SC on Benami Transaction: बेनामी लेनदेन पर अब नहीं जाना होगा जेल, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

SC on Benami Transaction: बेनामी लेनदेन के बारे में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है और कहा है कि बेनामी लेनदेन ) पर सज़ा का प्रावधान असंवैधानिक है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2022-08-23 16:13 IST

सुप्रीम कोर्ट: Photo- Social Media

SC on Benami Transaction: बेनामी लेनदेन के बारे में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है और कहा है कि बेनामी लेनदेन (benami transaction) पर सज़ा का प्रावधान असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 की धारा 3 (2) असंवैधानिक है जिसमें प्रावधान है कि जो कोई किसी तरह का बेनामी लेनदेन करता है, उसे तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि ये संविधान के अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन है।

कोर्ट ने कहा कि - "हम 1988 की धारा 3 (2) को असंवैधानिक मानते हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि इस तरह के जबरिया प्रावधान का पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं हो सकता है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 1988 के अधिनियम में 2016 का संशोधन पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि संशोधन को केवल प्रक्रियात्मक नहीं माना जा सकता।

बेनामी लेनदेन के लिए सजा

दरअसल, अधिनियम में एक संशोधन के जरिए बेनामी लेनदेन के लिए सजा को तीन साल से बढ़ाकर सात साल कर दिया था, साथ ही बेनामी संपत्ति (benami property) के उचित बाजार मूल्य का 25 प्रतिशत तक जुर्माना कर दिया था। शीर्ष अदालत का फैसला केंद्र सरकार (Central government) द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High Court) के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर आया, जिसमें कहा गया था कि 2016 का संशोधन अधिनियम प्रकृति में संभावित यानी जिस तिथि को संशोधन हुआ सिर्फ तभी से प्रभावी माना जायेगा। संशोधित अधिनियम 1 नवम्बर 2016 से लागू किया गया था।

लेनदेन की परिभाषा का विस्तार

नए अधिनियम ने बेनामी के रूप में वर्गीकृत लेनदेन की परिभाषा का विस्तार किया था और कठोर दंड की व्यवस्था की जिसके चलते ढेरों कंपनियां और व्यक्ति जांच के दायरे में आ गए क्योंकि अधिनियम को पूर्वतिथि से प्रभावी मान लिया गया था। आयकर विभाग ने कानून के तहत पहले की अवधि के लिए नकद हस्तांतरण, संपत्ति सौदों के लिए हजारों नोटिस जारी किए थे।

शीर्ष अदालत ने माना कि 2016 के अधिनियम का केवल संभावित प्रभाव है और इस प्रकार, संशोधन से पहले की गई सभी कार्रवाइयों को रद्द कर दिया जाता है।

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