ऐसे तो खत्म हो जाएगा सुंदरवन , बढ़ता समुद्र का स्तर पूरे द्वीप समूह को निगल रहा है

Update:2019-01-04 13:30 IST
ऐसे तो खत्म हो जाएगा सुंदरवन , बढ़ता समुद्र का स्तर पूरे द्वीप समूह को निगल रहा है

बेंगलुरु। गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियां बंगाल की खाड़ी में जहां पर मिलती हैं, उस मुहाने पर सुंदरबन डेल्टा बना हुआ है। सुंदरबन विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। ये बेहद उपजाऊ क्षेत्र है क्योंकि तीनों नदियां अनुमानित 100 करोड़ टन सिल्ट या तलछट हर साल यहां जमा करती हैं। सुंदरबन विश्व का सबसे बड़ा मंग्रोव वनस्पति वाला जंगल है, मतलब कि ये जंगल हमेशा दलदल से घिरा रहता है। सुंदरबन का लगभग 40 फीसदी भारत में है, बाकी पड़ोसी बांग्लादेश में है। सुंदरबन यूनेस्को दुनिया में 209 प्राकृतिक धरोहर स्थलों की सूची में शामिल है, जो अपने स्थलीय, समुद्री और जलीय आवासों में जैव विविधता के लिए असाधरण माने जाते हैं।

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बुरी खबर ये है कि पिछले 40 वर्षों में सुंदरबन ने 220 वर्ग किमी (लगभग कोलकाता के आकार का) समुद्र में खो दिया है। बढ़ता समुद्र का स्तर पूरे द्वीप समूह को निगल रहा है। नतीजतन यहां रहने वाले लोग धीरे-धीरे पलायन कर रहे हैं। बांग्लादेश में पडऩे वाले सुंदरबन के हिस्से से और साथ ही भारत के सुंदरबन से भी। प्रवास के प्रभावों को 2,000 किमी से अधिक दूर दक्षिण-पश्चिम में महसूस किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार, बेंगलुरु के कुछ कन्नड़-माध्यम सरकारी स्कूलों में 40 फीसदी छात्र बंगाली बोलते हैं। यानी जिन परिवारों के ये बच्चे हैं वह सुंदरवन इलाके से पलायन कर यहां आए हैं।

अध्ययनों से पता चलता है कि सिर्फ सुंदरबन में ही नहीं, बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल में कई जिले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। 2060 तक, दुनिया भर में लगभग 140 करोड़ लोगों के पर्यावरणीय प्रवासी बन जाने का खतरा होगा। कुछ आंतरिक और अन्य सीमाओं के पार। समुद्र तल में वृद्धि की वार्षिक दर वर्ष 2100 तक तिगुनी होने की उम्मीद है, जिससे कृषि के साथ-साथ निचले इलाकों में रोजमर्रा की जिंदगी भी सुंदरबन जैसे अस्थिर हो जाएगी।

विश्व में निचले इलाकों में रहने वाले 10 में से एक व्यक्ति भारत से है। चीन, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और वियतनाम के साथ, भारत में सबसे अधिक आबादी है, जो बढ़ते समुद्र स्तर के कारण होने वाले बाढ़ और चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित होगी, जैसा कि 2015 के एक अध्ययन में कहा गया है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान के आकलन के लिए विश्व निकाय, 'इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज' (आईपीसीसी) की सितंबर 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, मानव गतिविधियां पहले से ही 1 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग की वजह हैं। 195 देशों की सरकारें इस पैनल में शामिल हैं। जलवायु प्रणाली में गर्मी का 90 फीसदी से अधिक वास्तव में महासागरों में होता है। जैसे ही महासागर गर्म होते हैं, यह फैलता है और समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।

समुद्र का स्तर न केवल इस सदी तक ,बल्कि पिछले 2100 तक भी बढ़ता रहेगा। इसका मतलब है, कम से कम छोटे द्वीपों, कम-तटीय इलाकों और डेल्टा पर रहने वाले लोगों के लिए उनके खेतों में, समुद्र से अधिक खारा पानी समान रूप से प्रवेश करेगा। कृषि के लिए अनुपयुक्त मिट्टी, बाढ़ में वृद्धि, लगातार चक्रवात और बुनियादी ढांचे की क्षति होगी। और ज्यादा से ज्यादा का मतलब है कि वे जिस जमीन को घर कहते हैं, वह जमीन पानी के नीचे होगी।

पर्यावरण की वजह से प्रवासी बनने वाले लगभग 96 फीसदी भारत के दूसरे क्षेत्रों में जाते हैं। इन प्रवासियों में से 83 फीसदी पुरुष और 17 फीसदी महिलाएं हैं। अधिकांश युवा हैं; जिनकी उम्र 21 से 30 वर्ष के बीच है । अध्ययन में शामिल लोगों ने कहा कि वे रोजगार के अवसरों के लिए आगे बढ़ रहे थे, क्योंकि कृषि का कोई भरोसा नहीं था।

 

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