QR Code on Medicines: असली कि नकली? 300 दवाओं पर लगेंगे क्यूआरकोड, डोलो, अलेग्रा, कोरेक्स भी इनमें शामिल
QR Code on Medicines: यह व्यवस्था आज यानी पहली अगस्त से लागू हो गयी है और नई पैकेजिंग वाली दवाएं कुछ हफ्तों में दुकानों में पहुंच जायेंगी। इस कदम से नकली और नकली दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकेगी, ऐसा दावा किया गया है।
QR Code on Medicines: बिक्री की जांच करने के लिए केंद्र सरकार के ‘ट्रैक एंड ट्रेस’ सिस्टम के हिस्से के रूप में सामान्य रूप से इस्तेमाल की जाने वाली टॉप 300 दवा ब्रांडों के एपैकेजिंग पर क्यूआर कोड लगना अनिवार्य कर दिया गया है। यह व्यवस्था आज यानी पहली अगस्त से लागू हो गयी है और नई पैकेजिंग वाली दवाएं कुछ हफ्तों में दुकानों में पहुंच जायेंगी। इस कदम से नकली और नकली दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकेगी, ऐसा दावा किया गया है।
-क्यूआर कोड को स्कैन करने पर विनिर्माण लाइसेंस और बैच नंबर जैसी आवश्यक जानकारी से दवा के प्रमाणीकरण में आसानी होगी।
-1 अगस्त से पहले चरण में 300 सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं पर क्यूआर कोड छापा जाएगा। ये ऐसी 300 दवाएं हैं जिनका खुदरा फार्मा बाजार में लगभग 50,000 करोड़ रुपये का योगदान है।
-सरकार के इस कदम से डोलो (माइक्रो लैब्स), एलेग्रा (सनोफी), एस्थलिन (सिप्ला), अनवांटेड 72 (मैनकाइंड फार्मा), सेरिडॉन (बायर फार्मास्यूटिकल्स), लिम्सी (एबट), कैलपोल (जीएसके), कोरेक्स ( फाइजर), कैलपोल, कॉम्बिफ्लेम से लेकर एज़िथ्रल, ऑगमेंटिन, सेफ्टम जैसे एंटीबायोटिक्स और यहां तक कि एंटी-एलर्जी दवा एलेग्रा से लेकर थायरॉयड दवा थायरोनॉर्म तक में क्यूआर कोड होंगे। इन कोड में दवाओं के बारे में बुनियादी जानकारी शामिल होगी, भले ही वे देश में कहीं भी निर्मित या खरीदी गई हों। इस बदलाव की मसौदा अधिसूचना पिछले साल नवंबर में जारी की गई थी। अनुसूची एच2 में निर्दिष्ट दवाओं के लिए, अपर्याप्त स्थान के मामले में, उनके प्राथमिक पैकेजिंग लेबल या द्वितीयक पैकेजिंग पर बारकोड या क्विक रिस्पांस (क्यूआर) कोड को प्रिंट या चिपका देना चाहिए।
- मार्च में स्वास्थ्य मंत्रालय ने फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) से उन दवा ब्रांडों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए कहा था जिन्हें अनिवार्य क्यूआर कोड के कार्यान्वयन के लिए शामिल किया जा सकता है।
-बड़ी दवा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन के हवाले से कहा है कि दवा उद्योग इस बदलाव के लिए तैयार है।
बढ़ सकते हैं दाम
एक चिंता ये भी है कि इस अतिरिक्त छपाई के चलते लागत 5 से 7 प्रतिशत बढ़ जाएगी और बैच की तैयारी में देरी हो सकती है। बताया जाता है कि दवा उद्योग के प्रतिनिधि पहले ही राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) से मिल चुका है और अपनी चिंताओं को व्यक्त कर चुका है। चूंकि ये सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाएं हैं और इनमें से ज्यादातर दवा ब्रांड बड़ी कंपनियों के हैं।
बहरहाल, इस कदम की परिकल्पना एक दशक पहले की गई थी, लेकिन यह ठंडे बस्ते में चला गया क्योंकि घरेलू खुदरा फार्मा उद्योग इस बदलाव के लिए तैयार नहीं था और अपेक्षित सॉफ्टवेयर और प्रौद्योगिकी प्रणालियों की कमी एक बड़ी चुनौती थी।