Republic Day 2023: बेहद रोचक है अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय की कहानी

Lala Lajpat Rai Jayanti: ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की आखिरी कील साबित होगी।’ ये शब्द महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के हैं।

Report :  Jyotsna Singh
Update:2023-01-26 07:04 IST

बेहद रोचक है अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय की कहानी: Photo- Social Media

Lala Lajpat Rai Jayanti: 'मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की आखिरी कील साबित होगी।' ये शब्द महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai Jayanti) के हैं, जो उन्होंने एक विरोध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों के लाठीचार्ज में घायल होने के बाद कहे थे। उनकी यह बात सही साबित हुई। इस घटना के दो दशक के अंदर ब्रिटिश साम्राज्य (British rule) का भारत से नामोनिशान मिट गया।

भारतवर्ष में हर वर्ष 28 जनवरी को इनकी जयंती मनाई जाती है। लाला लाजपतराय का जन्म 28 जनवरी, 1865ई. को हुआ था। इन्हें पंजाब केसरी के नाम से भी जाना जाता है।

पंजाब नेशनल बैंक की करी थी स्थापना

इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। लाला लाजपतराय की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गई थी जान लाला लाजपत राय भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों में से एक थे।

1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। इस दौरान अंग्रेजों ने लाठी-चार्ज कर दिया था, जिसमें वे बुरी तरह से घायल हो गए।उस समय इन्होंने कहा था: "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।" इस घटना के कुछ दिन बाद 17 नवंबर 1928 को इनकी मृत्यु हो गई।

साइमन कमीशन को भारत से वापस क्यों जाना पड़ा

लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी पर जानलेवा लाठीचार्ज का बदला लेने का निर्णय किया। और 17 दिसम्बर, 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई।

स्वावलंबन से स्वराज्य प्राप्ति के पक्षधर थे लालाजी

1897 और 1899 में उन्होंने देश में आए अकाल में पीड़ितों की तन, मन और धन से सेवा की। देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया। लाला जी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की। इसके बाद जब 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया था तो लाला लाजपत राय ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और इस तिकड़ी ने ब्रिटिश शासन की नाक में दम कर दिया। इस तिकड़ी ने स्वतंत्रता समर में वो नए प्रयोग किए थे जो उस समय में अपने-आप में नायाब थे।

लाल-बाल-पाल के नेतृत्व को पूरे देश में भारी जनसमर्थन मिल रहा था, जिसने अंग्रेजों की रातों की नींद हराम कर दी। इन्‍होंने अपनी मुहिम के तहत ब्रिटेन में तैयार हुए सामान का बहिष्कार और व्यावसायिक संस्थाओं में हड़ताल के माध्यम से ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। स्वावलंबन से स्वराज्य प्राप्ति के पक्षधर लाला लाजपत राय जी अपने विचारों की स्पष्टवादिता के चलते उग्रवादी नेता के रूप में काफी लोकप्रिय हुए।

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