PIL में नहीं थी कोई जनहित की बात, SC ने लगाया 25 लाख का जुर्माना

जनहित याचिका (पीआईएल) के सिद्धांत के दुरुपयोग का दोषी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक सामाजिक कार्यकर्ता को पर 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है।

Update: 2017-07-04 08:18 GMT
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नई दिल्ली: जनहित याचिका (पीआईएल) के सिद्धांत के दुरुपयोग का दोषी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक सामाजिक कार्यकर्ता को पर 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कर्नाटक विधानसभा के विस्तार के विरोध में दाखिल जनहित याचिका पर नाराजगी जताई है।

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क्या है मामला ?

सामाजिक कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल कर कर्नाटक सरकार के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें सरकार ने गुलबर्गा जिले में लघु विधानसभा स्थानांतरित करने का प्रस्ताव किया था। दरअसल, सरकार ने प्रशासनिक दफ्तरों के लिए सरकार की कृषि विभाग की पांच एकड़ जमीन को चिन्हित किया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इससे सीड फार्मिंग को नुकसान पहुंचेगा। इससे पहले हाईकोर्ट ने मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था।

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कोर्ट ने क्या कहा ?

जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर की बेंच ने कहा कि लघु विधानसभा स्थानांतरित करने का मामला प्रशासनिक मामला है। इसमें जनहित कहां से आ गया? यह जनहित से जुड़ा मामला ही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सरकार के कामकाज के कार्यालय परिसर लघु विधान को गुलबर्गा में 6 किलोमीटर दूर ले जाना जनहित का मामला नहीं है।

जुर्माना कम करने की मांग

याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने कोर्ट से गुजारिश की कि 25 लाख रुपए का जुर्माना बहुत ज्यादा है। इस जुर्माने को कम किया जाए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह 25 लाख रुपए आप रजिस्ट्री में जमा कराएं।

याचिकाकरता का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं

मामले की सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता का इस मामले से कुछ भी लेना देना नहीं है। याची ने बिना वजह याचिका दाखिल कर दी है।

 

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