नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने भले ही प्रमोशन में आरक्षण पाने के अध्याय को 2006 में बंद कर दिया था। लेकिन उसने एक बार फिर से इस मामले को दोबारा चर्चा के लिए जिंदा कर दिया। संविधान पीठ को सलाह के लिए रेफर किया है कि इस केस को दोबारा सुना जाय या नहीं। यह मामला एम नागराज बनाम भारत सरकार का है। केस में संविधान की धारा 16- 4बी की व्याख्या को चुनौती दी गई है।
ये भी देखें: HC ने कहा- प्रमोशन में आरक्षण देना गलत,…यदि ऐसा हुआ तभी मिलेगा लाभ
2006 के आदेश मे पांच जजों की संविधान पीठ ने माना था कि कोई भी राज्य सरकार अनुसूचित जातियों व जन जातियों के अपने स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं कर सकती। हालांकि पीठ ने यह भी हिदायत दी थी कि यदि कोई राज्य सरकार अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करती है तो ऐसा करने से पहले उसे अनुच्छेद 355 के परिपालन के अतिरिक्त आंकड़ों के आधार पर यह साबित करना होगा कि उनके यहां आरक्षित श्रेणियों का सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व बहुत कम है।
संविधान पीठ का स्पष्ट मानना था कि यदि किसी प्रदेश सरकार के पास प्रमोशन में आरक्षण की बाध्यता के बारे में ठोस वजहें भी मौजूद हों तो भी 50 प्रतिशत आरक्षण की सीलिंग लिमिट का कोई उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
ज्ञात रहे कि जस्टिस कुरियन जोसफ व आर भानुमति ने मंगलवार को त्रिपुरा सरकार के 2015 से लंबित मामले को भी संविधान पीठ को भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के सुपुर्द कर दिया।
प्रमोशन में आरक्षण की मांग का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यदि ऐसा किया गया तो सामान्य वर्ग के लोग समानता के अपने मौलिक अधिकार से वंचित हो जाएंगे तथा रिजर्व कैटेगरी के लोगों को प्रमोशन में आरक्षण भी दिया गया तो यह पूरी तरह सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की अहवेलना होगी जो उसने नागराज केस में पहले ही दे रखा है।