Indian Media: मीडिया के 90 फीसदी टॉप पदों पर सवर्ण काबिज

Indian Media: एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मीडिया में टॉप लीडरशिप के लगभग 90 फीसदी पदों पर उच्च जाति के लोगों का कब्जा है।

Report :  Neel Mani Lal
Update:2022-10-15 15:05 IST

भारतीय मीडिया के 90 फीसदी टॉप पदों पर सवर्ण काबिज: Photo- Social Media

New Delhi: एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मीडिया (Indian media) में टॉप लीडरशिप के लगभग 90 फीसदी पदों पर उच्च जाति के लोगों का कब्जा है, और एक भी दलित (Dalit) या आदिवासी भारतीय मुख्यधारा के मीडिया का नेतृत्व नहीं कर रहा है। ऑक्सफैम इंडिया-न्यूज़लांड्री की रिपोर्ट के दूसरे संस्करण 'हू टेल्स अवर स्टोरीज़ मैटर्स: रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ मार्जिनालाइज़्ड कास्ट ग्रुप्स इन इंडियन मीडिया' से पता चलता है कि प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में लगभग 90 फीसदी लीडरशिप पदों पर सामान्य जाति समूहों का कब्जा (General caste groups occupy Indian media) है, जिनमें कोई अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति (एसटी) का नहीं है।

दक्षिण एशिया के सबसे बड़े समाचार मीडिया फोरम "द मीडिया रंबल" में जारी रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में 5 में से हर 3 लेख सामान्य जाति के लेखकों द्वारा लिखे गए हैं, जबकि हाशिए पर रहने वाली जातियां (एससी, एसटी या ओबीसी) 5 लेखों में से केवल 1 में योगदान करती हैं।

121 न्यूज़रूम नेतृत्व पदों में से - 106 उच्च जातियों के कब्जे

समाचार पत्रों, टीवी समाचार चैनलों, समाचार वेबसाइटों और अध्ययन के तहत पत्रिकाओं में 121 न्यूज़रूम नेतृत्व पदों में से - 106 उच्च जातियों के कब्जे में हैं, पांच अन्य पिछड़े वर्गों और छह अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के कंट्रोल में हैं। चार व्यक्तियों के मामले की पहचान नहीं हो सकी है।

भारतीय मीडिया के 90 फीसदी टॉप पदों पर सवर्ण काबिज: Photo- Social Media

टीवी पर डिसकशन के हर चार एंकरों में से तीन (हिंदी चैनलों में कुल 40 एंकरों और अंग्रेजी चैनलों में 47 एंकरों में से) उच्च जाति के हैं। उनमें से एक भी दलित, आदिवासी या ओबीसी नहीं है। 70 प्रतिशत से अधिक प्राइमटाइम डिबेट शो के लिए, समाचार चैनल उच्च जातियों के पैनलिस्टों के बहुमत को आकर्षित करते हैं।

मात्र 5 प्रतिशत लेख दलितों और आदिवासियों द्वारा लिखे गए

अंग्रेजी अखबारों में सभी लेखों के मात्र 5 प्रतिशत लेख दलितों और आदिवासियों द्वारा लिखे गए हैं। हिंदी समाचार पत्रों का प्रदर्शन लगभग 10 प्रतिशत से थोड़ा बेहतर है।अप्रैल 2021 और मार्च 2022 के बीच किए गए शोध में 20,000 से अधिक पत्रिका और समाचार पत्रों के लेखों, 76 एंकरों और 3,318 पैनलिस्टों के साथ 2,075 प्राइम-टाइम बहस और 12 महीने की ऑनलाइन समाचार रिपोर्टों का विश्लेषण किया गया।

शोध लेखकों, प्रतिभागियों की सामाजिक स्थिति, समाचारों की प्रमुखता और समाचार कवरेज के विषय जैसे गुणात्मक मानकों पर आयोजित किया गया था।रिपोर्ट में सर्वेक्षण, सूचना के द्वितीयक स्रोतों और यूपीएससी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के डेटाबेस का उपयोग करते हुए समाचार संगठनों के कर्मचारियों के बीच विभिन्न जाति समूहों के प्रतिनिधित्व की भी जांच की गई।

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