सक्सेस मंत्र : ऑफिस में होते हैं दोस्ती के अलग—अलग मायने

Update:2017-12-02 15:49 IST

लखनऊ : हर किसी की ऑफिस में दोस्ती के अलग मायने होते हैं। जैसा दोस्त दिखता है वैसा होता नहीं हैं। कुछ कलीग सामने जितने अच्छे होते हैं, पीठ के पीछे उतने ही बुरे होते हैं। इसके लिए अंग्रेजी में सटीक शब्द है-फ्रेनिमीज यानी ऐसे कलीग जो अच्छे होने का दावा तो करते हैं, पर भरोसेमंद नहीं हो सकते। ऑफिस में हर युवा प्रतिस्पर्धी होता है, जो हर कीमत पर अपने को जीतते हुए देखना चाहता है। वहीं कई युवा ऐसे होते हैं जो न तो आपकी सफलता का जश्न मनाएंगे, न आपके लिए खुश होंगे। वे आपके आलोचक भी होते हैं। ऐसे में यह सोचना भ्रम होगा कि वह आपके हक में कोई बात करेंगे। इसलिए कुछ बातों पर ध्यान देने की जरूरत होती है। जानते हैं उन्हीं के बारे में।

अपने काम दें ज्यादा ध्यान

ऑफिस में होने वाली बातों पर निगाह डालने से स्पष्ट होता है कि इससे काम करने वालों की भावनाएं प्रभावित होती हैं और अंतत: दक्षता और उत्पादकता पर भी असर पड़ता है। ऐसे युवा आपको हर जगह मिल सकते हैं जो दूसरों के काम को प्रभावित करेंगे। हालांकि यह भावना स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का संकेत नहीं है, लेकिन इससे कई बार चीजें हाथ से निकल सकती हैं। इसलिए हमेशा सावधान रहें और अपने काम पर ध्यान दें।

खुद का व्यवहार अच्छा रखें

ऑफिस में दोहरेपन से भरे रिश्ते होते हैं जो सेहत के लिए भी नुकसानदेह हो सकते हैं। अगर वर्कप्लेस पर हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएं तो जिनके साथ काम करने में समस्याएं हैं, उन टीमों को बदल सकते हैं। वर्कप्लेस पर सबको व्यवहार कुशलता का प्रशिक्षण दें। कुछ खराब होने पर भी अपना आपा न खोएं। सबके साथ अच्छा व्यवहार रखें।

संवेदनशील बनें

एक्सपर्ट की मानें तो कार्यस्थल पर ऐसा व्यवहार किया जाना चाहिए जो सभी को स्वीकार्य हो। आपसी टकराव टालने का यही सही तरीका है। दिशा-निर्देश, टीम निर्माण गतिविधि, प्रशिक्षण और विकास, नेतृत्व प्रशिक्षण और प्रतिभा प्रबंधन कुछ ऐसी तरकीबें हैं, जो कर्मचारियों के बीच टकराव को टालने के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। इससे निपटने का सबसे बढिय़ा तरीका है कि दफ्तर के सदस्यों को अपने कामकाज को प्रभावी बनाने के प्रति संवेदनशील बनाया जाना चाहिए और बातों को गहराई से सोचने का बाद ही आगे बढऩा चाहिए।

ज्यादा तनाव न पालें

ऑफिस को लेकर किसी को भी ज्यादा तनाव नहीं पालना चाहिए। एक्सपर्ट कहते हैं की हास्यबोध दफ्तर के अंदर ही ठीक है। हमें इस बहाने लोगों की कार्यक्षमता और उनकी सीमाएं समझने में आसानी होती है। दफ्तर की बातों को लेकर ज्यादा तनाव नहीं लेना चाहिए। हां,उस पर गंभीरता से चिंतन की जरूरत होती है, लेकिन इसमें तनाव को जगह न दें।

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