SC on Abortion case: कोर्ट का 'सुप्रीम' फैसला, 26 हफ्ते के गर्भ को गिराने की नहीं दी इजाजत

Supreme Court Verdict : सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहिता को 26 हफ्ते से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया क्योंकि, भ्रूण स्वस्थ था। एम्स मेडिकल बोर्ड ने माना है कि बच्चे के जन्म लेने के दौरान कोई समस्या नहीं होगी।

Report :  aman
Update: 2023-10-16 11:53 GMT

SC on Abortion case (Social Media)

Supreme Court Verdict : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार (16 अक्टूबर) को बड़ा फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने एक महिला के 26 हफ्ते के गर्भ को गिराने की इजाजत देने से साफ इनकार कर दिया। कोर्ट ने ये निर्णय तब लिया, जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है कि बच्चा गर्भ में सामान्य है। इस मामले में बीते बुधवार को भी सुनवाई हुई थी, लेकिन तब दो सदस्यीय खंडपीठ के बीच सहमति नहीं बन पाई थी। दोनों जजों के मत भिन्न थे।

जिसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करने वाली एक महिला की याचिका खारिज कर दी है। 

क्या कहा CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने? 

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज कहा कि, 'गर्भावस्था की अवधि 24 हफ्ते से अधिक हो गई है। ये मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) की अनुमति की सीमा में नहीं आता है। इसलिए 'टर्मिनेशन' की अनुमति नहीं दी जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, भ्रूण 26 हफ्ते और 5 दिन का है। सीजेआई ने कहा, मां को तत्काल कोई खतरा नहीं है। इसमें कहा गया है कि भ्रूण में कोई विसंगति भी नहीं थी। खंडपीठ ने कहा, गर्भावस्था की लंबाई 24 हफ्ते से अधिक हो गई है। यह लगभग 26 सप्ताह और 5 दिन की है। गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति (Medical Termination) की अनुमति नहीं दी जा सकती।' 

 
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AIIMS की नई रिपोर्ट में क्या?

पिछले बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महिला के स्वास्थ्य जांच के आदेश दिए थे। आज अदालत में पेश एम्स की नई रिपोर्ट में बताया गया कि गर्भ में पल रहा बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है। बच्चे में किसी प्रकार की कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है। महिला गर्भावस्था के बाद मानसिक परेशानी से जूझ रही है, मगर इसके लिए जो दवाई वो ले रही है, उसका बच्चे की सेहत पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा। महिला को अन्य वैकल्पिक दवाइयां दिए जाने की भी सलाह दी गई है। 

क्या है मामला?

विवाहित महिला पहले से दो बच्चों की मां है। उसने अपनी मानसिक और पारिवारिक समस्याओं की वजह से गर्भ गिराने की मांग की। 9 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) को महिला को भर्ती कर गर्भपात की प्रक्रिया (Abortion Procedure) पूरी करने का आदेश दिया था। मगर, 10 अक्टूबर को एम्स के एक विशेषज्ञ डॉक्टर ने केंद्र सरकार की वकील को ईमेल भेज बताया कि बच्चा गर्भ में सामान्य प्रतीत हो रहा है। ऐसे में उसे मां के गर्भ से बाहर निकाला गया, तो उसके जीवित बाहर आने की संभावना है। ऐसी स्थिति में गर्भपात के लिए पहले ही उसकी धड़कन बंद करनी होगी। इतना ही नहीं, डॉक्टर ने ये भी बताया कि अगर बच्चे को अभी बाहर निकालकर जीवित रखा गया, तो वह शारिरिक और मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है।

महिला की याचिका पर कोर्ट ने AIIMS के गायनिक विभाग से उसकी जांच के बाद गर्भपात करने का आदेश दिया था। महिला की जांच में डॉक्टरों ने जो रिपोर्ट दी उसमें बताया गया कि भ्रूण की धड़कन चल रही है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एम्स को अपनी पिछले रिपोर्ट में ही इस बात का जिक्र कर देना चाहिए था। 

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CJI ने कहा- गर्भ में पल रहे बच्चे का भी अधिकार

इससे पहले, पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था, 'ये नाबालिग पर हिंसा या यौन हिंसा का मामला नहीं है। बल्कि, ये एक शादीशुदा महिला है। उसके पहले से दो बच्चे हैं। कोर्ट ने पूछा आपने 26 हफ्ते तक इंतजार कैसे किया? आप चाहते हैं कि हम दिल की धड़कन रोकने के लिए एम्स को निर्देशित करें? अगर, अभी डिलीवरी होती है तो बच्चे में असामान्यताएं होंगी। आनुवंशिक समस्याओं (Genetic Problems) की वजह से नहीं, बल्कि समय से पहले डिलीवरी के कारण कुछ और हैं।'

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