गया कि केवल सैन्य कार्रवाई से इस समस्या का समाधान संभव नहीं है। स्थानीय समुदायों के विश्वास को जीतने, शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।