Punjab News: खालिस्तानी तत्वों से आप सरकार पर गहरा संकट, जानिए पूरा मामला
Punjab News: पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार परेशानियों में घिर गई है। राज्य सरकार पर खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ अप्रभावी होने के अलावा उनके खिलाफ कार्रवाई करने की अनिच्छा के आरोप हैं
Punjab News: पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार परेशानियों में घिर गई है। राज्य सरकार पर खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ अप्रभावी होने के अलावा उनके खिलाफ कार्रवाई करने की अनिच्छा के आरोप हैं। इसका ताजा उदाहरण अजनाला के पास एक पुलिस स्टेशन पर हमले के बाद एक कट्टरपंथी नेता के समर्थकों के सामने झुक जाना है।
चुनावों से ही लग रहे आरोप
2017 के विधानसभा चुनावों में पंजाब में पहली बार प्रवेश करने के बाद से 'आप' इस तरह के आरोप का सामना कर रही है। हालांकि इससे पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनावों में मिली भारी जीत में कोई सेंध नहीं लगी, लेकिन तब से लगातार हो रही घटनाओं ने पार्टी को बैकफुट पर ला दिया है।
लगातार हो रही घटनाएं
भगवंत मान के मुख्यमंत्री बनने के एक महीने बाद, पटियाला में खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं और दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के बीच संघर्ष हुआ थ। कुछ समय बाद संगरूर की संसदीय सीट जिसे मान ने खाली किया था, वहां से शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष और खालिस्तान समर्थक सिमरनजीत सिंह मान चुनाव जीत गए थे। पिछले साल नवंबर में, 'शिवसेना हिंदुस्तान' संगठन के एक नेता की हत्या कर दी गई थी।पुलिस ने इस मामले में एक कट्टरपंथी समर्थक खालिस्तानी युवक को दोषी ठहराया था।
अमृतपाल सिंह का उदय
पिछले कुछ महीनों में पंजाब में अमृतपाल सिंह की अचानक गतिविधियां बढ़ी हैं। अमृतपाल पिछले साल दुबई से लौटे थे और अब दिवंगत अभिनेता कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा स्थापित संगठन 'वारिस पंजाब दे' के प्रमुख हैं।अमृतपाल के ही समर्थक गुरुवार को विरोध प्रदर्शन में पुलिस पर हावी हो गए थे।
उग्रवादियों की रिहाई की मांग
इस बीच, किसान आंदोलन की तर्ज पर मोहाली में एक आंदोलन जारी है जिसके जरिये उन सिख उग्रवादियों की रिहाई की मांग की जा रही है, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है। यह सब घटनाएं राज्य भर में नियमित रूप से खालिस्तान समर्थक मार्च और रैलियों के अलावा हैं।
कई हैं कारण
विपक्षी पार्टियां भगवंत मान सरकार पर खालिस्तान की बात आने पर आग से खेलने का आरोप लगा रही हैं। पूर्व सीएम और भाजपा नेता अमरिंदर सिंह ने अजनाला की अमृतपाल घटना के बाद सख्त चेतावनी जारी की थी। लेकिन बीते 11 महीनों में प्रो खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ने के कई कारण गिनाए जा सकते हैं।
बेअदबी मुद्दा
2019 के तरनतारन विस्फोट मामले में अपनी चार्जशीट में एनआईए ने कहा था कि 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की "बेअदबी" की घटनाओं के बाद पंजाब में सिख युवकों को कट्टरपंथी बना दिया गया था। ये सब अकाली दल भाजपा सरकार के दौरान हुआ था। अकाली दल भाजपा सरकार "बेअदबी" के मामले में ज्यादा प्रगति करने में असमर्थ रही थी। 2017 और 2022 के चुनावों में यह मुख्य चुनावी मुद्दा था। 2022 के चुनावों में, आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि बेअदबी के मामलों में न्याय "24 घंटे के भीतर" दिया जा सकता है। लेकिन इतना समय बीतने के बाद भी आप सरकार बेअदबी के मामलों का खुलासा नहीं कर सकी है। नतीजतन, खालिस्तान समर्थक समूहों द्वारा अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अनसुलझा मुद्दा मुख्य तर्कों में से एक है।
ड्रग्स का मुद्दा
अमृतपाल सिंह ने जिन मुद्दों को उठाया है, उनमें राज्य में ड्रग्स की बेरोकटोक तस्करी है। इसे सिखों को "गुलाम" बनाने या यहां तक कि उन्हें "खत्म" करने की साजिश से जोड़ा जा रहा है। वैसे तो बड़े पैमाने पर नशीली दवाओं की घुसपैठ और उपयोग बरसों पुरानी समस्या है, और पहले की सरकारें, और अब आप इसमें कोई महत्वपूर्ण सेंध लगाने में विफल रही है। ड्रग माफिया के साथ अकाली नेताओं के संबंधों के आरोपों के साथ-साथ विभिन्न दलों की सरकारों की ड्रग तस्करी की जांच में लगातार विफलता ने लोगों के बीच इस मुद्दे पर एक जानबूझकर उपेक्षा की छाप को मजबूत किया है - जिसे खालिस्तान समर्थक गुटों द्वारा भुनाया जा रहा है।
सोशल मीडिया
खालिस्तान समर्थक लॉबी ने सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल किया है। इसी के माध्यम से लोकप्रिय पंजाबी गायकों के गीतों के अलावा खालिस्तान कथा को जीवित रखा गया है। जून 2022 में, केंद्र ने सिद्धू मूसेवाला के 'एसवाईएल' गाने पर प्रतिबंध सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाया था, जिसे खालिस्तानी उग्रवादियों के महिमामंडन के रूप में देखा गया था। लेकिन उसके बाद से लोकप्रिय गायक की हत्या ने उनके मिथक को और भी बड़ा करने का काम किया है।
लंबे चौड़े वादे
पंजाब की जनता ने बदलाव लाने और कुछ अलग करने के "आप" के वादों पर भरोसा किया था। लेकिन अब तक आप सरकार उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। खुद सीएम भगवंत मान भी अपने आप को एक भरोसेमंद नेता के रूप में स्थापित करने के लिए जूझ रहे हैं। उनके पहली बार के अधिकांश विधायक भी अपनी जगह नहीं बना पाए हैं।