कुवैत और कतर के दबाव में कतरे 'नूपुर के पर', जानें उंगली उठाने वाले अरब देशों में कितनी है अभिव्यक्ति की आजादी

नूपुर शर्मा विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादों में है। तो जानते हैं कि कतर और कुवैत जैसे देशों में धार्मिक आजादी और लोगों के अधिकारों की क्या स्थिति है?

Written By :  aman
Update: 2022-06-06 12:39 GMT

प्रतीकात्मक फोटो 

Nupur Sharma Controversy: भारतीय जनता पार्टी (BJP) की प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा एक टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद (Prophet Muhammad) पर तथाकथित टिप्पणियों पर उनकी पार्टी ने दो नेताओं पर बड़ी कार्रवाई की है। बीजेपी ने प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma Suspended) को पार्टी से निलंबित कर दिया है। वहीं, राजधानी दिल्ली में पार्टी के मीडिया प्रमुख नवीन जिंदल (Naveen Jindal) को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।

दरअसल, बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर उनकी टिप्पणियों को लेकर अरब देशों (Arab countries) में भारी विरोध होने लगा था। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया (Social Media) पर भारतीय उत्पादों के बायकॉट (Indian Products Boycott) की अपील हो रही थी। लगातार बढ़ते विरोध के बीच कतर (Qatar), कुवैत (Kuwait) और ईरान (Iran) ने भारतीय राजनयिकों को बुलाकर अपना विरोध जताया। अब जब ये विवाद तूल पकड़ चुका है। यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छा चुका है, तो आइए जानते हैं कि कतर और कुवैत जैसे देश जो अभी काफी मुखर होकर बोल रहे हैं, वहां धार्मिक आजादी और लोगों के अधिकारों की स्थिति क्या है?

सुन्नी बहुल कतर में 10 लाख भारतीय 

इस पूरे विवाद में क़तर का नाम तेजी से आगे आया। तो आपको बता दें कि, कतर की आबादी करीब 30 लाख है। कतर में अधिकतर आबादी गैर नागरिकों की है। 30 लाख आबादी वाले इस मुल्क में भारत के करीब 10 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। कतर के मूल निवासियों में अधिकांश सुन्नी हैं, शेष जनसंख्या शिया मुसलमानों की है।

कतर में चलता है शरिया कानून

कतर के संविधान के अनुसार, यह इस्लामिक देश है। यहां शरीयत के हिसाब से कानून चलता है। शरिया में बेहद सख्त नियम और कानूनों का पालन किया जाता है। इसी के अनुसार, कतर में भी लोगों पर बेहद कड़ी पाबंदियां रहती हैं। इस्लाम और उससे जुड़े प्रतीकों के अपमान और 'ईशनिंदा' को लेकर सख्ती बरती जाती है। ईशनिंदा के लिए सख्त से सख्त सजा के प्रावधान हैं।

नशीले पदार्थों पर सख्त पाबंदी, कोड़े से पिटाई 

कतर में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल की सख्त मनाही है। क़तर में शराब, ड्रग्स आदि नशीले पदार्थों के सार्वजनिक इस्तेमाल करने पर सख्ती से निपटा जाता है। नियमों के उल्लंघन पर कोड़े से पीटा जाता है। बता दें कि, कतर में इसी साल आगामी नवंबर-दिसंबर महीने में फुटबॉल वर्ल्ड कप (Football World Cup) का आयोजन होना है। जिसके चलते स्टेडियम के भीतर बियर और शराब (Beer And Wine) की छूट देने की मांग उठ रही है। मगर, अभी तक वहां की सरकार ने नरमी के कोई संकेत नहीं दिए हैं। ज्ञात हो कि, यहां खाने-पीने की चीजों को लेकर भी कई तरह की पाबंदियां हैं। क़तर में पोर्क और उससे बने उत्पादों का प्रयोग प्रतिबंधित है।

