Padma Awards: अब किसी के लिए दिल्ली दूर नहीं, परिवर्तन के गवाह हैं ये पद्म पुरस्कार विजेता
Padma Awards History: 2014 के बाद अचानक यह बदलाव आया है। आप नागरिक पुरस्कारों की बीते कई वर्षों की फेहरिस्त उठा कर देख लीजिए। बदलाव सामने है।
Padma Awards History: काम बहुत लोग करते हैं लेकिन पहचानता कौन है? यह शिकायत या दर्द लम्बे अरसे से रहा है। समाज में बदलाव लाने वाले काम, अनूठे काम, बदले में कुछ भी पाने की तमन्ना के बगैर किये गए काम। कितनों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिल पाती। पुरस्कार और सम्मान तो बहुत दूर की चीज है।
ऐसा पहले होता था। कम से कम दस साल पहले तो कह ही सकते हैं। मान्यता और सम्मान पाने वाले नामचीन लोग ही होते थे। किसी गाँव, कस्बे या शहर की गलियों में पड़े हीरों को न परखने वाला कोई था, न उन्हें सामने लाने वाला कोई था। समाज में वास्तविक जमीनी स्तर पर बदलाव लाने वालों को मान्यता शायद ही कभी मिलती थी।
2014 से पहले के दशक में दिल्ली में राजनेताओं का इलाज करने वाले डॉक्टर, राजनेताओं से मेलजोल रखने वाले पत्रकार, मंत्रियों के दोस्त और रिश्तेदार और कभी-कभी संदिग्ध बिचौलिये भी भारत के नागरिक पुरस्कारों के सबसे बड़ा हिस्सा ले जाते थे। नागरिक पुरस्कारों में मंत्रियों या दिल्ली स्थित लाइजनिंग करने वालों की सिफारिश चलती थी। हद तो यह भी हुई कि शीतल पेय में कीटनाशक की मिलावट करने वाले और मिलावट को पकड़ने वाले दोनों एक साथ नागरिक सम्मान से सम्मानित होने में कामयाब हुए । लेकिन अब ऐसा नहीं है।
बाबूराम यादव, मोहम्मद शरीफ, मन्जम्मा जोगती, तुलसी गौड़ा ..... अनेक नाम हैं,जो इस बात की गवाही देते हैं कि परिवर्तन लाने वाला काम, अनूठा काम, क्रांतिकारी काम, अब नज़रंदाज़ नहीं होता। उसे पहचाना जाता है, सम्मान किया जाता है। ऐसे ऐसे लोग जो बस अपना काम करते रहे। बस। 2014 के बाद अचानक यह बदलाव आया है। आप नागरिक पुरस्कारों की बीते कई वर्षों की फेहरिस्त उठा कर देख लीजिए। बदलाव सामने है।
बीते वर्षों के कुछ पुरस्कार विजेताओं को देखें। सोशल मीडिया नंगे पैर और नंगी पीठ वाली तुलसी गौड़ा की राष्ट्रपति से पद्म भूषण प्राप्त करने के लिए मंच तक चलने की दिलकश तस्वीर से भरा हुआ है। कर्नाटक की 75 वर्षीय तुलसी गौड़ा को 30,000 से अधिक पौधे लगाने के लिए राष्ट्रीय मान्यता मिली।
ऐसे ही हैं कर्नाटक के कारेकला हजब्बा। इस संतरे विक्रेता को उस समय बहुत खराब लगा जब, वह एक विदेशी को समझने में असफल रहे, जिसने उनसे संतरे की कीमत पूछी थी। उन्होंने अपनी छोटी बचत से अपने गांव में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल स्थापित करने की कसम खाई। अब वह स्कूल 10वीं कक्षा तक पढ़ाने के लिए हो गया है। या फिर अयोध्या के 83 वर्षीय मोहम्मद शरीफ को देखिए। उन्होंने अपने क्षेत्र में लगभग 25,000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है। ट्रांसजेंडर लोक नर्तक मंजम्मा जोगती की तस्वीर को कौन भूल सकता है, जिन्होंने पद्मश्री प्राप्त करने से पहले राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद देने की कामना की थी।
या फिर लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता चुल्टिम छोंजोर जिन्होंने अकेले ही दम पर 38 किलोमीटर लंबी सड़क बना दी। विभाजन के बाद शरणार्थी के रूप में आये जगदीश लाल आहूजा दशकों से मुफ्त 'लंगर' चला रहे हैं। वह चंडीगढ़ में 'लंगर बाबा' कहे जाते हैं। बोलपुर, बंगाल के 80 वर्षीय डॉ सुशोवन बनर्जी जो आज भी सिर्फ एक रुपया फीस में मरीजों का इलाज करते हैं। ऐसे कितनी ही अनजानी हस्तियां हैं जिन्हें मान्यता मिली और सम्मानित किया गया है।
