Kisan Andolan पर बड़ी खबर: SC ने दोनों को दिया मौका, अंत में सुनाया फैसला
केंद्र सरकार की ओर से पारित तीनों ने कृषि कानूनों का किसान संगठन लंबे समय से विरोध कर रहे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 49 दिनों से हजारों किसानों ने डेरा डाल रखा है और इस बाबत केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच आठ दौर की बातचीत हो चुकी है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। केंद्र सरकार के तीनों नए कृषि कानूनों पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। शीर्ष अदालत ने मोदी सरकार को बड़ा झटका देते हुए अगले आदेश तक के लिए नए कृषि कानूनों के अमल पर यह रोक लगाई है। इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने का संकेत देते हुए सोमवार को ही शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा था कि आप कानूनों के अमल पर रोक लगाएं अन्यथा यह काम हम करेंगे। किसानों से बातचीत बार-बार बेनतीजा रहने पर शीर्ष अदालत ने केंद्र को कड़ी फटकार भी लगाई थी।
ये भी पढ़ें…किसान आंदोलन: SC में सरकार की अपील- कमेटी के सामने आने का भरोसा दें किसान
अब सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक के साथ ही चार सदस्यीय कमेटी का भी गठन किया है जो समस्या के समाधान के लिए बातचीत करेगी। यह कमेटी नए कानूनों पर जारी विवाद के बिंदुओं को समझने के बाद सर्वोच्च अदालत को इस बाबत रिपोर्ट सौंपेगी।
आठ दौर की बातचीत बेनतीजा
केंद्र सरकार की ओर से पारित तीनों ने कृषि कानूनों का किसान संगठन लंबे समय से विरोध कर रहे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 49 दिनों से हजारों किसानों ने डेरा डाल रखा है और इस बाबत केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच आठ दौर की बातचीत हो चुकी है।
सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है और आंदोलन लगातार तेजी पकड़ता जा रहा है।
किसानों ने गणतंत्र दिवस के दिन किसान परेड निकालने का भी एलान कर रखा है। इसी के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी।
कमेटी के खिलाफ थे किसान संगठन
मंगलवार को सुनवाई के दौरान किसानों की ओर से कमेटी के गठन के प्रस्ताव का जबर्दस्त विरोध किया गया और किसान संगठनों की ओर से कमेटी के सामने न पेश होने की बात कही गई। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत के दौरान भी सरकार की ओर से कमेटी के गठन का प्रस्ताव किया गया था मगर किसान संगठनों ने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
ये भी पढ़ें…किसान आंदोलन: करनाल मामले में पुलिस का एक्शन, 71 लोगों पर FIR दर्ज
कमेटी से करना होगा सहयोग
सुप्रीम कोर्ट में भी किसान संगठनों ने यही रवैया अपनाया तो इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कमेटी के गठन का आदेश दिया और कहा कि अगर इस समस्या का समाधान निकालना है तो किसान संगठनों को कमेटी के सामने पेश होना ही होगा।
कमेटी में होंगे चार सदस्य
सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस समस्या के समाधान के लिए जिस कमेटी का गठन किया गया है उसमें चार लोगों को शामिल किया गया है। भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, प्रमोद कुमार जोशी (अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान), अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल धनवट को कमेटी का सदस्य बनाया गया है।
यह कमेटी किसान संगठन और सरकार के बीच विवाद के बिंदुओं को समझने के बाद अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी। कमेटी की ओर से सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट से जाने तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक जारी रहेगी।
सरकार और किसान संगठनों को फटकार
इस महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत और चीफ जस्टिस ने सरकार और किसान संगठनों को जमकर फटकार भी लगाई। चीफ जस्टिस ने कहा कि कमेटी को लेकर किसी को चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि यह कमेटी सबकी बात सुनेगी। जिसे भी इस मुद्दे का समाधान चाहिए, वह कमेटी से संपर्क स्थापित कर सकता है।
उन्होंने कहा कि कमेटी कोई आदेश जारी नहीं करेगी यह केवल सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम समस्या का समाधान करना चाहते हैं। इसलिए हम यह नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के पास नहीं जाएंगे।
ये भी पढ़ें…किसानों की ट्रैक्टर रैली: सरकार ने दाखिल किया हलफनामा, सुप्रीम कोर्ट से की ये अपील
बोबडे को बता डाला साक्षात भगवान
कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के आदेश के बाद नए कानूनों का विरोध करने वाले वकील एम एल शर्मा ने चीफ जस्टिस एस ए बोबडे को साक्षात भगवान बता डाला। उन्होंने बोबडे की तारीफों के खूब कसीदे पढ़े। शर्मा लगातार केंद्र सरकार के कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे और उन्होंने इसे किसानों के खिलाफ बताया था।
रामलीला मैदान दिए जाने की मांग
सुनवाई के दौरान किसानों के वकील विकास सिंह ने कहा कि किसान प्रदर्शन स्थल से उस जगह पर जहां जा सकते हैं जहां से उनका प्रदर्शन दिखे अन्यथा किसानों के विरोध प्रदर्शन का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा। उन्होंने प्रदर्शन के लिए रामलीला मैदान दिए जाने की मांग की। उनकी इस मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन स्थल के लिए किसान पुलिस कमिश्नर के पास आवेदन दे सकते हैं।
कोर्ट ने सोमवार को भी लगाई थी फटकार
किसानों का आंदोलन इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है और इसी कारण सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई पर सबकी नजर लगी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन को लेकर सोमवार को कड़ा रुख अपनाया था। केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि किसान यूनियनों ने सरकार की ओर से पेश किए गए कई प्रस्तावों को ठुकरा दिया है।
सरकार के रवैये छपर निराशा
इस पर मुख्य न्यायाधीश ऐसे बोबडे, जस्टिस एस बोपन्ना व जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम की पीठ ने कहा था कि सरकार जिस तरीके से इस मामले को सुलझाने में लगी है उससे हम बेहद निराश हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकार को अपनी जिम्मेदारी का जरा सा भी एहसास है तो उसे कृषि कानूनों को फिलहाल लागू नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस रवैये से सोमवार को ही इस बात का संकेत मिला था कि सुप्रीम कोर्ट इन कानूनों के अमल पर रोक लगा सकता है।
गणतंत्र दिवस के दिन निकालेंगे रैली
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हम शीर्ष अदालत के आदेश पर अब चर्चा करेंगे और उसके बाद ही कुछ फैसला लेंगे। हालांकि उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस के दिन 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकाली जाएगी। गणतंत्र दिवस को बाधित करने की आशंका वाली याचिका पर सोमवार को सुनवाई होगी और सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर किसान संगठनों को नोटिस जारी किए हैं।
ये भी पढ़ें…किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम किसी को आंदोलन करने से मना नहीं कर सकते