श्रीनगर: आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में जारी हिंसा के बीच केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को कहा कि अब सेना पर पत्थरबाजी करने वालों पर 'पावा सेल्स' का इस्तेमाल किया जाएगा। एक हजार पावा सेल्स घाटी में भेजे जा चुके हैं।
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राजनाथ ने सोमवार को कश्मीर में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि पैलेट गन पर रोक को लेकर कई सुझाव आए थे। सरकार अब हिंसा पर उतारू लोगों पर पावा सेल्स का इस्तेमाल करेगी। इससे किसी की जान नहीं जाती।
हुर्रियत नेताओं से बातचीत के सवाल पर राजनाथ ने कहा कि जिस किसी का भी कश्मीर की शांति और लोकतंत्र में विश्वास है उसके साथ बातचीत के दरवाले खुले हैं। सिर्फ दरवाजे ही नहीं हमने रोशनदान भी खुला रखा है।
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सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में आए कुछ नेताओं ने रविवार को अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से मिलने का प्रयास किया था, लेकिन उन्होंने मिलने से ही इंकार कर दिया था। हालांकि कुछ नेता रविवार को निजी कैपसिटी में मिलने गए थे।
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क्या है नया हथियार 'पावा'?
इस हथियार को पावा शेल्स कहा जाता है। पैलेट गन के छर्रे जहां आंखों में लगकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। वहीं, पावा शेल्स आंखों या शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन जब इन्हें दागा जाता है तो दर्द पैलेट गन के छर्रे लगने से ज्यादा होता है। पत्थरबाजों के बड़े से झुंड के लिए एक या दो पावा शेल काफी होते हैं। भीड़ में दागने के बाद इनसे निकलने वाली गैस से आदमी का शरीर सुन्न पड़ जाता है।
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क्यों असरदार होते हैं पावा शेल?
पावा का मतलब होता है पेलार्गनिक एसिड वैनिलिल एमाइड। इसे नोनिवेमाइड भी कहते हैं। मिर्च पाउडर की तरह काम करने वाला ये ऑर्गेनिक कंपाउंड होता है। पावा का इस्तेमाल खाने में तीखापन लाने के लिए भी किया जाता है। इसके शेल को आंसू गैस और चिली स्प्रे से ज्यादा असरदार पाया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक एक्सपर्ट कमेटी ने इसे ज्यादा असरदार पाया है।
लखनऊ में चल रही थी टेस्टिंग
एक्सपर्ट कमेटी ने हाल ही में पावा शेल चलाने के असर को दिल्ली में परखा था। इस शेल को लखनऊ में इंडियन टॉक्सीकोलॉजी रिसर्च इंस्टीट्यूट में एक साल से टेस्ट किया जा रहा था। बताया जा रहा है कि एक्सपर्ट कमेटी पैलेट गन की जगह पावा शेल के इस्तेमाल को हरी झंडी दिखा सकती है। कमेटी ने वैसे सिफारिश की है कि ग्वालियर में बीएसएफ की टियर स्मोक यूनिट में पावा शेल का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जाए।
क्या होती है पैलेट गन?
-ये दूसरी तरह की बंदूकों से अलग होती है।
-इससे दागे जाने वाले कारतूसों में सैकड़ों लेड के छर्रे होते हैं।
-भीड़ पर दागे जाने पर कारतूस कुछ दूरी पर फट जाता है और छर्रे तेजी से लोगों के शरीर में जा घुसते हैं।
-कई बार छर्रे लोगों की आंखों में भी लगते हैं और इससे उनकी आंख नष्ट हो जाती है।
कितने तरह के होते हैं छर्रे?
-सुरक्षाबल कई तरह के छर्रे वाले कारतूस इस्तेमाल करते हैं।
-इनमें गोल, नुकीले या अन्य बनावट के लेड के छर्रे होते हैं।
-ये छर्रे शरीर में जहां भी लगते हैं, वहां असहनीय दर्द होता है।
-इन छर्रों की खास बात ये है कि ये किसी की जान नहीं लेते।
साल 2010 से हो रहे इस्तेमाल
-जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल साल 2010 से हो रहा है।
-उस साल हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।
-पैलेट गन से श्रीनगर में ही बीते पांच दिन में 120 के करीब लोग घायल हुए हैं।
-घायलों में से पांच लोगों की एक आंख की रोशनी पूरी तरह चली गई है।
-जम्मू और कश्मीर के सभी दल पैलेट गन के खिलाफ हैं, लेकिन जिसकी भी सरकार आती है, वह इसका विरोध नहीं करता।
राजनाथ ने क्या कहा था?
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सुरक्षाबलों को पैलेट गन के इस्तेमाल से बचने के लिए कहा था। उन्होंने ये भी कहा था कि संसद की समिति पैलेट गन के मामले पर विचार करेगी। साथ ही इसका कोई विकल्प खोजने की कोशिश भी सरकार कर रही है। हालांकि, उन्होंने साथ ही पथराव करने वालों से अपील की थी कि वे इस तरह के हिंसात्मक प्रदर्शन न करें।