Kota Students Suicide: टूटे सपनों का शहर बना कोटा, मत झोंकिये बच्चों को कम्पटीशन की रेस में

Kota Students Suicide Case: इस साल कोटा में अब तक 22 छात्र यहाँ सुसाइड कर चुके हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने की, चिंता की बातें बहुत होती हैं लेकिन साल दर साल का यह सिलसिला जारी है। पिछले साल यह आंकड़ा 15 था। बात संख्या की नहीं, सामाजिक मानसिकता की है।

Update:2023-08-19 15:46 IST
Kota Students Suicide Case (Photo: Social Media)

Kota Students Suicide Case: राजस्थान का कोटा शहर छात्रों, प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रतिभागियों के लिए उम्मीदों का शहर है लेकिन साथ ही इसकी एक बहुत स्याह तस्वीर भी है। यह स्याह तस्वीर है हताश छात्रों द्वारा सुसाइड किये जाने की घटनाओं की। इस साल अब तक 22 छात्र यहाँ सुसाइड कर चुके हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने की, चिंता की बातें बहुत होती हैं लेकिन साल दर साल का यह सिलसिला जारी है। पिछले साल यह आंकड़ा 15 था। बात संख्या की नहीं, सामाजिक मानसिकता की है। एक भी जान का यूं चले जाना स्वीकार्य नहीं हो सकता।
खास तरह के पंखे

हाल ही में कोटा में एक और आत्महत्या देखी गई जब एक 18 वर्षीय छात्र, जो आईआईटी संयुक्त प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था, ने 15 अगस्त की रात को अपनी जान ले ली। इस घटना के बाद, कोटा जिला कलेक्टर ओम प्रकाश बुनकर ने सभी छात्रावासों और पेइंग गेस्ट आवासों को "छात्रों को मानसिक सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए" स्प्रिंग-लोडेड पंखे लगाने का आदेश दिया। यह ऐसे पंखे हैं जो ज्यादा वजन होने से अपने आप नीचे गिर जाते हैं। स्पष्ट रूप से आत्महत्याओं को रोकने के लिए किए गए इस उपाय को सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया मिली है, जहां नेटिज़न्स इस तरह के अजीबोगरीब उपायों की बजाय मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने के लिए कह रहे हैं।

बात सही है। कोटा की हलचल भरी सड़कों पर जगह जगह कोचिंग संस्थानों के विशाल होर्डिंग्स जेईई और एनईईटी के टॉपर्स के विजयी चेहरों को प्रदर्शित करते हैं। लेकिन इनके पीछे एक गंभीर वास्तविकता है। सफलता की कहानियों के साथ-साथ, आकांक्षाओं और हताशा के बीच एक बड़ा विरोधाभास है। इंजिनियर या डॉक्टर बनाने वाले इस शहर में 2019 से 50 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की । इस साल अब तक 20 से ज्यादा बच्चे अपनी जान ले चुके हैं।

टूटे सपने और नष्ट हुईं जानें

किसी प्रतियोगी परीक्षा को पास करने का दबाव अज्ञात नहीं है। राजस्थान सरकार ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि वह शैक्षणिक दबाव को कम करने और तेजी से बढ़ते कोचिंग संस्थानों के लिए दिशानिर्देश तय करने के उद्देश्य से राजस्थान कोचिंग संस्थान (नियंत्रण और विनियमन) विधेयक पेश करने की योजना बना रही है। रिपोर्टों के अनुसार, वह विधेयक अब ठंडे बस्ते में है। कहने को अधिकांश कोचिंग संस्थानों में छात्रों की मदद के लिए काउंसलर होते हैं। इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि पुलिस प्रशासन छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की समीक्षा करता है। लेकिन इनका असर क्या है?

क्यों करते हैं सुसाइड?

कभी-कभी छात्र अपनी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाने से दुखी हो जाते हैं और अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं। इसके पीछे बच्चों के पेरेंट्स और समाज का भरी दबाव भी बहुत बड़ा कारण है। स्कूल-कालेजों से लेकर घर में पेरेंट्स द्वारा अब तक ऐसा माहौल नहीं बनाया गया है जिसमें बच्चों को यह बताया जाये की डॉक्टर या इंजीनियर बनना ही जीवन का अंतिम उद्देश्य नहीं है। करियर बहुतेरे हैं, सभी बच्चों की अपनी अपनी क्षमताएं हैं। इसके अलावा बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और अन्य प्रकार की सहायता की सुविधा भी कितनी है, यह छुपा नहीं है।

पेरेंट्स की गलती : मुख्यमंत्री

कोटा में बढ़ते सुसाइड मामलों पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चिंता व्यक्त की है और अधिकारियों को इन्हें रोकने के लिए सुझाव देने के लिए एक समिति बनाने का आदेश दिया। गहलोत ने कहा, समिति 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। गहलोत का ये कहना सही है कि कक्षा 9 और 10 में पढ़ने वाले छात्रों पर अनावश्यक दबाव लगाया जा रहा है। उन्होंने कहा - आप नौवीं और दसवीं कक्षा के छात्रों को कोचिंग संस्थानों में दाखिला दिलाकर अपराध कर रहे हैं। यह माता-पिता की भी गलती है। छात्रों पर बोर्ड परीक्षाओं को पास करने और प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने का बोझ है। यह सुधार का समय है क्योंकि हम युवा छात्रों को आत्महत्या करते हुए नहीं देख सकते।

एक भी बच्चे की मौत माता-पिता के लिए बहुत बड़ी क्षति है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ राजस्थान की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है। शिक्षा राज्य मंत्री जाहिदा खान ने भी कोचिंग संस्थानों से आग्रह किया कि वे "पैसे कमाने वाली मशीन" न बनें। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2021 में लगभग 13,000 छात्रों की आत्महत्या से मृत्यु हो गई। महाराष्ट्र में 1,834 मौतों के साथ सबसे अधिक आत्महत्याएं दर्ज की गईं, इसके बाद मध्य प्रदेश (1,308), तमिलनाडु (1,246), कर्नाटक (855) और ओडिशा (834) हैं।

असलियत बेहद चिंताजनक

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, कई छात्र जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जाते हैं, वे कक्षा छह या आठ से ही तैयारी शुरू कर देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनके माता-पिता की उम्मीदें उन पर टिकी होती हैं। बचपन से ही वे अपने माता-पिता को हर किसी से यह कहते हुए सुनते हैं कि उनका बेटा/बेटी इंजीनियर या डॉक्टर बनेगा और यहीं से यह सब शुरू होता है। पेरेंट्स भी इस ग़लतफ़हमी में होते हैं कि जो बच्चे स्कूल में बढ़िया परफॉर्म करते हैं वे आसानी से आईआईटी-जेईई या एनईईटी पास कर सकते हैं। माता-पिता की आशाओं के बोझ तले ये बच्चे जब कोटा आते हैं तो उन्हें एहसास होता है कि हालत कितने दुष्कर हैं। यहीं से अत्यधिक मानसिक दबाव शुरू हो जाता है। इसके अलावा कोटा में पढ़ाई करना अच्छा खासा महँगा है। औसतन एक कोचिंग संस्थान साल भर के लिए 80,000 रुपये से 2 लाख रुपये तक फीस लेते हैं। बच्चे भी जानते हैं कि उनके पेरेंट्स पर किता दबाव है। दुखद ये है कि इन परिस्थियों को बदलने का कोई प्रयास नहीं हो रहा। जबकि यह स्कूल लेवल पर ही शुरू किया जाना चाहिए।

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