Presidential Election 2022: सिर्फ नीलम संजीव रेड्डी चुने गए थे निर्विरोध, बाकी हर बार वोटिंग से चुने गए राष्ट्रपति

Indian Presidential Election 2022 : भारत के नए राष्ट्रपति के लिए देश में 18 जुलाई को मतदान होगा। बता दें नीलम संजीव रेड्डी भारत के इकलौते ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्हें निर्विरोध चुना गया था।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2022-06-10 04:52 GMT

Neelam Sanjiva Reddy who was elected unopposed as Indian President (Image Credit : Social Media)

Presidential Election 2022: देश के नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए कार्यक्रम की घोषणा की जा चुकी है। आयोग की ओर से घोषित कार्यक्रम के मुताबिक 18 जुलाई को मतदान होगा जबकि 21 जुलाई को मतगणना के बाद नतीजे घोषित किए जाएंगे। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव का इतिहास (History of Presidential Election) जानना दिलचस्प है। राष्ट्रपति के चुनाव के इतिहास में आज तक नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiv Reddy) अकेले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्हें निर्विरोध चुना गया था। 

नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल 1977 से 1982 तक था। 1977 में पहली बार विपक्ष की ओर से कोई भी उम्मीदवार नहीं खड़ा किया गया था और इसलिए नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बनने में कामयाब हुए थे। हालांकि इससे पहले 1969 में उन्हें वीवी गिरी से हार का सामना भी करना पड़ा था।

काफी अलग था 1977 का सियासी माहौल 

1977 का सियासी माहौल पूरी तरह अलग था। आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विभिन्न दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी ने कांग्रेस को बुरी तरह हराने में कामयाबी हासिल की थी। हालत यह थी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को खुद भी रायबरेली में हार का मुंह देखना पड़ा था जबकि उनके बेटे संजय गांधी अमेठी से चुनाव हार गए थे। आपातकाल की जोर जबर्दस्ती के खिलाफ देश में काफी गुस्सा था और कांग्रेस को इसकी कीमत करारी हार के रूप में चुकानी पड़ी थी। 

कांग्रेस की हालत इतनी खस्ता हो गई थी कि वह राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार खड़ा करने की स्थिति में भी नहीं आ पाई। हालांकि 1977 में कांग्रेस के सांसद प्यारेलाल कुरील राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के इच्छुक थे। उन्होंने पार्टी नेतृत्व से भी चुनाव लड़ने का आग्रह किया था मगर उनकी मांग नहीं मानी गई। वे चाहकर भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति चुनाव में नहीं उतर सके। 

कांग्रेस सहित कई दलों का मिला समर्थन

1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने थे। 1977 में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता यशवंतराव चव्हाण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को अपने दल की ओर से नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति के रूप में समर्थन देने की सूचना दे दी थी। कांग्रेस की ओर से यह कदम उठाए जाने के बाद दूसरे अन्य प्रमुख सियासी दलों ने भी नीलम संजीव रेड्डी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। 

इन दलों में अन्नाद्रमुक, माकपा, भाकपा, फारवर्ड ब्लाक, क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी और अकाली दल शामिल थे। विपक्ष की ओर से अपने पांव वापस खींच लेने के बाद 1977 में नीलम संजीव रेड्डी देश के निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए थे। राष्ट्रपति के चुनाव में यह पहला और आखिरी मौका था जब देश के महामहिम को निर्विरोध चुना गया। इसके अलावा अभी तक हर बार वोटिंग के जरिए ही देश के राष्ट्रपति को चुना जाता रहा है।

इस कारण मिली थी सहानुभूति 

हालांकि यह भी सच्चाई है कि इसके पहले 1969 में कांग्रेस उम्मीदवार होने के बावजूद नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। उस समय कांग्रेस के इंदिरा गांधी ग्रुप ने नीलम संजीव रेड्डी को हराने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस जनों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की थी। 

इसके बाद कुछ अन्य दलों का समर्थन पाकर वीवी गिरी राष्ट्रपति चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी को हराने में कामयाब रहे। जानकारों का मानना है कि इस कारण भी नीलम संजीव रेड्डी के प्रति सहानुभूति थी जिसका असर 1977 के चुनाव में देखने को मिला। नीलम संजीव रेड्डी ने 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982 तक देश के राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभाली।

सिर्फ एक बार हुआ निर्विरोध चुनाव

नीलम संजीव रेड्डी का ताल्लुक आंध्र प्रदेश से था। वे आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के रहने वाले थे। 1956 में आंध्र प्रदेश का गठन किया गया था और उसके बाद नीलम संजीव रेड्डी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे। बाद में उन्हें केंद्र में मंत्री बनने का मौका भी मिला। उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया था।

वे लोकसभा के स्पीकर भी चुने गए थे। 1977 में निर्विरोध राष्ट्रपति चुने जाने पर नीलम संजीव रेड्डी ने खुशी जताई थी और उनका कहना था कि सभी राजनीतिक दलों की ओर से एक नई परंपरा की शुरुआत की गई है। हालांकि यह भी सच्चाई है कि उसके बाद कभी राष्ट्रपति पद का चुनाव निर्विरोध नहीं किया जा सका। इससे पहले भी राष्ट्रपति पद पर किसी भी शख्स को निर्विरोध नहीं चुना गया था।

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