मौत से जंग लड़ रही 5 महीने की बच्ची: इस इंजेक्शन से बचेगी जान, कीमत है 16 करोड़

ये दर्दनाक कहानी है तीरा कामत (Teera Kamat) की। अब तीरा को बचाने की उम्मीद केवल और केवल उस इंजेक्शन पर ही टिकी हुई हैं। इस इंजेक्शन को जल्द अमेरिका से भारत लाया जाएगा। बच्ची एसएमए टाइप 1 से पीड़ित है।

Update: 2021-01-26 05:18 GMT
मौत से जंग लड़ रही 5 महीने की बच्ची: इस इंजेक्शन से बचेगी जान, कीमत है 16 करोड़

मुंबई: मुंबई शहर के एसआरसीसी अस्पताल (SRCC Hospital Mumbai) में एक पांच महीने की बच्ची जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही है। इस बच्ची की जान को बचाने के लिए एक खास तरह के इंजेक्शन का इंतजार है, जिसकी कीमत 16 करोड़ रुपये है। बता दें कि ये मासूम एसएमए टाइप 1 (SMA Type 1) की बीमारी से पीड़ित है। इस बीमारी में किसी भी बच्चे के जिंदा रहने की उम्मीद ज्यादा से ज्यादा 18 महीने ही होती है और बच्ची के जिंदगी और मौत के बीच केवल दो महीने का फासला है।

इंजेक्शन पर टिकीं सारी उम्मीदें

ये दर्दनाक कहानी है तीरा कामत (Teera Kamat) की। अब तीरा को बचाने की उम्मीद केवल और केवल उस इंजेक्शन पर ही टिकी हुई हैं। इस इंजेक्शन को जल्द अमेरिका से भारत लाया जाएगा। तीरा के पिता मिहिर कामत बताते हैं कि जब बच्ची पैदा हुई तो सब ठीक था। वो आम बच्चों की तुलना में थोड़ी सी लंबी थी, लेकिन धीरे-धीरे उसकी बीमारी सभी के सामने आने लगी।

तीरा जब अपनी मां का दूध पीती तो उसका दम घुटने लगता था। तब डॉक्टर ने बताया कि वो एसएमए टाइप 1 से पीड़ित है और छह महीने से ज्यादा जिंदा नहीं रहेगी। इस बीमारी का भारत में कोई इलाज नहीं है।

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माता-पिता ने जुटाए पैसे

ये बीमारी एक खास इंजेक्शन से ठीक हो सकती है। जिसके अब अमेरिका से भारत आने का इंतजार है। इस टीके की कीमत 16 करोड़ रुपये है। मिहिर कामत ने बताया कि उसने अपने जिंदगी में कभी भी इतने पैसे नहीं देखे। लेकिन क्राउडफंडिंग के जरिए ये पैसे इकट्ठे कर लिए गए हैं। बता दें कि बच्ची के माता पिता ने इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाया और इंजेक्शन की कीमत जुटा ली है। हालांकि इसके अलावा भी कई अन्य खर्चे हैं।

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क्या होती है SMA टाइप 1 बीमारी?

किसी भी इंसान के शरीर में मांसपेशियों को जिंदा रखने के लिए एक खास जीन की आवश्यकता होती है, जो एक ऐसा प्रोटीन तैयार करता है, जो मांसपेशियों को जिंदा रखने का काम करते हैं। लेकिन तारा कामत के शरीर में ये जीन मौजूद ही नहीं है। जाहिर है कि जिन बच्चों को ये बीमारी होती है, उनके दिमाग के नर्व सेल्स और स्पाइनल कोर्ड काम करना बंद करते हैं।

ऐसे में ब्रेन तक वो सिग्नल पहुंचते ही नहीं है, जिससे मांसपेशियों को कंट्रोल किया जा सके। ऐसे बच्चे किसी की मदद के सहारे ही चल फिर सकते हैं। धीरे-धीरे बच्चों को सांस लेने में परेशानी होने लगती है और फिर मौत।

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