केंद्र के पक्ष में SC का फैसलाः IPS को वापस बुलाने का अधिकार बरकरार, जानें मामला
पिछले साल दिसंबर में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नद्दा ने कार्यक्रम पर हुए हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से कहा था कि 3 आईपीएस अधिकारियों को रिलीज नहीं करेगी। अब IPS अधिकारीयों को अपने पास प्रतिनियुक्ति पर बुलाने के केंद्र के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने आज खारिज कर दी।
नई दिल्ली: पिछले साल दिसंबर में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नद्दा ने कार्यक्रम पर हुए हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से कहा था कि 3 आईपीएस अधिकारियों को रिलीज नहीं करेगी। अब IPS अधिकारीयों को अपने पास प्रतिनियुक्ति पर बुलाने के केंद्र के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने आज खारिज कर दी।
जज नहीं हुए सहमत
बता दें, कि IPS के ट्रांसफर से जुड़े नियम के मुताबिक केंद्र राज्य सरकार की मर्ज़ी न होने पर भी किसी अधिकारी को अपने पास डेप्यूटेशन पर बुला सकता है। पश्चिम बंगाल के रहने वाले वकील अबु सोहेल ने इस नियम को गलत बताते हुए याचिका दाखिल की थी।
आज यह मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भाट ने देखी। याचिकाकर्ता अबू सोहेल ने दलीलें रखने की कोशिश की। लेकिन IPS कैडर रूल्स, 1954 के नियम 6(1) को असंवैधानिक बताने वाली इस याचिका से जज सहमत नहीं थे। जिसके चलते याचिका खारिज कर दी।
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ये है नियम
दरअसल, भारतीय पुलिस सेवा (IPS) एक अखिल भारतीय सेवा है, जिसमें अधिकारीयों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है। IPS अधिकारीयों का कैडर आवंटन केंद्र सरकार करता है। किसी राज्य में IPS अधिकारी का कैडर में आवंटन होने के बाद वह राज्य सरकार के तहत काम करता है। राज्य सरकार ही उसे किसी पद पर नियुक्त करती है । ज़रूरत के समय उनका ट्रांसफर करती है।
वही ज़रूरत पड़ने पर केंद्र सरकार किसी IPS अधिकारी को सेंट्रल डेप्यूटेशन यानी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अपने पास बुला सकती है. जो एक निश्चित समय तक के लिए किया जा सकता है। बाद में वह अधिकारी अपने मूल कैडर में लौट जाता है।
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