बलिदान दिवस: महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा, जानिए हल्दी घाटी से जुड़े किस्से

महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के बीच हल्दी घाटी का सबसे विनाशकारी युद्ध 18 जून 1576 में हुआ था। इतिहास में हल्दी घाटी के युद्ध की तुलना महाभारत के युद्ध से की गई है। इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध में न अकबर की जीत हुई और न ही महाराणा प्रताप हारे थे।

Update: 2021-01-19 06:13 GMT
बलिदान दिवस: महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा, जानिए हल्दी घाटी से जुड़े किस्से photos (social media)

लखनऊ : अपनी शौर्य, पराक्रम और बहादुरी के लिए पहचान बनाने वाले अमर बलिदानी राजा महाराणा प्रताप की आज पुण्यतिथि है। इनके शौर्य, पराक्रम के चर्चे तो आप सभी ने सुने होंगे लेकिन आज इनके बलिदान दिवस पर इनके जीवन से जुड़े कुछ किस्सों को जानते हैं।

महाराणा प्रताप का बलिदान दिवस

मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप एक ऐसा नाम है, जिनकी कहानियों से इतिहास के पन्ने भरे हुए हैं। इस पराक्रमी योद्धा पर बहुत सी फिल्मे बनी, कई शोध हुए ,कई किताबें भी लिखी गई। आज भी लोग महाराणा प्रताप के शौर्य और बलिदान की कहानियां सुनने में दिलचस्पी लेते हैं। आपको बता दें कि आज यानी 19 जनवरी को इन्होंने अपने शरीर को त्यागा था और सदा सदा के लिए अमर हो गए थे।

घास की रोटी खाने का किस्सा

महाराणा प्रताप को जितना उनकी बहादुरी के लिए जाना जाता है उतनी ही उनकी दरियादिली और प्रजा और राज्य से उनका प्रेम जगजाहिर है। आपको बता दें कि हल्दी घाटी में मुगल शासक अकबर के खिलाफ लड़ा गया उनका युद्ध इतिहास के सबसे चर्चित युद्धों में से एक है। इस युद्ध में अपनी छोटी सी सेना के साथ उन्होंने मुगलों की विशाल सेना को नाकों चने चबवा दिए थे। जंगल में रहकर घास की रोटी खाने का किस्सा महाराणा प्रताप का सबसे लोकप्रिय किस्सा है।

महाराणा प्रताप के युद्ध हथियार

युद्ध के वक्त महाराणा प्रताप 72 किलो का कवच पहनते थे। इसके साथ वह युद्ध में अपने साथ हमेशा एक भाला लिए रहते थे जिससे बड़े से बड़े दुश्मन पर धाबा बोल देते थे। इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप के भाले, कवच,ढाल और दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलोग्राम होता था। आपको बता दें कि महाराणा प्रताप के हथियार इतिहास के सबसे भारी युद्ध हथियारों में शामिल हैं।

हल्दी घाटी का युद्ध

महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के बीच हल्दी घाटी का सबसे विनाशकारी युद्ध 18 जून 1576 में हुआ था। इतिहास में हल्दी घाटी के युद्ध की तुलना महाभारत के युद्ध से की गई है। इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध में न अकबर की जीत हुई और न ही महाराणा प्रताप हारे थे। इसकी वजह महाराणा प्रताप के मन में राज्य की सुरक्षा का अटूट जज्बा था। आपको बता दें कि हल्दी घाटी के युद्ध को टालने के लिए अकबर ने छह बार महाराणा प्रताप के पास अपने शांति दूत भेजे, लेकिन राजपूत महाराणा प्रताप ने हर बार अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक

हल्दी घाटी के इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने मात्र 20 हजार सैनिकों के साथ मुगल अकबर के 80 हजार सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय घोड़े चेतक ने भी दुश्मनों के सामने अद्भुत वीरता का परिचय दिया। हालांकि इसी युद्ध में घायल होने के बाद चेतक की मृत्यु हो गई। चितौड़ की हल्दी घाटी में आज भी महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की समाधि मौजूद है। चेतक ने अंतिम समय तक इस युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ दिया।

19 जनवरी 1597 में चावंड में हुई मृत्यु

महाराणा प्रताप समय की लंबी अवधी के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त करने में सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग साबित हुआ। मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण का अंत 1585 में हुआ। उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख -सुविधा में जुट गए,लेकिन दुर्भाग्य से ग्यारह वर्ष के बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई। आज इनकी मृत्यु को 424 वर्ष हो गए हैं लेकिन आज भी लोग महाराणा प्रताप के बलिदानों को याद करते हैं।

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