दरअसल, 2017 के बाद से नागरिक पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया इतनी लोकतांत्रिक हो गई है कि सामान्य जन उन लोगों के नामों की सिफारिश करते हैं जिनके बारे में लगता है कि उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए, उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए वह मान्यता के पात्र हैं। मोदी सरकार द्वारा साल दर साल घोषित पद्म पुरस्कारों की सूची इस बात को पुष्ट करती है कि पद्म पुरस्कार अब केवल मशहूर हस्तियों के लिए नहीं बल्कि सामान्य पुरुषों और महिलाओं की प्रतिभा, योग्यता, कड़ी मेहनत, विविधता, दृढ़ता, सामाजिक कार्य, अद्वितीय कौशल और उपलब्धियों का सम्मान करने के बारे में हैं।
मशहूर हस्तियों का जश्न मनाने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन पद्म पुरस्कार आज सिर्फ ग्लैमर और चकाचौंध से बहुत कहीं ज्यादा का प्रतीक हैं। उन गुमनाम लोगों का जश्न मनाना जो दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं और बड़े समुदाय को गहराई से प्रभावित करते हैं, लेकिन उन्हें कभी उनका हक नहीं मिला, मोदी सरकार के तहत पद्म पुरस्कार इसी का प्रतीक बन गए हैं।
वर्ष 1954 में स्थापित पदम् पुरस्कार, 1978 और 1979 और 1993 से 1997 के दौरान संक्षिप्त रुकावटों को छोड़कर हर साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर घोषित किए जाते हैं। सभी व्यक्ति लिंग, जाति, व्यवसाय, स्थिति के भेदभाव के बिना इन पुरस्कारों के लिए पात्र हैं। हालाँकि, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को छोड़कर, पीएसयू के साथ काम करने वाले सरकारी कर्मचारी इन पुरस्कारों के लिए पात्र नहीं हैं। इन पुरस्कारों का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट उपलब्धियों को स्वीकार करना है जिनमें सार्वजनिक सेवा का तत्व शामिल है।
ये पुरस्कार, पद्म पुरस्कार समिति द्वारा दी गई सिफारिशों के आधार पर दिए जाते हैं, जिसका गठन हर साल स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है। कैबिनेट सचिव के नेतृत्व वाली इस समिति में गृह सचिव, राष्ट्रपति के सचिव जैसे प्रमुख अधिकारी और चार से छह प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं। नामांकन प्रक्रिया जनता के लिए खुली है। यहां तक कि स्व-नामांकन भी किया जा सकता है। नामांकन के लिये सार्वजनिक वेबसाइट है। कोई भी नामांकन कर सकता है। समिति की सिफारिशों के बाद, अंतिम मंजूरी भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मांगी जाती है। पिछले वर्ष सरकार ने कुल 106 पद्म पुरस्कारों की घोषणा की थी, इस वर्ष यह संख्या 132 है।
पद्म श्री पुरस्कारों ने पिछले सभी वर्षों की तरह इस वर्ष भी देश के दूरदराज के हिस्सों से गुमनाम नायकों कोमान्यता देने की नरेंद्र मोदी सरकार की परंपरा को बरकरार रखा है। गरीब आदिवासियों के लिए चुपचाप काम करने वाले, जंगलों को संरक्षित करने वालों और पर्यावरणविदों से लेकर, ग्रामीण भारत की महिलाओं और उन चिकित्सकों तक, जिन्होंने अन्य पीड़ितों को ठीक करने के लिए व्यक्तिगत तकलीफों को भुला दिया, पद्म श्री आम लोगों का जश्न मनाते हैं। ऐसे कई गुमनाम नायकों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनको यह भी पता नहीं था कि इस तरह के पुरस्कार भी होते हैं।
जिन्होंने कभी किसी पुरस्कार की कामना नहीं की। जिन्हें कोई जानता नहीं था। उन्हें ढूंढ कर सम्मानित करना एक बहुत बड़ा जतन है। ये जनभागीदारी है। जनता का पदम् सम्मान है। असली लोकतांत्रिक जतन है। अब किसी के भी लिए दिल्ली दूर नहीं है।
( लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार।)