पीपीई की महामारी: कोरोना ने फैलाई ये नई बीमारी, बचने के लिए करें ये काम

दुनिया के कई देशों में समुद्रों में बड़े पैमाने पर पीपीई किट जैसे दस्ताने और मास्क मिले हैं जो समुद्रों में मौजूद वेस्ट की मात्रा में इजाफा कर रहे हैं। साथ ही महामारी के खतरे को और बढ़ा रहे हैं।

Update:2020-11-28 19:46 IST
पीपीई की महामारी: कोरोना ने फैलाई ये नई बीमारी, बचने के लिए करें ये काम

नील मणि लाल

लखनऊ। दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसमें कोरोना काल ने जबदस्त इजाफा कर दिया है। आज जिस तरह से कोरोना महामारी दुनिया भर में फैल गई है उसे रोकने के लिए पीपीई (दस्ताने, मास्क आदि) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। पर चूंकि इन्हें एक बार प्रयोग किया जाता है इसलिए इनसे उत्पन्न होने वाला कचरा बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है।

सितम्बर में समुद्र तटों की सफाई के सालाना इवेंट में 62 हजार से ज्यादा पीपीई आइटम एकत्र किये गए। इस वर्ष 76 देशों ने समुद्र तटों की सफाई के अभियान में हिस्सा लिया था और करीब 16 लाख किलो कचरा एकत्र किया। इस अभियान के 35 साल के इतिहास में पहली बार पीपीई सामग्री के लिए एक नयी केटेगरी बनाई गयी थी। एक अनुमान है कि कोरोना महामारी के दौरान हर महीने दुनिया भर में 129 अरब डिस्पोजेबल मास्क और 65 अरब डिस्पोजेबल ग्लव्स का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें से बहुत कम ही आइटम्स को रीसायकल किया जाता है जबकि अधिकांश कूड़े के ढेरों में पहुँच जाता है।

समुद्रों में पीपीई कचरा

दुनिया के कई देशों में समुद्रों में बड़े पैमाने पर पीपीई किट जैसे दस्ताने और मास्क मिले हैं जो समुद्रों में मौजूद वेस्ट की मात्रा में इजाफा कर रहे हैं। साथ ही महामारी के खतरे को और बढ़ा रहे हैं। मछलियों और अन्य समुद्री जीवों के जरिए यह वेस्ट घूमकर हमारी फ़ूड चेन में पहुंच रहा है। अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अन्य शोध के अनुसार अनुमान है कि 2040 तक समुद्र में मौजूद प्लास्टिक वेस्ट में तीन गुना तक इजाफा हो जाएगा। 2050 तक समुद्र में उतना प्लास्टिक होगा जितनी उसमें मछलियां भी नहीं हैं। दुनिया के समुद्र पहले से ही प्लास्टिक कचरे से चोक हो रहे हैं और एक अनुमान है कि हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में चला जाता है। अब कोरोना के साथ पीपीई वाला प्लास्टिक बहुत बड़ी मुसीबत बन कर सामने आ गया है।

कोरोना की वजह से नयी समस्या

कोरोना की वजह से सिर्फ मास्क, सीरिंज, ग्लव्स, पीपीई गाउन, और अन्य आइटम का कचरा ही नहीं बढ़ा है बल्कि लोगों द्वारा अब ज्यादा ऑनलाइन खरीदारी करने और फ़ूड डेलिवरी से खाना मंगवाने के कारण प्लास्टिक बैग, बोतल और डिब्बों का अकच्रा भी बहुत बढ़ गया है।

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बहुत बड़ी चुनौती

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने स्वीकारा है कि पीपीई किट समेत एनी बायोमेडिकल कूड़े का निपटान बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। चौबे के अनुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने बताया है कि स्वास्थ्य पेशेवरों और आम लोगों द्वारा पहने जाने वाले पीपीई किट सहित बायोमेडिकल अपशिष्ट का निपटान कोविड-19 के दौरान बड़ी चुनौती बन गया है। जन स्वास्थ्य राज्य का विषय है। अत: कचरा संग्रह एवं उसका निपटान करने वालों में, पीपीई किट सहित बायोमेडिकल अपशिष्ट के निपटान के दौरान, कुप्रबंधन की वजह से उनमें कोरोना वायरस का संक्रमण होने को लेकर आंकड़ों का केंद्रीय स्तर पर प्रबंधन नहीं किया जाता। मंत्री की बैटन का मतलब ये हुआ कि इस संकट के बारे में राज्यों को काम करना होगा, केंद्र सरकार इसके बार में कुछ नहीं कर सकती।

