आतंकी का बेटा IAS बने: ऐसा क्यों चाहता है ये, सेना की बात मान छोड़ी बंदूक

आज हम आपको एक आतंकी की बात बताने जा रहे हैं देखिये इसकी क्या सोच और विचार हैं अपने परिवार के लिए। मैं नहीं चाहता कि मेरे अतीत की काली छाया मेरे बच्चों, मेरे परिवार पर पड़े। दूसरे परिजनों की तरह मैं भी अपने बच्चों को आइएएस या फिर वरिष्ठ अधिकारी के पद पर बैठे देखना चाहता हूं। मुझसे गलती हुई।

Update:2020-11-30 16:26 IST
आतंकियों की टोली के एक पूर्व आतंकी अख्तर हुसैन ने कही है। आज उनके बेटे ने पूरे माहोर धरमाड़ी इलाके में उनका नाम गर्व से रोशन कर दिया है।

जम्मू। आतंकियों के नापाक हरकतों के बारे में तो आपने बहुत बार सुना होगा, कि वे अपने परिवार-बच्चों के बारे में कुछ नहीं सोचते हैं। उनके दिल पत्थर के होते हैं। लेकिन ये जो बात आज हम आपको बताने जा रहे हैं, ये एक आतंकी की ही है। देखिये इसकी क्या सोच और विचार हैं अपने परिवार के लिए। मैं नहीं चाहता कि मेरे अतीत की काली छाया मेरे बच्चों, मेरे परिवार पर पड़े। दूसरे परिजनों की तरह मैं भी अपने बच्चों को आइएएस या फिर वरिष्ठ अधिकारी के पद पर बैठे देखना चाहता हूं। मुझसे गलती हुई।

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बात मान बंदूक छोड़ दी

आगे कहता है- राष्ट्र विरोधी तत्वों की बातों में आकर मैं भटक गया और मैंने हाथों में बंदूक थाम ली। पर मुझे इस बात की खुशी है कि मैं भारतीय सेना के संपर्क में आया। वे चाहते तो मुझे मार सकते थे परंतु उन्होंने मुझे मेरे बच्चों-परिवार के सुनहरे भविष्य का सपना दिखाया और मैंने भी उनकी बात मान बंदूक छोड़ दी।

सेना ने आत्मसमर्पण का मौका देकर मुझे नई जिंदगी दी थी और आज मेरे बच्चों को पढ़ाकर सेना उनका जीवन भी संवार रही है। इसके लिए मैं सेना का हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा। आज उन्हीं की बदोलत मैं अपने बीवी बच्चों के साथ मेहनत-मजदूरी कर बेहतर जीवन व्यतीत कर रहा हूं।

फोटो-सोशल मीडिया

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नाम गर्व से रोशन

तो ये पूरी बात आतंकियों की टोली के एक पूर्व आतंकी अख्तर हुसैन ने कही है। आज उनके बेटे ने पूरे माहोर धरमाड़ी इलाके में उनका नाम गर्व से रोशन कर दिया है। उनके इलाके में गत दिनों आयोजित हुए नवोद्यय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में उनके बेटे साकिब अंजुम ने दूसरी पोजीशन हासिल की है। वह उसे आइएएस अधिकारी बनाना चाहते हैं।

आतंकी के बेटे साकिब ने भी अपने पिता के सपनों को पूरा करने का जिम्मा उठाया है। पूर्व आतंकी अख्तर हुसैन ने कहा कि यह सेना की मदद के बिना संभव नहीं था। आज अगर उनके बेटे ने इस प्रवेश परीक्षा मेंं दूसरा स्थान हासिल किया है तो यह भी सेना द्वारा उनके इलाके में प्रवेश परीक्षा से पहले आयोजित की गई कोचिंग क्लासेस का ही परिणाम है।

साथ ही अख्तर हुसैन ने कहा कि उनका दूसरा बेटा अभी छोटा है। बड़ा होने पर वह उसे भी सेना की कोचिंग क्लासिस में भेजेंगे, जिससे वह भी अपने बड़े भाई की तरह अपने भविष्य को संवार सके। और नाम रोशन कर सके।

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