राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव ने खोली विपक्षी एकता की कलई, 2024 की सियासी जंग हुई और मुश्किल

President and V- President Election: उपराष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद विपक्ष के साझा उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने विपक्षी दलों पर बड़ा हमला बोला।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-08-07 09:54 IST

राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव (photo: social media ) 

President and V- President Election: राष्ट्रपति चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति के चुनाव ने विपक्षी एकता की कलई खोल कर रख दी है। इन दोनों चुनावों में एनडीए ने विपक्ष को जिस बुरी तरह हराया है, उससे साफ हो गया है कि 2024 की सियासी जंग में विपक्षी दलों के बीच एकजुटता कायम हो पाना काफी मुश्किल है। राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए कई विपक्षी दलों में सेंधमारी करने में कामयाब रहा था और अब उपराष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने जिस तरह धाकड़ जीत हासिल की है, वह विपक्ष को भारी चोट पहुंचाने वाली है।

उपराष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद विपक्ष के साझा उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने विपक्षी दलों पर बड़ा हमला बोला। उनका कहना था कि कुछ विपक्षी दलों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया है। हालांकि उन्होंने अपने बयान में किसी दल का नाम नहीं लिया मगर उनके बयान से स्पष्ट है कि विपक्ष साझा रणनीति अपनाकर मामूली चुनौती पेश करने में भी कामयाब नहीं हो सका। सियासी जानकारों का मानना है कि इन दो चुनावों से साफ है कि 2024 की बड़ी सियासी जंग में भी विपक्षी दलों के बीच एकजुटता दिवास्वप्न सरीखी ही है। भाजपा के मुकाबले विपक्ष का कोई चेहरा तय कर पाना भी किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं होगा।

मामूली चुनौती भी नहीं दे पाया विपक्ष

उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की जीत तो पहले ही तय मानी जा रही थी मगर मार्गरेट अल्वा को इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ेगा, यह उम्मीद किसी को नहीं थी। धनखड़ को जिताने के लिए भाजपा के पास खुद अपना पर्याप्त संख्या बल था और फिर कई क्षेत्रीय दलों ने भी एनडीए उम्मीदवार को ही समर्थन देने का ऐलान कर दिया था। भाजपा विपक्ष में सेंधमारी में भी कामयाब रही और रही सही कसर ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी ने चुनाव से अलग रहने के फैसले के साथ पूरी कर दी।

यही कारण था कि धनखड़ सांसदों के 710 वैध मतों में से 528 मत हासिल करने में कामयाब रहे। दूसरी ओर विपक्ष की साझा उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा सिर्फ 182 मतों पर ही अटक गईं। उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष की हालत कितनी पतली रही, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि अल्वा सिर्फ 24.64 फ़ीसदी मत ही हासिल करने में कामयाब हो सकीं जबकि धनखड़ ने 74.36 फ़ीसदी मत हासिल किए। 55 सांसदों ने इस चुनाव में वोट नहीं डाला जबकि 15 सांसदों के मत अवैध घोषित किए गए। चुनाव में 93 फीसदी सांसदों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

विपक्षी एकता का शानदार मौका खो दिया

हार के बाद विपक्षी एकता की सच्चाई को अल्वा की कड़ी प्रतिक्रिया से समझा जा सकता है। अल्वा ने विपक्षी एकता पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि कुछ विपक्षी दलों ने डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया है। नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति धनखड़ को बधाई देने के साथ ही अल्वा ने विपक्षी दलों की एकता में कमी पर निराशा जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह चुनाव विपक्षी दलों के लिए एकता का एक शानदार मौका था। हम पुरानी बातों को दरकिनार करके एक-दूसरे के अंदर भरोसा पैदा कर सकते थे मगर हमने यह शानदार मौका गंवा दिया।

उन्होंने खुद को वोट देने वाले विपक्षी सांसदों के प्रति आभार जताते हुए कहा कि कुछ दलों और नेताओं ने भाजपा का समर्थन करके अपनी विश्वसनीयता को गहरा नुकसान पहुंचाया है। वैसे संविधान की रक्षा, लोकतंत्र की मजबूती व संसद की गरिमा को बनाए रखने के लिए संघर्ष आगे भी जारी रहेगा।

एनडीए ने दी लगातार दूसरी बड़ी चोट

अल्वा के इस बयान से समझा जा सकता है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी किस तरह बिखरा हुआ नजर आया। धनखड़ की बड़ी जीत में शिवसेना के बागी सांसदों और बसपा मुखिया मायावती की मदद के अलावा कई क्षेत्रीय दलों के समर्थन को बड़ा कारण माना जा रहा है। किसानों के मुद्दे पर एनडीए से अलग होने वाले अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल का कहना है कि हमने उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार धनखड़ का समर्थन किया है।

2024 की सियासी जंग से पहले भाजपा ने राष्ट्रपति चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एक और बड़ी चोट दे दी है। जहां एक और विपक्ष का कुनबा पूरी तरह बिखरा हुआ नजर आया तो वहीं एनडीए ने एकजुटता के साथ क्षेत्रीय दलों का समर्थन हासिल करके अपनी ताकत दिखाने में कामयाबी हासिल की।

2024 की राह हुई और मुश्किल

2024 की सियासी जंग में सबसे बड़ा सवाल विपक्ष के चेहरे को लेकर बना हुआ है। अभी तक इस मुद्दे पर कोई रजामंदी बनती हुई नहीं दिख रही है। तृणमूल कांग्रेस के नेता ममता बनर्जी को विपक्ष का चेहरा बनाने की मुहिम में जुटे हुए हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस को राहुल गांधी के सिवा कोई और नेता मंजूर नहीं है। एनडीए में शामिल न होने वाले मजबूत क्षेत्रीय दल भी अपना अलग-अलग राग अलाप रहे हैं।

जहां एक और भाजपा ने 2024 की सियासी जंग की मजबूत तैयारी शुरू कर दी है वहां विपक्ष एक-दूसरे को पछाड़ने की कोशिश में जुटा हुआ है। ऐसे में सियासी जानकारों का जानकारों का मानना है कि विपक्ष के लिए 2024 की सियासी जंग मुश्किल होती नजर आ रही है। अगर जल्दी ही विपक्ष की एकजुटता के लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए तो 2024 में एनडीए को चुनौती देना काफी मुश्किल हो जाएगा।

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