हत्या के लिए दर्ज की गई FIR में नहीं था भगत सिंह का नाम, फिर भी दी गई फांसी

Update:2017-09-28 14:21 IST

लखनऊ: भारत के शहीदे आजम भगत सिंह ने लाहौर एसेम्बली में बम फेंक कर अंग्रेजों के कान खोले थे, लेकिन उन्हें इंग्लैंड के पुलिस अधिकारी सैंडर्स की हत्या के आरोप में फांसी दी गई थी, लेकिन दिलचस्प है कि हत्या के लिए दर्ज की गई एफआईआर में उनका नाम तो था ही नहीं।

लाहौर पुलिस को 1928 में यहां एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में दर्ज एफआईआर में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के नाम का जिक्र नहीं मिला है। भगत सिंह को फांसी दिए जाने के 83 साल बाद मामले में महान स्वतंत्रता सेनानी की बेगुनाही को साबित करने के लिए यह बड़ा प्रोत्साहन है।

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लाहौर में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष याचिकाकर्ता इम्तियाज राशिद कुरैशी ने याचिका दायर की थी, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के खिलाफ तत्कालीन एसएसपी जॉन पी सैंडर्स की हत्या के मामले में दर्ज प्राथमिकी की सत्यापित प्रति मांगी गई थी।

राशिद कुरैशी कहते हैं कि यदि भगत सिंह भारत के गौरव हैं तो हमारे भी बेटे हैं। राशिद का मतलब पाकिस्तान से है।

भगत सिंह को सैंडर्स की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी और महज 23 साल की उम्र में 1931 में उन्हें लाहौर में फांसी दी गई थी।

उन्हें फांसी दिए जाने के आठ दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद लाहौर पुलिस ने अदालत के आदेश पर अनारकली थाने के रिकॉर्ड की गहन छानबीन की और सैंडर्स हत्याकांड की प्राथमिकी ढूंढ़ने में कामयाब रही।

उर्दू में लिखी प्राथमिकी अनारकली थाने में 17 दिसंबर 1928 को शाम साढ़े चार बजे ‘दो अज्ञात लोगों’ के खिलाफ दर्ज की गई थी। अनारकली थाने का एक पुलिस अधिकारी मामले में शिकायतकर्ता था।

शिकायतकर्ता इस मामले का प्रत्यक्षदर्शी भी था और उसने कहा कि जिस व्यक्ति का उसने पीछा किया, वह 'पांच फुट पांच इंच लंबा था, हिंदू चेहरा, छोटी मूंछें और दुबली पतली और मजबूत काया थी। वह सफेद रंग का पायजामा और भूरे रंग की कमीज और काले रंग की छोटी क्रिस्टी जैसी टोपी पहने था।' मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120 और 109 के तहत दर्ज किया गया था।

लाहौर पुलिस की विधिक शाखा के एक इंस्पेक्टर ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (लाहौर) तारिक महमूद जारगाम को सीलबंद लिफाफे में प्राथमिकी की सत्यापित प्रति सौंपी। अदालत ने कुरैशी को प्राथमिकी की एक प्रति दी है।

कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह के मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधिकरण के विशेष न्यायाधीशों ने मामले के 450 गवाहों को सुने बिना उन्हें मौत की सजा सुनाई। भगत सिंह के वकीलों को उनसे जिरह का अवसर नहीं दिया गया।

कुरैशी ने लाहौर हाईकोर्ट में भी एक याचिका दायर की है, जिसमें भगत सिंह मामले को दोबारा खोलने की मांग की गई है। उन्होंने कहा, 'मैं सैंडर्स मामले में भगत सिंह की बेगुनाही को स्थापित करना चाहता हूं।' लाहौर हाईकोर्ट ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा है, ताकि सुनवाई के लिए वह वृहत पीठ का गठन करें।

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