' नागरिक लोकतंत्र को शक्ति देता है' राष्ट्रपति कोविंद का राष्ट्र के नाम संदेश

69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया। राष्ट्र के नाम संदेश में सबसे पहले राष्ट्रपति कोविंद ने देश वासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी। साथ ही देश में योगदान देने वालों को नमन किया. बता दें कि कल राष्ट्रप

Update: 2018-01-25 14:23 GMT
' नागरिक लोकतंत्र को शक्ति देता है' राष्ट्रपति कोविंद का राष्ट्र के नाम संदेश

नई दिल्ली: 69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया। राष्ट्र के नाम संदेश में सबसे पहले राष्ट्रपति कोविंद ने देश वासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी। साथ ही देश में योगदान देने वालों को नमन किया. बता दें कि कल राष्ट्रपति कोविंद झंडा फहराएंगे।

देश को न्यू इंडिया के लक्ष्य को हासिल करने के लिए संकल्प लेने का आवाह्न किया. गांधी, नेहरू, नेताजी, पटेल से पहले उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों में क्रांतिकारी नेताओं भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद का नाम लिया, लेकिन भाषण की शुरुआत उन्होंने महिला वीरांगनाओं से की।

राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन के दौरान राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि 2022 में हमारी आजादी के 75 साल पूरे होंगे। तब तक 'न्यू इंडिया' के लिए कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त करना हमारा 'राष्ट्रीय संकल्प' है। 'न्यू इंडिया' के बड़े स्पष्ट मापदंड हैं, जैसे सबके लिए घर, बिजली, बेहतर सड़कें और संचार के माध्यम, आधुनिक रेल नेटवर्क, तेज और सतत विकास। न्यू इंडिया' हमारे डीएनए में रचे-बसे मानवतावादी मूल्यों को समाहित करे। 'न्यू इंडिया' ऐसा समाज हो, जो तेजी से बढ़ते हुए संवेदनशील भी हो। ऐसा संवेदनशील समाज, जहां पारंपरिक रूप से वंचित लोग, देश के विकास प्रक्रिया में सहभागी बनें।



भारत के राष्ट्र निर्माण के अभियान का एक अहम उद्देश्य एक बेहतर विश्व के निर्माण में योगदान देना भी है – ऐसा विश्व, जो मेलजोल और आपसी सौहार्द से भरा हो तथा जिसका अपने साथ, और प्रकृति के साथ, शांतिपूर्ण सम्बन्ध हो। यही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सही अर्थ है।ऐसी संस्थाओं में, वहां काम करने वाले लोगों की नहीं बल्कि संस्था की महत्ता सबसे ऊपर होती है। इन संस्थाओं के सदस्य, देशवासियों के ट्रस्टी के रूप में, अपने पद की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं।



राष्ट्र के नाम पहले संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से एक अनुशासित और नैतिक राष्ट्र का निर्माण होता है। ऐसी संस्थाएं, अन्य संस्थाओं के साथ, अपने भाई-चारे का सम्मान करती हैं। वे अपने कामकाज में ईमानदारी, अनुशासन और मर्यादा बनाए रखती हैं।ऐसे राष्ट्र में संपन्न परिवार, अपनी इच्छा से, सुविधा का त्याग कर देता है - आज यह सब्सिडी वाली एलपीजी हो, या कल कोई और सुविधा — ताकि इसका लाभ किसी जरूरतमंद परिवार को मिल सके। दान देने की भावना, हमारी युगों पुरानी संस्कृति का हिस्सा है। आइए, हम इसे मजबूत बनाएं।



उन्होंने कहा कि नि:स्वार्थ भावना वाले नागरिकों और समाज से ही, एक नि:स्वार्थ भावना वाले राष्ट्र का निर्माण होता है। स्वयंसेवी समूह बेसहारा लोगों और बच्चों, और यहां तक कि बेघर पशुओं की भी, देखभाल करते हैं; समुद्री तटों जैसे सार्वजनिक स्थानों और नदियों को साफ रखते हैं। इनोवेटिव बच्चे ही एक इनोवेटिव राष्ट्र का निर्माण करते हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें एक जुनून के साथ, जुट जाना चाहिए। हमारी शिक्षा-प्रणाली में, रटकर याद करने और सुनाने के बजाय, बच्चों को सोचने और तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।





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