भारत में पिछले चार महीनों में 18,006 टन कोविड-19 बायोमेडिकल कचरा पैदा हुआ और इसमें महाराष्ट्र का योगदान सबसे ज्यादा रहा, जो है 3,587 टन। यह जानकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों से मिली है। सिर्फ सितंबर महीने में ही देश भर में करीब 5,500 टन कोविड-19 कचरा पैदा हुआ जो किसी एक महीने में सबसे ज्यादा है।

18 हजार टन से ज्यादा बायोमेडिकल कूड़ा

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से मिले आंकड़ों के अनुसार जून से सितम्बर तक भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 18,006 टन कोरोना वायरस संबंधी बायोमेडिकल कचरा पैदा हुआ है। इनका निस्तारण 198 इकाइयों द्वारा किया जा रहा है। कोविड-19 कचरे में पीपीई किट, मास्क, जूता कवर, दस्ताने, रक्त से दूषित वस्तुएं, ब्लड बैग, सुई, सीरिंज आदि शामिल हैं।

आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में जून से चार महीनों में 3,587 टन कचरा पैदा हुआ जबकि तमिलनाडु में 1,737 टन, गुजरात में 1,638 टन, केरल में 1,516 टन, उत्तर प्रदेश में 1,416 टन, दिल्ली में 1,400 टन, कर्नाटक में 1,380 टन और पश्चिम बंगाल में 1,000 टन कचरा पैदा हुआ। सितंबर में करीब 5,490 टन कचरा पैदा हुआ। इस दौरान सबसे ज्यादा 622 टन कचरा गुजरात में पैदा हुआ। इसके बाद तमिलनाडु में 543 टन, महाराष्ट्र में 524 टन, उत्तर प्रदेश में 507 टन और केरल में 494 टन कचरा पैदा हुआ। सीआरपीबी आंकड़ों के अनुसार सितंबर महीने में दिल्ली में 382 टन कचरा पैदा हुआ।

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पीपीई कचरे को कैसे निपटाएं

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोविड-19 कचरे के संबंध में अपने नये दिशानिर्देश में कहा है कि इस्तेमाल किये जा चुके मास्क और दस्तानों का निपटारा करने से पहले उन्हें काट कर कम से कम 72 घंटे तक कागज के थैलों में रखा जाना चाहिए। बोर्ड ने कहा कि जरूरी नहीं है कि ये मास्क और दस्ताने संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल में लाये गये हों। बोर्ड ने शॉपिंग मॉल जैसे कमर्शियल प्रतिष्ठानों और कार्यालयों को भी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण के निपटारे के लिये इसी कार्यप्रणाली का पालन करने का निर्देश दिया है।

बोर्ड ने कहा है कि ‘वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, शॉपिंग मॉल, संस्थानों, कार्यालयों आदि में आम आदमी के बेकार पीपीई को अलग कूड़े दान में तीन दिन तक रखना चाहिए, उनका निपटारा उन्हें काट कर ठोस कचरा की तरह करना चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा - बेकार हो चुके मास्क और दस्तानों को फेंकने से पहले उन्हें काट कर कम से कम 72 घंटों तक ठोस कचरे की तरह कागज के थैले में रखा जाना चाहिए। यह चौथा मौका है, जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोविड-19 से जुड़े बायो-मेडिकल कचरे पर दिशानिर्देश जारी किया है।

कोविड-19 से जुड़े बायो-मेडिकल कचरा के लिये

संक्रमित रोगियों द्वारा छोड़े गये भोजन या पानी की खाली बोतलों आदि को बायो-मेडिकल कचरा के साथ एकत्र नहीं करना किया चाहिए। पीले रंग के थैले का इस्तेमाल सामान्य ठोस कचरा एकत्र करने के लिये नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह कोविड-19 से जुड़े बायो-मेडिकल कचरा के लिये हैं।

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बोर्ड ने कहा है कि कोविड-19 पृथक वार्ड से एकत्र किये गये इस्तेमाल हो चुके चश्मे, फेस शील्ड, फेस कवर,एप्रन, प्लास्टिक कवर, हजमत सूट, दस्ताने आदि पीपीई को अवश्य ही लाल थैले में एकत्र करना चाहिए। दिशानिर्देश में कहा गया है कि ‘इस्तेमाल किये जा चुके मास्क (तीन परत वाले मास्क, एन 95 मास्क आदि), हेड कवर और कैप आदि को पीले रंग के थैले में एकत्र करना चाहिए।

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