सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्देश, कहा- ‘आरोपी को जमानत के बाद भी रिहाई न देना मौलिक अधिकार का उल्लंघन’

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान यह कहा कि रिहाई के बाद जमानत न देना संविधान के खिलाफ उल्लंघन है।

Report :  Sonali kesarwani
Update:2024-09-06 07:50 IST

source: social media 

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक केस की सुनवाई करते हुए बड़ा निर्देश आया है। उन्हें कहा कि आरोपी को जमानत मिलने के बाद भी रिहाई नहीं रोकी जा सकती। अगर कोई ऐसा करता है तो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। आपको बता दे यह निर्देश जस्टिस अभय इस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पटना हाईकोर्ट के 19 अप्रैल, 2024 के आदेश के खिलाफ जितेंद्र पासवान की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। उन्होंने सुनवाई के बाद हत्या के एक आरोपी को छह महीने बाद जमानत पर तुरंत रिहाई देने का निर्देश दिया।

जमानत ने देना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

कोर्ट ने कहा कि रिहाई के बाद उसको जमानत न देना मौलिक अधिकार का हनन है। हम आरोपी से उसकी स्वतंत्रता नहीं छीन सकते। क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा। अपना फैसला सुनाने के बाद कोर्ट ने छह महीने पहले जमानत पाने वाले आरोपी को तुरंत रिहाई दे दिया। आपको बता दें कि आरोपी पर हत्या का आरोप लगा हुआ था। 

पीठ ने सुनवाई के दौरान और क्या कहा

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश कहता है कि अपीलकर्ता जमानत का हकदार है और वास्तव में, उसने अपीलकर्ता को जमानत दी है। हालांकि आदेश के पैराग्राफ नौ में कहा गया है कि जमानत देने वाले आदेश को छह महीने बाद लागू किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एक बार जब अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंच जाती है कि आरोपी जमानत का हकदार है तो अदालत जमानत देने को स्थगित नहीं कर सकती। यह मानने के बाद कि आरोपी जमानत का हकदार है, अगर अदालत जमानत देने के आदेश के क्रियान्वयन को स्थगित करती है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

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