Presidential Election 2022: इस बार क्या गुल खिलाएंगे नीतीश कुमार, पिछले दो चुनावों में कर चुके हैं खेल
Presidential Election 2022: राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए मजबूत जरूर दिख रहा है मगर उसे भी क्षेत्रीय क्षत्रपों की मदद की दरकार है। ऐसे में सबकी निगाहें CM नीतीश कुमार पर भी टिकी हुई हैं।
Presidential Election 2022: देश में अगला राष्ट्रपति चुनने के लिए सियासी गतिविधियां तेज हो गई हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष के उम्मीदवारों के नामों को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (CM Mamata Banerjee) ने 15 जून को विपक्षी नेताओं की बैठक बुला ली है तो भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक (BJP Parliamentary Board Meeting) भी 15 तारीख को ही होने वाली है। इस बैठक में भी राष्ट्रपति उम्मीदवार (President Candidate) के नामों पर चर्चा होने की संभावना है।
इस बार के राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) में क्षेत्रीय क्षत्रपों (Satrap) की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। चुनाव में एनडीए मजबूत जरूर दिख रहा है मगर उसे भी क्षेत्रीय क्षत्रपों की मदद की दरकार है। ऐसे में सबकी निगाहें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर भी टिकी हुई हैं। नीतीश कुमार 2012 और 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में बड़ा खेल कर चुके हैं। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में वे क्या गुल खिलाते हैं।
2012 में किया था प्रणब का समर्थन
यदि 2012 के राष्ट्रपति के चुनाव को देखा जाए तो उस समय नीतीश ने बड़ा खेल किया था। उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार (UPA Government) थी और मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) प्रधानमंत्री थे। यूपीए की ओर से प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया था। भाजपा की ओर से अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया था कि सत्तारूढ़ दल की ओर से उम्मीदवार तय करने में भाजपा की पूरी उपेक्षा की गई है। उनका कहना था कि यूपीए की ओर से सर्वसम्मति की बात तो कही जा रही है मगर सर्वसम्मति के लिए फैसला लेने से पहले चर्चा करने की आवश्यकता होती है जो कि यूपीए ने किया ही नहीं।
2012 के राष्ट्रपति चुनाव में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की ओर से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा के नाम का प्रस्ताव किया गया था। भाजपा ने भी पीए संगमा का ही समर्थन किया था। 2012 में नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा थे मगर उन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था।
बिहार आए बिना वोट दिलाने का वादा
प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) के समर्थन का ऐलान करते हुए नीतीश कुमार ने यहां तक कहा था कि प्रणब दादा को बिहार आकर वोट मांगने की जरूरत ही नहीं है। उन्हें बिहार आए बिना ही यहां का पूरा वोट मिल जाएगा। नीतीश ने प्रणब को समर्थन देने की घोषणा के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की भी मांग की थी। इस पर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने तीखी आपत्ति जताई थी और उनका कहना था कि राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन के बदले कुछ राज्यों को तोहफा देने की कोशिश की जा रही है जो कि पूरी तरह गलत है।
प्रणब ने आसानी से संगमा को हराया
2012 के राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश ही नहीं बल्कि शिवसेना ने भी प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) का ही समर्थन किया था। इस चुनाव में मुखर्जी ने विपक्ष के उम्मीदवार पीए संगमा को आसानी से हरा दिया था। वोटों के प्रतिशत के हिसाब से प्रणब मुखर्जी को करीब 69 फ़ीसदी और पी ए संगमा को 31 फ़ीसदी मत हासिल हुए थे। बाब में 2014 में देश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने प्रधानमंत्री पद की कमान संभाली। प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में मोदी के राष्ट्रपति भवन से अच्छे रिश्ते बने रहे।
2017 में भी नीतीश ने किया था खेल
इसी तरह 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ा खेल किया था। 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की ओर से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया था। 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के समय नीतीश कुमार विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा थे। उस समय उन्होंने कहा था कि कांग्रेस को राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी को दूसरा कार्यकाल दिए जाने पर सर्वसम्मति बनाने चाहिए।
जब यूपीए की ओर से प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो नीतीश कुमार ने दल से ज्यादा दिल की बात सुनने पर जोर दिया। जब एनडीए की ओर से रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की गई तो नीतीश कुमार ने तुरंत उन्हें समर्थन देने का ऐलान कर दिया।
रामनाथ कोविंद का किया समर्थन
तब नीतीश कुमार ने तर्क दिया था कि बिहार में राज्यपाल के रूप में काम करने वाले कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है। ऐसे में उनका समर्थन किया जाना चाहिए। नीतीश कुमार उस समय बिहार में सत्तारूढ़ विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा थे मगर राष्ट्रपति के चुनाव में उन्होंने रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था। मुख्यमंत्री के आवास पर हुई एक बैठक में कोविंद को समर्थन देने की घोषणा की गई थी। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष की बैठक से पहले ही जदयू का यह फैसला सामने आ गया था।
अब इस बार क्या गुल खिलाएंगे नीतीश
बाद में रामनाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) आसानी से राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। हालांकि यह भी सच्चाई है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) कुछ समय बाद पलटी मार कर एक बार फिर एनडीए में शामिल हो गए और उन्होंने भाजपा के समर्थन से बिहार में अपनी सरकार भी बचा ली। अब एक बार फिर देश में राष्ट्रपति का चुनाव (Presidential Election) होने जा रहा है। अब सबकी निगाहें फिर नीतीश कुमार पर लगी हुई हैं। देखने वाली बात यह होगी कि पिछले दो राष्ट्रपति चुनावों में बड़ा खेल करने वाले नीतीश कुमार इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में क्या गुल खिलाते हैं।
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