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झुमका गिरा रे.... सुलझेगी कड़ी या बन जायेगी पहेली?
दरअसल, बात भारत के विभाजन के समय की है, बताया जा रहा है कि भारत विभाजन के समय 2 सहेलियां एक-दूसरे से बिछड़ गईं और जिनके पास झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके थे।
इस्लामाबाद:
झुमका गिरा रे....
बरेली के बाजार में...
हां जी, आप अक्सर लड़कियों के कान में झुमका, बाला आदि कई प्रकार की ज्वैलरी देखें होंगे। आइये आपको लेकर चलते हैं झुमका से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी की ओर......
दरअसल, बात भारत के विभाजन के समय की है, बताया जा रहा है कि भारत विभाजन के समय 2 सहेलियां एक-दूसरे से बिछड़ गईं और जिनके पास झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके थे।
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क्या यह झुमका उन दोनों को एक बार फिर से मिला सकेगा। विभाजन की त्रासदी के बीच मानवीय रिश्तों की यह कहानी इस वक्त ट्विटर पर चर्चा की विषय बना हुआ है।
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साथ ही ट्विटर यूजर से अपील की गई है कि दोनों सहेलियों को फिर से मिलाने में वे मदद करें। पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, इस कहानी को ट्विटर पर भारतीय इतिहासकार व लेखिका आंचल मल्होत्रा ने साझा किया है।
जम्मू-कश्मीर के पुंछ से थीं किरन और नूरी...
बहरहाल, आंचल की एक छात्रा नूपुर मारवाह और उसकी दादी तथा दादी की बिछड़ जाने वाली एक सहेली की है। नूपुर की दादी अपनी सहेली से भारत विभाजन के समय बिछड़ गई थीं। बिछड़ते वक्त दोनों सहेलियों ने सोने के झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके को 'अपनी दोस्ती की कभी न मिटने वाली यादगार' के तौर पर अपने पास रख लिया था।
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वहीं आंचल ने लिखा है कि नूपुर की दादी किरन बाला मारवाह 1947 में 5 साल की थी और उनकी सहेली नूरी रहमान 6 साल की। दोनों का संबंध जम्मू-कश्मीर के पुंछ से था।
1947 में दोस्त चली गई, दोस्ती रह गई
बताया जा रहा है कि पाकिस्तान बनने के बाद नूरी व उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। दोनों सहेलियों के बिछड़ने का वक्त आया तब दोनों बच्चियों ने अपनी दोस्ती की याद में झुमके के एक जोड़े के एक-एक झुमके को अपने पास रख लिया। दोस्त चली गई, दोस्ती पास रह गई।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि वक्त गुजरता गया, सत्तर साल गुजर गए। एक दिन नूपुर ने अपनी दादी से स्कूल के प्रोजेक्ट के सिलसिले में देश विभाजन के बारे में पूछा।
किरन बाला मारवाह ने अपनी अलमारी को खोला और एक कान का झुमका अपनी पोती के हाथ पर बतौर विरासत रख दिया।
70 साल से संभालकर रखा है झुमका...
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किरन बाला ने लगभग 70 साल से इस उम्मीद पर इस झुमके को अपने पास रखा कि कभी तो उनकी सहेली उनसे मिलेगी।
ट्वीट में लिखा...
बता दें कि आंचल ने कई ट्वीट में यह कहानी शेयर की है। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि दशकों पहले बिछड़ जाने वाली सहेली की याद में ही उन्होंने पोती का नाम नूपुर रखा। नूपुर ने कहा कि इसके बाद मुझे इस बात का अहसास हुआ कि दादी क्यों उसे कई बार नूरी कहकर बुलाती हैं।
क्या फिर से मिलेंगी किरन और नूरी?
आंचल ने ट्वीट में पाकिस्तान के ट्विटर यूजर से अपील की है कि वे झुमकों की इस जोड़ी को और सहेलियों को एक-दूसरे से मिलाने के लिए कोशिश करें।
उन्होंने लिखा कि सरहद के उस पार जो लोग इन संदेशों को पढ़ें, अगर उन्होंने अपने परिवार या नूरी दादी या नूरी नानी से यह कहानी सुन रखी हो, जिनके पास एक झुमका मौजूद है, तो वे कृपया संपर्क करें। किरन और नूरी को एक बार फिर मिलना चाहिए।