Satanic Verses: ‘सैटेनिक वर्सेज़’ अब मिल रही बाज़ार में, जानिए क्यों लगा था बैन और क्यों हटा
Satanic Verses: ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार सलमान रुश्दी की विवादास्पद पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के 36 साल बाद चुपचाप भारत लौट आई है। इस पुस्तक का सीमित स्टॉक बुक स्टोर्स में बिक रहा है।
Satanic Verses: ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार सलमान रुश्दी की विवादास्पद पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के 36 साल बाद चुपचाप भारत लौट आई है। इस पुस्तक का सीमित स्टॉक बुक स्टोर्स में बिक रहा है।
क्यों लगा था बैन?
यह पुस्तक प्रकाशन के कुछ समय बाद ही मुश्किल में पड़ गई थी, आरोप लगा था कि यह पुस्तक इस्लाम, पैगम्बर मुहम्मद और कई इस्लामी हस्तियों का अपमान करती है। ईरान के अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने पुस्तक की निंदा की और 1989 में रुश्दी के साथ-साथ उनके संपादकों और प्रकाशकों की हत्या का आह्वान करते हुए एक फतवा जारी किया। इसके बाद पाकिस्तान में हिंसक प्रदर्शन हुए; ब्रिटेन में उपन्यास की प्रतियां जला दी गईं, जहां कई किताबों की दुकानों पर बमबारी की गई और कई देशों में इस कृति पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जान बचाने के लिए रुश्दी ने यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका में लगभग 10 साल छुपकर बिताए थे। जुलाई 1991 में इस उपन्यास के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की उनके कार्यालय में हत्या कर दी गई थी। 12 अगस्त, 2022 को एक लेबनानी-अमेरिकी हादी मटर ने एक परिचर्चा के दौरान मंच पर मौजूद सलमान रुश्दी पर चाकू से हमला कर दिया था जिससे उनकी एक आंख की रोशनी चली गई।
1980 के दशक का भारतीय राजनीतिक माहौल
मुस्लिम मौलवियों के आह्वान के बाद राजीव गांधी सरकार ने 1988 में द सैटेनिक वर्सेज़ पुस्तक के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। किताब पर प्रतिबंध ऐसे समय में लगाया गया जब भारत में राजनीतिक उथल-पुथल चल रही थी। राजीव गांधी सरकार कई विवादों से जूझ रही थी, जिसमें बोफोर्स घोटाला और मीडिया सेंसरशिप प्रयासों की आलोचना शामिल थी। इसके अलावा राजीव सरकार को शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने के फैसले की व्यापक रूप से आलोचना की गई, इसे धार्मिक दबाव के आगे झुकना बताया गया, खुद रुश्दी ने राजीव गांधी को एक खुला पत्र लिखकर इस कदम की निंदा की थी। बाद में सरकार ने दावा किया कि प्रतिबंध केवल पुस्तक के आयात पर लागू होता है, इसकी सामग्री पर नहीं लेकिन इससे आलोचनाएँ शांत नहीं हुईं।
मामला गया कोर्ट में
- कोलकाता के संदीपन खान नामक शख्स ने सैटेनिक वर्सेज़ के इम्पोर्ट पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को रद्द करने के लिए 2019 में एक याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने यह तर्क देते हुए अदालत का रुख किया था कि वह पुस्तक का आयात करने में असमर्थ हैं, क्योंकि 5 अक्टूबर, 1988 को केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा जारी अधिसूचना में सीमा शुल्क अधिनियम के अनुसार देश में इसके आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
- सरकारी अधिकारियों द्वारा अधिसूचना को अदालत में पेश करने में विफल रहने के बाद, दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले महीने फैसला सुनाया कि उसे यह मानना होगा कि “ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है।”
- 5 नवंबर को पारित एक आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और सौरभ बनर्जी की पीठ ने टिप्पणी की: "जो बात सामने आई है वह यह है कि कोई भी प्रतिवादी 5 अक्टूबर, 1988 की उक्त अधिसूचना प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे याचिकाकर्ता कथित रूप से व्यथित है और वास्तव में, उक्त अधिसूचना के कथित लेखक ने भी 2019 में दायर की गई रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान अधिसूचना की प्रति प्रस्तुत करने में अपनी असहायता दिखाई है।"
- पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि "उपर्युक्त परिस्थितियों के मद्देनजर, हमारे पास यह मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है, और इसलिए, हम इसकी वैधता की जांच नहीं कर सकते हैं और रिट याचिका को निरर्थक मानकर उसका निपटारा नहीं कर सकते हैं।"