Presidential Election 2022: एनडीए के आदिवासी कार्ड ने दिखाया बड़ा असर, अब तक आठ विपक्षी दल टूटे
Presidential Election 2022: उम्मीदवार यशवंत सिन्हा समर्थन के मोर्चे पर कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। महाराष्ट्र में ठाकरे का फैसला यशवंत सिन्हा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
Presidential Election 2022: राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए (NDA) की ओर से आदिवासी महिला उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Candidate Draupadi Murmu) को मैदान में उतारने का बड़ा असर दिखा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस (Congress) और एनसीपी (NDA) के साथ एमवीए गठबंधन में शामिल शिवसेना ने भी मंगलवार को मुर्मू के समर्थन का ऐलान कर दिया। अभी तक गैर राजग आठ विपक्षी दल राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election 2022) में मुर्मू के समर्थन का ऐलान कर चुके हैं। एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की स्थिति पहले ही मजबूत मानी जा रही थी मगर अब गैर राजग दलों के भी खुलकर मुर्मू के समर्थन में आने के बाद मुर्मू की बड़ी जीत तय मानी जा रही है।
दूसरी ओर विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Candidate Yashwant Sinha) समर्थन के मोर्चे पर लगातार कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। महाराष्ट्र में ठाकरे का फैसला यशवंत सिन्हा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस को भी उद्धव ठाकरे के इस फैसले की उम्मीद नहीं थी। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के भी मुर्मू के समर्थन में आने की संभावना जताई जा रही है।
एनडीए ने इन विपक्षी दलों में की सेंधमारी
एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी तय करने के बाद भाजपा नेताओं की नजरें दो क्षात्रीय दलों बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस पर टिकी हुई थीं। इन दोनों दलों ने मुर्मू की उम्मीदवारी तय होते ही उन्हें समर्थन देने का ऐलान कर दिया था। वैसे अब तक गैर राजद आठ दल मुर्मू के समर्थन में आ चुके हैं। इन दलों में शिवसेना के अलावा अकाली दल, बीजू जनता दल,टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, बसपा, जदएस और झामुमो शामिल हैं।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पहले मुर्मू के समर्थन के मूड में नहीं थे मगर पार्टी के सांसदों के दबाव के कारण उन्हें झुकना पड़ा। पार्टी के अधिकांश सांसदों की राय थी कि शिवसेना को आदिवासी महिला उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का ही समर्थन करना चाहिए। पार्टी सांसदों ने पहले दो मौकों पर पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे की ओर से यूपीए के उम्मीदवारों प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी के समर्थन की नजीर भी दी। आखिरकार पार्टी सांसदों के दबाव के आगे झुकते हुए उद्धव ने भी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान कर दिया।
विपक्षी गठबंधन में भी पड़ी दरार
सियासी जानकारों का कहना है कि एनडीए के आदिवासी कार्ड ने विपक्षी दलों को मुर्मू का समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया है। इस कार्ड की बदौलत ही उत्तर प्रदेश और झारखंड के गठबंधन में भी दरार पड़ती दिख रही है। झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से हेमंत सोरेन की सरकार चल रही है मगर मुर्मू की उम्मीदवारी ने सोरेन को भी समर्थन के लिए मजबूर कर दिया है।
झारखंड में कांग्रेस के कुछ विधायकों ने भी पार्टी लाइन से अलग हटकर मुर्मू को समर्थन देने की बात कही है। एनडीए के आदिवासी कार्ड ने पश्चिम बंगाल में टीएमसी के सामने भी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की अच्छी खासी संख्या है और टीएमसी को आदिवासी मतदाताओं के नाराज होने का डर सता रहा है।
यूपी में भी लगेगा यशवंत सिन्हा को झटका
उत्तर प्रदेश में भी विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को झटका लगना तय माना जा रहा है। पिछले दिनों यशवंत सिन्हा के लखनऊ दौरे के समय आयोजित बैठक में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सहयोगी दल सुभासपा को आमंत्रित नहीं किया था। इस मुद्दे को लेकर सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर काफी बिफरे हुए हैं।
हाल के दिनों में उन्होंने कई मौकों पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव को नसीहत दी है। उनकी नाराजगी को देखते हुए अब यह तय माना जा रहा है कि सुभासपा का समर्थन भी एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को ही हासिल होगा। अखिलेश यादव से नाराज सपा विधायक शिवपाल यादव भी मुर्मू का ही समर्थन करने की घोषणा कर चुके हैं। इस तरह एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की राष्ट्रपति चुनाव में बड़ी जीत तय मानी जा रही है