खुशनशीब खाते है ये चिकन, काला कड़कनाथ की ये अनोखी कहानी
महाराष्ट्र के किसानों का आरोप है कि महारायत एग्रो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने कड़कनाथ प्रजाति के चूजों की संख्या बढ़ाने और बाद में मुर्गों को खरीदने की कारोबारी योजना के नाम पर भारी-भरकम निवेश कराया।
पुणे: आपने कुछ लोगों के मुंह से सुना होगा कि शरीर को सेहतमंद बनाना है तो फल फूल के साथ अण्डा और मुर्गा खाओ।
अगर आपको अपने स्वाद और सेहत चिन्ता है तो आपको सामने पेश है कई गुणों से परिपक्क मशहूर काले रंग के ‘कड़कनाथ’ मुर्गा ।
बताया जा रहा है कि कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गे के नाम पर महाराष्ट्र में करोड़ों का घोटाला हो गया।
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दरअसल, मुर्गे की यह प्रजाति मध्य भारत के कुछ हिस्सों में खासतौर पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में खासी लोकप्रिय है। इसे इसके पोषण और चिकित्सकीय मूल्यों की वजह से जाना जाता है।
आश्चर्य की बात है कड़कनाथ का एक किलोग्राम चिकन 900 रुपये तक का बिकता है। कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले मांस वाला चिकन है।
यह है पूरा मामला...
महाराष्ट्र के किसानों का आरोप है कि महारायत एग्रो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने कड़कनाथ प्रजाति के चूजों की संख्या बढ़ाने और बाद में मुर्गों को खरीदने की कारोबारी योजना के नाम पर भारी-भरकम निवेश कराया।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि कंपनी का मुख्यालय सांगली में स्थित है। इसके बाद कंपनी के चार अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है।
बताया जा रहा है कि अभी तक कंपनी के खिलाफ सांगली, सतारा, पुणे, कोल्हापुर, पालघर, नासिक और औरंगाबाद में कई मामले दर्ज हो चुके हैं। पुलिस अभी इस मामले में घोटाले की रकम का पता लगा रही है।
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शिकायतकर्ता का आरोप...
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उन्होंने कंपनी की योजना में 2.5 लाख रुपये का निवेश किया था लेकिन उन्हें वादे के अनुसार चूजे नहीं दिए गए।
स्थानीय जुबान में कालामासी...
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बता दें कि कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में कालामासी कहा जाता है। इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। इसमें अधिक मात्रा में प्रोटीन के साथ ही औषधीय गुण भी होते हैं।
वहीं दुसरी तरफ सफेद चिकन के मुकाबले इसमें कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी काफी कम होता है। फैट कम होने से हृदय और डायबिटीज रोगियों के लिए यह चिकन बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।
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कड़कनाथ...
कड़कनाथ प्रजाती का यह मुर्गा मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले का है। इस प्रजाति के मुर्गे के मीट को जीआई टैग मिल गया है। पिछले साल मई में करीब साढ़े छह साल लंबी लड़ाई के बाद कड़कनाथ की भौगोलिक पहचान का चिन्ह रजिस्टर्ड हुआ था।
साथ ही बता दें कि यह लड़ाई छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के बीच थी। दरअसल, छत्तीसगढ़ के एक संगठन ने दावा किया था कि कड़कनाथ मुर्गे की प्रजाति दंतेवाडा जिले की है, लेकिन कानूनी लड़ाई में झाबुआ ने बाजी मारी थी।
महंगा है कड़कनाथ...
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कड़कनाथ में विभिन्न वातावरण के प्रति अनुकूलन क्षमता अच्छी होने और विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है। अपने बेहतरीन स्वाद के कारण यह काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसमें अन्य नस्लों के मुकाबले प्रोटीन 25 फीसदी तक होता है।
साथ ही इसके मांस में वसा 0.73 से 1.05 फीसदी तक होता है, जबकि अन्य नस्लों में 13 से 25 फीसदी तक पाया जाता है। वसा कम होने के कारण कोलेस्ट्रॉल भी कम पाया जाता है।
साथ ही इसके मांस में विभिन्न प्रकार के अमीनो एसिड अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। विटामिन बी-1, बी-2, बी-6, बी-12, सी व ई इत्यादि भी अन्य नस्लों की तुलना में अत्यधिक मात्रा में होते हैं।