बुलडोज़र एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के साफ़ और सख्त निर्देश – जानिए सब कुछ

Bulldozer Action : बुलडोजर जस्टिस' पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने बुलडोजर एक्शन को गैरकानूनी और असंवैधानिक ठहराया है।

Newstrack :  Network
Update:2024-11-13 15:40 IST

Bulldozer Action : ‘बुलडोजर जस्टिस' पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने बुलडोजर एक्शन को गैरकानूनी और असंवैधानिक ठहराया है। कोर्ट ने कहा है सिर्फ इसलिए इमारतों या घरों को नहीं गिराया जा सकता कि वे किसी ऐसे व्यक्ति के स्वामित्व या कब्जे में हैं जिस पर किसी अपराध का आरोप है या वह दोषी है। न्यायालय ने कहा, "महिलाओं, बच्चों और वृद्ध व्यक्तियों को रातों-रात सड़कों पर घिसटते हुए देखना सुखद दृश्य नहीं है। अगर अधिकारी कुछ समय के लिए अपना हाथ थामे रहें तो उन पर कोई विपत्ति नहीं आएगी।"

न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्याय करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का आह्वान करते हुए कई निर्देश भी जारी किए हैं।

- अगर ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए।

- बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण की अनुमति नहीं है। नोटिस रजिस्टर्ड डाक द्वारा भवन स्वामी को भेजा जाना चाहिए तथा ध्वस्त किए जाने वाले ढांचे के बाहर चिपकाया जाना चाहिए। आगे कोई भी ध्वस्तीकरण कार्रवाई करने से पहले नोटिस की तिथि से कम से कम 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।

- नोटिस में बताया जाना चाहिए कि किस वजह से अधिकारियों ने ध्वस्तीकरण का प्रस्ताव रखा है, नोटिस में वह तिथि भी दी जानी चाहिए जिस पर प्रभावित पक्ष के लिए व्यक्तिगत सुनवाई तय की गई है तथा बताया जाना चाहिए कि किस अधिकारी के समक्ष सुनवाई तय की गई है। इसमें उन दस्तावेजों की सूची भी शामिल होनी चाहिए जिन्हें नोटिस प्राप्तकर्ता को उत्तर देते समय प्रस्तुत करना होगा।

- बैक डेट से दी जाने वाली नोटिसों के इस्तेमाल को रोकने के लिए कोर्ट ने कहा है कि जैसे ही किसी को कारण बताओ नोटिस दिया जाता है, उसकी सूचना जिले के कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट को ईमेल द्वारा भेजी जानी चाहिए तथा कलेक्टर/डीएम के कार्यालय से मेल की प्राप्ति की पुष्टि करते हुए एक ऑटो जेनरेटेड जवाब भी जारी किया जाना चाहिए। कलेक्टर और डीएम को इस उद्देश्य के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने हैं और एक ईमेल पता आवंटित करना है। यह ईमेल पता आज से एक महीने के भीतर सभी नगरपालिका और भवन विनियमन और विध्वंस के प्रभारी अन्य अधिकारियों को सूचित किया जाना है।

- तीन महीने के भीतर एक ख़ास डिजिटल पोर्टल बनाया जाना है, जहाँ ऐसे नोटिस, उत्तर और अंततः पारित आदेश का विवरण उपलब्ध कराया जाएगा।

- नामित प्राधिकारी प्रभावित व्यक्ति को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देगा और ऐसी सुनवाई के मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा।

- एक बार अंतिम आदेश पारित होने के बाद, बताया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत कंस्ट्रक्शन का निर्माण का अपराध समझौता योग्य है कि नहीं। अगर संरचना निर्माण का सिर्फ एक हिस्सा अवैध/गैर-समझौता योग्य पाया जाता है, तो यह जांचना होगा कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र उपाय क्यों है। इस प्रकार पारित आदेश (यह निर्धारित करने पर कि क्या विध्वंस की आवश्यकता है) डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किए जाएंगे।

- आदेश के 15 दिनों के भीतर बिल्डिंग मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाना चाहिए। संपत्ति को ध्वस्त करने के लिए कदम तभी उठाए जा सकते हैं, जब 15 दिन की यह अवधि बीत जाने के बाद भी व्यक्ति द्वारा अवैध संरचना को हटाया न गया हो और यदि किसी अपीलीय निकाय ने ध्वस्तीकरण पर रोक नहीं लगाई हो। सिर्फ वही निर्माण ध्वस्त किया जाएगा, जो अनधिकृत पाया गया हो और समझौता करने योग्य न हो।

- ध्वस्तीकरण से पहले, संबंधित अधिकारी द्वारा दो पंचों (गवाहों) द्वारा हस्ताक्षरित एक विस्तृत निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की जाएगी।

- ध्वस्तीकरण की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जानी है। वीडियो रिकॉर्डिंग को सुरक्षित रखना है। ध्वस्तीकरण की कार्यवाही में किन अधिकारियों/पुलिस अधिकारियों/सिविल कर्मियों ने भाग लिया, इसकी रिकॉर्डिंग करते हुए एक ध्वस्तीकरण रिपोर्ट तैयार की जानी है और संबंधित नगर आयुक्त को भेजी जानी है। यह रिपोर्ट डिजिटल पोर्टल पर भी प्रदर्शित की जानी है।

- न्यायालय ने कहा कि ये निर्देश सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे जाने हैं।

कोर्ट में पहले क्या हुआ था?

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा आपराधिक कार्यवाही में अभियुक्तों के घरों या दुकानों पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ शिकायत उठाने वाली याचिकाओं पर अदालत में सुनवाई हुई थी। इस मामले में फैसला 1 अक्टूबर को सुरक्षित रखा गया था, कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया था कि शीर्ष अदालत द्वारा जारी किए जाने वाले निर्देश पूरे भारत में लागू होंगे और किसी विशेष समुदाय तक सीमित नहीं होंगे।

यह घटनाक्रम (तत्कालीन) सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के उस फैसले के एक सप्ताह बाद आया है जिसमें कहा गया था कि कानून के शासन के तहत बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है।

सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों की ओर से पेश हुए। जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह, संजय हेगड़े, एमआर शमशाद और अधिवक्ता निजाम पाशा और अनस तनवीर प्रभावित पक्षों की ओर से पेश हुए। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ‘पर्याप्त आवास पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक’ की ओर से पेश हुईं।

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