अर्थव्यवस्था रफ्तार पर ब्रेक! जुलाई-सितंबर तिमाही में GDP गिरकर हुई 4.5 प्रतिशत
देश इस वक्त कथित मंदी की दौर से गुजर रहा है, कई कंपनी बन्द हो रही है, तो कई कंपनी दिवालिया हो गई है। बहरहाल, अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बुरी खबर है।
मुंबई: देश इस वक्त कथित मंदी की दौर से गुजर रहा है, कई कंपनी बन्द हो रही है, तो कई कंपनी दिवालिया हो गई है। बहरहाल, अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बुरी खबर है। मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट गिरकर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है।
ज्ञात हो कि पिछली 26 तिमाहियों यानी साढ़े 6 साल में यह भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे धीमी विकास दर है। एक साल पहले यह 7 प्रतिशत थी जबकि पिछली तिमाही में यह 5 प्रतिशत थी। इसके अलावा, अक्टूबर महीने में 8 कोर सेक्टरों का इंडस्ट्रियल ग्रोथ -5.8 प्रतिशत रही है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा शुक्रवार को जारी जीडीपी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 की जुलाई-सितंबर के दौरान स्थिर मूल्य (2011-12) पर जीडीपी 35.99 लाख करोड़ रुपये रही जो पिछले साल इसी अवधि में 34.43 लाख करोड़ रुपये थी। इसी तरह दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही।
जुलाई-सितंबर तिमाही में कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्र में 2.1 प्रतिशत और खनन और उत्खनन में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में इस दौरान 1 प्रतिशत की गिरावट रही। इन तीनों समूह के खराब प्रदर्शन के कारण आर्थिक वृद्धि दर कमजोर रही।
इसके अलावा बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगकी सेवाओं के क्षेत्र में चालू वित्त वर्ष जुलाई-सितंबर तिमाही में 3.6 प्रतिशत और निर्माण क्षेत्र में 3.3 प्रतिशत वृद्धि रहने का अनुमान लगाया गया है। आलोच्य तिमाही में सकल मूल्य वर्द्धन यानी ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) 4.3 प्रतिशत रहा। जबकि एक साल पहले 2018-19 की इसी तिमाही में यह 6.9 प्रतिशत थी।
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा...
जीडीपी के निराशाजनक आंकड़ों पर सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के. वी. सुब्रमण्यन ने कहा है कि तीसरे क्वॉर्टर में जीडीपी रफ्तार पकड़ सकती है। उन्होंने कहा, 'हम एक बार फिर कह रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी रहेगी। तीसरी तिमाही में जीडीपी के रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है।
राजकोषीय घाटा...
राजकोषीय घाटा के मोर्चे पर भी बुरी खबर है। 2018-19 के पहले 7 महीनों यानी अप्रैल से अक्टूबर के बीच ही राजकोषीय घाटा मौजूदा वित्त वर्ष के लक्ष्य से ज्यादा हो गया है। पहले 7 महीनों में राजकोषीय घाटा 7.2 ट्रिलियन रुपये (100.32 अरब डॉलर) रहा जो बजट में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए रखे टारगेट का 102.4 प्रतिशत है।
सरकार की तरफ से शुक्रवार को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में सरकार को 6.83 ट्रिलियन रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ जबकि खर्च 16.55 ट्रिलियन रुपये रहा।
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह GDP पर बोले...
देश की जीडीपी 6 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है, शुक्रवार को NSSO ने जीडीपी के आंकड़े जारी किये। आंकड़े सामने आने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने टिप्पणी की है, उन्होंने कहा कि 'स्थिति बहुत ही चिंताजनक है, आज जारी किए गए जीडीपी के आंकड़े 4.5% तक हैं, यह स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य है। मनमोहन ने स्पष्ट कहा कि मैं देश के एक जागरूक नागरिक की तरह ये सब कह रहा हूं, इसमें राजनीति को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
इसके साथ ही मनमोहन सिंह ने कहा कि हमारे देश की आकांक्षा 8-9% की दर से बढ़ना है, सकल घरेलू उत्पाद का 5% से 4.5% तक की तीव्र गिरावट चिंताजनक है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आर्थिक नीतियों में बदलाव से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद नहीं मिलेगी।
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा कि आज ऐसा कोई नहीं है जो मंदी और इसके खतरनाक परिणाम से इनकार कर सकें। जीडीपी का गिरना चिंता का विषय है, हमें सोसायटी को डर के माहौल से निकाल कर भरोसे के माहौल में ले जाना होगा।
उन्होंने कहा कि हमारा आपसी विश्वास का सामाजिक ढांचा अब तहस नहस हो चुका है, कई व्यवसायी मुझे बताते हैं कि वो डर के माहौल में जी रहे हैं कि उन्हें प्रताणित किया जा सकता है। इस सबका कारण सरकार की नीतियां हैं, मोदी सरकार सबको शक की नजर से देखती है, पहले की सरकारों के सब फैसलों को गलत मानकर चलते हैं।
मनमोहन सिंह यहीं नहीं रूके उन्होंने कहा कि सरकार को भारत के किसानों, व्यवसायी और नागरिकों को विश्वास की नजर से देखना होगा. पूर्ण बहुमत और तेल के कम अंतरराष्ट्रीय दाम एक ऐसा मौका थे जो कई जेनरेशन में एक बार मिलते हैं. सरकार को इसका फायदा उठाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि हमें अपने समाज में मौजूदा माहौल को एक डर से बदलकर अपनी अर्थव्यवस्था के लिए 8% प्रति वर्ष की दर से विकसित करने की आवश्यकता है, अर्थव्यवस्था की स्थिति अपने समाज की स्थिति का प्रतिबिंब है, विश्वास का हमारा सामाजिक ताना-बाना अब टूट गया है।