SC on Love Marriage: 'लव मैरिज में तलाक के मामले ज्यादा हो रहे हैं', जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गवई ने ऐसा कहा
SC on Love Marriage: पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जिसे सुनते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा, लव मैरिज में तलाक के मामले ज्यादा हो रहे हैं।
SC on Love Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले को सुनते हुए लव मैरिज और तलाक (Love Marriage and Divorce) पर टिप्पणी की। दरअसल, एक पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही थी। जिसे सुनते हुए जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gavai) ने कहा कि, 'लव मैरिज में तलाक के मामले ज्यादा हो रहे हैं।
शीर्ष अदालत में जिस मामले को सुना जा रहा था, उसमें दंपति ने लव मैरिज किया था। वकील की तरफ से इसकी जानकारी मिलने पर जस्टिस गवई ने ये टिप्पणी की। हालांकि, इस टिप्पणी को पूरी तरह न्यायाधीश की व्यक्तिगत टिप्पणी माना जाएगा। ये आदेश का हिस्सा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट जिस मामले को सुन रहा था उसमें उसने पति-पत्नी को मध्यस्थता (Mediation) के जरिए विवाद सुलझाने का निर्देश दिया।
शादी का जारी रहना असंभव, तो तलाक
बार एंड बेंच (Bar and Bench) के अनुसार, 'शीर्ष अदालत ने कहा कि हाल के एक फैसले के मद्देनजर उसकी (पति और पत्नी) सहमति के बिना तलाक दे सकती है।' दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि, शादी का जारी रहना असंभव होने की स्थिति अर्थात Irretrievable Breakdown of Marriage में वह अनुच्छेद- 142 के तहत अपनी तरफ से तलाक का आदेश दे सकता है।
जानें क्या है अनुच्छेद-142?
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कई मामलों में अनुच्छेद- 142 का इस्तेमाल करते हुए तलाक का आदेश दिया था। दरअसल, अनुच्छेद- 142 में के मुताबिक, न्याय के हित में सुप्रीम कोर्ट कानूनी औपचारिकताओं को दरकिनार करते हुए किसी भी तरह का आदेश दे सकता है।
6 महीने की क़ानूनी बाध्यता भी जरूरी नहीं
जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjeev Khanna) की खंडपीठ ने फैसला पढ़ते हुए कहा था कि, 'जब शादी को जारी रखना असंभव हो, तब सुप्रीम कोर्ट सीधे भी तलाक आदेश दे सकता है। आपसी सहमति से तलाक के मामले में जरूरी छह महीने के इंतजार का कानूनी प्रावधान भी इसमें लागू नहीं होगा। हालांकि, अदालत ने कहा, इस फैसले को आधार बनाकर तलाक का मुकदमा सीधे हाईकोर्ट में दाखिल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने ये भी कहा, कि तलाक के लिए निचली अदालत की पहले वाली प्रक्रिया का पालन करना पड़ेगा।