महिलाओं पर कई पाबंदियां

एमनेस्टी इंटरनेशनल की पिछले साल की रिपोर्ट (Amnesty International Report) पर गौर करें तो कहा गया है कि, कतर में महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यहां की महिलाओं को शादी-ब्याह, पढ़ाई, सरकारी स्कॉलरशिप, नौकरी, विदेश यात्रा सहित अन्य बातों के लिए परिवार के पुरुष की मंजूरी आवश्यक होती है। इस देश में पति के हाथों पीड़ित होने के बावजूद शादीशुदा महिलाओं के लिए तलाक लेना आसान नहीं होता। अगर, तलाक मिलता भी है तो महिलाओं को बच्चे की कस्टडी नहीं दी जाती है।

समलैंगिक संबंध, पोर्नोग्राफी के लिए ये हैं नियम 

हालांकि, कतर सरकार इस रिपोर्ट के तथ्यों को नकारती रही है। बता दें कि, कतर में पोर्नोग्राफी (Pornography In Qatar) के लिए भी कड़े नियम-कानून हैं। वहीं, समलैंगिक संबंध (Homosexual Relationship) रखने पर 7 साल तक की सजा का प्रावधान है। शादी से हटकर संबंधों की भी मनाही है।

कुवैत में भी 'शरिया राज'

भौगोलिक दृष्टिकोण से देखें तो सऊदी अरब (Saudi Arab) के उत्तर में एक छोटा सा देश है कुवैत। कुवैत की आबादी करीब 45 लाख के आसपास है। यहां के संविधान के मुताबिक,  सरकारी धर्म इस्लाम है। हालांकि, लोगों को अपने धर्म पालन की छूट मिली हुई है। बशर्ते वो देश के स्थापित नियमों, परंपराओं और नैतिकता के विरुद्ध नहीं होने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी पर अमेरिका की 2021 की एक रिपोर्ट बताती है, कि कुवैत में व्यक्ति धर्म कोई भी माने, लेकिन कानून-व्यवस्था शरीयत के हिसाब से ही चलती है। यहां भी कतर और अन्य मुस्लिम देशों की तरह ईशनिंदा पर सख्त सजा का प्रावधान है। 

अभिव्यक्ति की आजादी

एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में दावा किया गया है, कि कुवैत में अभिव्यक्ति की आजादी पर कई तरह की पाबंदी है। यहां सरकार और अमीर के खिलाफ बोलने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाती है। हालांकि, बीते साल अप्रैल में इस तरह के मामलों में मुकदमे से पहले हिरासत में लेने पर रोक लगा दी गई थी।

70 प्रतिशत आबादी बाहरी, कोरोना में किया भेदभाव 

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि कोरोना महामारी (corona pandemic) के दौरान भी कुवैत में विदेशी नागरिकों और प्रवासी मजदूरों के साथ काफी भेदभाव हुआ था। बता दें कि, कुवैत की आबादी में करीब 70 प्रतिशत हिस्सेदारी अप्रवासियों की है। कोरोना के दौरान पिछले साल जुलाई महीने के पहले हफ्ते में बाहरियों को वैक्सीन तक से वंचित रखा गया था। जबकि, देशवासियों को वैक्सीन लगाई जा रही थी।

MeToo कैंपेन में लगे आरोप, समलैंगिकता पर प्रतिबंध

इतना ही नहीं, एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट ये भी खुलासा करती है कि कुवैत में महिलाओं ने भी मी-टू (MeToo) कैंपेन के दौरान अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के कई आरोप लगाए थे। उन्होंने बाकायदा अभियान चलाया था। कुवैत में समलैंगिक संबंधों पर सख्त पाबंदी है। 

आज कुवैत और कतर जैसे देश 'अभिव्यक्ति की आजादी' और बोलने की स्वतंत्रता को लेकर नूपुर शर्मा के बयान पर भले ही टूट पड़े हों, लेकिन नजर दौड़ाएं तो आपको खुद पता चल जाएगा कि ये देश अपने लोगों को कितनी आजादी देते हैं।

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