Road Accident: डराती सड़कें, आतंकित करते वाहन

Road Accident: सड़क पर चलना या ड्राइविंग करना शायद हमारे देश में सबसे खतरनाक काम है। भारत में हर साल कम से कम 1 लाख 68 हजार लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2024-01-09 05:12 GMT

Road Accident: सड़क पर चलना या ड्राइविंग करना शायद हमारे देश में सबसे खतरनाक काम है। यह ठीक उसी तरह है जैसे किसी युद्ध क्षेत्र में बारूदी सुरंगों से पटी पड़ी जमीन पर चलना। कब किस कदम पर धमाका हो जाये, कोई कुछ नहीं कह सकता। बेहतरीन सड़कें हैं, एक से बढ़ कर एक वाहन हैं । लेकिन जो नहीं है वह है जान की गारंटी। यह जान लीजिए कि भारत में हर साल कम से कम 1 लाख 68 हजार लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं। सड़क हादसों पर सड़क परिवहन मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में देश में 4.61 लाख सड़क हादसे हुए। इन हादसों में 1.68 लाख लोग मारे गए और 4.43 लाख लोग घायल हो गए। मरने वालों में 66.5 प्रतिशत लोग 18-45 की उम्र के थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में 1.52 लाख लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हुई थी जबकि साल 2017 में यह आंकड़ा डेढ़ लाख लोगों का था। यानी साल दर साल सड़कों पर आतंक बढ़ता ही गया है।

इन दिनों "हिट एंड रन" का मसला काफी गरमाया हुआ है। वजह है, एक्सीडेंट के बाद घायल को छोड़ कर भाग जाने वालों के लिए निर्धारित सज़ा में इज़ाफ़ा। सज़ा दस साल और 7 लाख जुर्माना तय कर दिया गया है। ट्रक-बस ड्राइवर इससे परेशान हैं। कार - बाइक - ट्रैक्टरट्राली वाले चुप्पी साधे बैठे हैं । जबकि वो भी कम जिम्मेदार नहीं।

बहरहाल, आंकड़ों की जानिब, 2022 में भारत में हर घंटे हिट-एंड-रन मामलों में लगभग छह लोग मारे गए और प्रति दिन 140 लोगों की जान चली गई! वर्ष 2022 के डेटा के मुताबिक, भारत में उस साल कुल सड़क हादसों में हिट एंड रन मामलों की संख्या 15 फीसदी रही है।

इसमें भी दिल्ली टॉप पर रहा जहां हिट एंड रन मामले कुल सड़क हादसों का 31.9 फीसदी थे।

इसके बाद है महाराष्ट्र (28.7), बिहार (26.9), पंजाब (25.5).


हरियाणा (24.3), राजस्थान (23.8), मध्यप्रदेश (23.6) और उत्तरप्रदेश (20.6 फीसदी)।


इसके उलट दक्षिणी राज्यों में तमिलनाडु (7.4), तेलंगाना (9.7), केरल (4.5), आन्ध्र (7.4), कर्नाटक (7.6 फीसदी) रहे।


आईपीसी को हटा कर लाये गए भारतीय न्याय संहिता कानून में हिट-एंड-रन के अपराध पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। नए कानून में सड़क दुर्घटना के मामलों में दंड बढ़ाकर 10 साल तक कर दिया गया है। जबकि पुराने आईपीसी के तहत वाहन दुर्घटना में अनजाने में किसी की हत्या के लिए अधिकतम सज़ा दो साल की जेल थी। भारतीय न्याय संहिता में कहा गया है कि - "जो कोई भी बिना सोचे-समझे या लापरवाही से ऐसा काम करके किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनाता है जो गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आता है, उसे सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। लेकिन यदि अपराधी भाग जाता है या अपराध की तुरंत रिपोर्ट करने में लापरवाही करता है तो 7 लाख रुपये का जुर्माना और अधिकतम दस साल की जेल की सज़ा दी जा सकती है। नए कानून में हिट एंड रन को गैर जमानती अपराध बना दिया गया है।

जरा ये भी जान लेते हैं कि किस देश में क्या कानून है

बांग्लादेश में हिट-एंड-रन या किसी भी प्रकार की मोटर वाहन-संबंधी दुर्घटना में कोई गंभीर रूप से घायल हो जाता है या मारा जाता है, तो इसमें अधिकतम सज़ा मौत की सज़ा है। ऐसे अपराध में जमानत भी नहीं होती।


कनाडा में हिट एंड रन को गम्भीर अपराध माना गया है। इसके लिए 5 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। यदि दुर्घटना में शारीरिक क्षति या मृत्यु हुई है तो 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक सज़ा हो सकती है।


चीन के सड़क यातायात सुरक्षा कानून के अनुच्छेद 101 में प्रावधान है कि किसी बड़ी दुर्घटना या हिट एंड रन में अपराधी का ड्राइविंग लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। और उसे आजीवन लाइसेंस नहीं मिल सकता है।


