Sanatana Dharma Row: सनातन धर्म विवाद पर मद्रास HC की बड़ी टिप्पणी- 'देश में बोलने की आजादी, इसका मतलब हेट स्पीच नहीं'

Madras HC on Sanatana Dharma: सनातन धर्म विवाद के बीच जस्टिस एन शेषशायी ने कहा, 'ऐसा लगता है कि एक विचार जोर पकड़ रहा है कि सनातन धर्म पूरी तरह से जातिवाद और अस्पृश्यता को बढ़ावा देने के बारे में है। एक ऐसी धारणा जिसे उन्होंने दृढ़ता से खारिज कर दिया।

Written By :  aman
Update:2023-09-16 17:10 IST

Madras HC on Sanatana Dharma (Social Media)

Madras HC on Sanatana Dharma : देश में सनातन धर्म (Sanatana Dharma Row) पर मचे बवाल के बीच शनिवार (16 सितंबर) को मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने अहम टिप्पणी की। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि, सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह है। इसमें राष्ट्र, राजा, अपने माता-पिता तथा गुरुओं के प्रति कर्तव्य और गरीबों की देखभाल करना शामिल है। मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एन. शेषशायी (Justice N Seshasayee) ने सनातन धर्म को लेकर हो रही जोरदार बहस और चारों तरफ मचे शोर पर चिंता जाहिर की है।

जस्टिस एन. शेषशायी ने आगे कहा, 'ऐसा लगता है कि एक विचार ने जोर पकड़ रहा है कि सनातन धर्म पूरी तरह से जातिवाद (Casteism) और अस्पृश्यता (Untouchability) को बढ़ावा देने के बारे में है। एक ऐसी धारणा जिसे उन्होंने दृढ़ता से खारिज कर दिया। 

'अस्पृश्यता' पर ये बोले न्यायाधीश

मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस शेषशायी ने ये भी कहा, 'समान नागरिक अधिकार वाले देश में अस्पृश्यता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। भले ही इसे 'सनातन धर्म' के सिद्धांतों के भीतर कहीं न कहीं अनुमति के रूप में देखा जाता है। फिर भी इसके लिए कोई स्थान नहीं हो सकता, क्योंकि संविधान के आर्टिकल-17 में घोषित किया गया है कि अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है।'

बोलने की आजादी मौलिक अधिकार, मगर…

जस्टिस शेषशायी ने इस बात पर जोर दिया कि, बोलने की आज़ादी (Freedom of Speech) एक मौलिक अधिकार है, मगर इसका मतलब ये नहीं कि नफरत भरे भाषण दिए जाएं। खासकर तब, जब यह किसी धर्म से जुड़ा हो। हाईकोर्ट ने ये सुनिश्चित करने की जरूरत पर बल दिया कि इस तरह के भाषण से किसी को चोट नहीं पहुंचे।

'हर धर्म आस्था पर टिका है'

जस्टिस ने आगे कहा, 'हर धर्म आस्था पर टिका होता है। आस्था अपनी प्रकृति में 'तर्कहीनता' को समायोजित करती है। इसलिए जब धर्म से जुड़े मामलों में बोलने की आज़ादी का इस्तेमाल किया जाता है, तो किसी के लिए भी यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि इससे किसी को भी चोट नहीं पहुंचे। दूसरे शब्दों में कहें तो बोलने की आज़ादी का मतलब 'घृणास्पद भाषण' (Hate Speech) नहीं हो सकता।'

उदयनिधि के बयान पर कोर्ट की टिप्पणी 

मद्रास हाईकोर्ट की ये टिप्पणी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे उदयनिधि स्टालिन (Udayanidhi Stalin) द्वारा सनातन धर्म के खिलाफ की गई हालिया टिप्पणियों को लेकर आई है। उदयनिधि को अपने बयान की वजह से भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, उन्होंने सनातन धर्म की तुलना 'डेंगू और मलेरिया' जैसी बीमारियों से की थी। 

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