किसी घटना या हिट एंड रन, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु, गंभीर चोट या बड़ी संपत्ति की क्षति होती है तब अपराधी को 3 से 7 साल की कैद दी जाती है। अगर दुर्घटनास्थल से भागने के प्रयास के चलते पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो कम से कम 7 साल की कैद होती है।

दक्षिण कोरिया में हिट-एंड-रन की दो धाराएँ हैं।यदि ड्राइवर किसी पीड़ित की हत्या करने या उसकी मृत्यु का कारण बनने के बाद भाग जाता है, तो धारा 1 में न्यूनतम सजा पांच साल की जेल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।


यदि चालक दुर्घटनास्थल से पीड़ित को हटा देता है या पीड़ित को छोड़कर भाग जाता है और पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, तो सजा या तो आजीवन कारावास या मृत्युदंड है। इसके अलावा 50 लाख से 3 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लग सकता है।

मौत लाती रफ़्तार

सड़क हादसों में मरने वालों में से 71.2 प्रतिशत लोग ऐसे हादसों में मारे गए जो तेज गति से वाहन चलाने की वजह से हुए। सबसे ज्यादा हादसों में दुपहिया वाहन ही शामिल पाए गए। इसके अलावा 47.7 प्रतिशत हादसे और 55.1 प्रतिशत मौतें खुले इलाकों में हुए, यानी ऐसे इलाकों में जहां ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। रिपोर्ट बताती है कि 67 प्रतिशत हादसे सीधी सड़कों पर हुए और सिर्फ 13.8 प्रतिशत हादसे घुमावदार, गड्ढों और ऊंची चढ़ाई वाली सड़कों पर हुए।

सबसे ज्यादा मौतें यूपी में

हादसों का राज्यवार आंकड़ा देखें तो पाएंगे कि सबसे ज्यादा सड़क हादसे तमिलनाडु में हुए लेकिन हादसों में सबसे ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश में मारे गए। आंकड़े बताते हैं कि 68 प्रतिशत हादसे ग्रामीण इलाकों में हुए, जबकि शहरों में 32 प्रतिशत हादसे दर्ज हुए।

आसान लाइसेंस, ढीले कार्यान्वयन

देश में वाहनों की संख्या तेजी से बढती जा रही है। ड्राइविंग लाइसेंस भी आसानी से मिल जाता है। सड़कों की स्थिति भी कमोबेश अच्छी है। ट्रैफिक कानून भी अच्छे खासे हैं, सख्त हैं। लेकिन जो नहीं है वह है नियमों, कानूनों का एन्फोर्समेंट। गाड़ी चलते वक्त मोबाइल का इस्तेमाल प्रतिबंधित है, गैरकानूनी है । लेकिन इस नियाम का कोई एन्फोर्समेंट नहीं है। गति सीमा को हर कोई जूते की नोक पर रखता है, लेन ड्राइविंग पता ही नहीं है। सीट बेल्ट, हेल्मेट तो लोग मजबूरी में ही लगाते हैं। शराब पी कर ड्राइविंग आम बात है। गाड़ियों की फिटनेस तो भगवान भरोसे है। गाड़ियों की सेफ बनावट से किसी को सरोकार ही नहीं। लोग कानून, खासकर ट्रैफिक कानून को कुछ समझते ही नहीं, इसकी एक बड़ी वजह है नेताओं, पुलिसवालों, रसूखवालों, बड़े अफसरों और महंगी बड़ी गाड़ी वालों के लिए नियम का जीरो एन्फोर्समेंट।

हिट एंड रन क्या, हर अपराध की सज़ा फांसी भी कर दें तो क्या होने वाला है? सज़ा हो भी तो और मुकदमे जल्द भी तो हों। किताब में सज़ा बढ़ाने से कहीं ज्यादा जरूरी है अपराध होने से पहले ही नियम कायदों का इन्फोर्समेंट और वह भी समान रूप से। एक दोषी ट्रक ड्राइवर को सज़ा जरूर होनी चाहिए। लेकिन किसी मंत्री, आईएएस या एमपी के सुपुत्रों को भी उतनी ही तीव्रता से सजा होनी चाहिए।

पर आप, सड़क पर अपनी हिफाज़त खुद करना सीखिए। सिर्फ बाइक या कार खरीद लेना काफी नहीं। ड्राइविंग सिर्फ स्टीयरिंग और एक्सीलेटर नहीं होती, ड्राइविंग और चलने की तमीज़ भी सीखिए। नहीं सीखेंगे समझेंगे तो अगली बार के एक्सीडेंट आंकड़ों में एक नम्बर बन कर रह जाएंगे। हम नहीं चाहते कि ऐसा हो। बाकी आपकी मर्जी।

(लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार ।)

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