किसानों और सरकार में बातचीत के आसार नहीं, अब लंबा चलेगा आंदोलन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि किसान संगठनों को पता होना चाहिए कि सरकार उनसे सिर्फ एक कॉल की दूरी पर है मगर जानकारों का कहना है कि सरकार के रवैये को देखते हुए यह साफ है कि अब किसानों के धैर्य की परीक्षा होगी।
नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन एक बार फिर तेजी पकड़ चुका है। गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा और लालकिले की घटना के बाद सरकार की ओर से किसान संगठनों को बातचीत का कोई नया प्रस्ताव भी नहीं दिया गया है।
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किसान संगठनों को पता होना चाहिए
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि किसान संगठनों को पता होना चाहिए कि सरकार उनसे सिर्फ एक कॉल की दूरी पर है मगर जानकारों का कहना है कि सरकार के रवैये को देखते हुए यह साफ है कि अब किसानों के धैर्य की परीक्षा होगी।
सरकार की ओर से दिल्ली की सीमाओं पर कई लेयर के सुरक्षा बंदोबस्त किए गए हैं और अब सरकार फिलहाल किसानों को बातचीत का कोई नया प्रस्ताव देने के मूड में नहीं दिख रही है। दिल्ली की सीमाओं पर कड़े सुरक्षा प्रबंध करके सरकार किसानों की मौजूदगी को दिल्ली की सीमाओं तक ही सीमित रखने की कोशिश में जुट गई है।
दिल्ली की सीमाओं पर कीलों की रीपोजिशनिंग
विपक्षी नेताओं गुरुवार को गाजीपुर बॉर्डर पहुंचकर किसानों से मुलाकात की। इनमें आठ राजनीतिक दलों के सांसद थे। जिस समय विपक्ष के 15 सांसदों दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे थे उस समय में कील हटाने की कवायद भी चल रही थी।
हालांकि दिल्ली पुलिस के सूत्रों का कहना है कि गाजीपुर बॉर्डर से कीलों को हटाया नहीं जा रहा है बल्कि आने जाने वाली पब्लिक की परेशानी को दूर करने के लिए कीलों की रीपोजिशनिंग की जा रही है।
ऐसी सुरक्षा तो पाक बॉर्डर पर भी नहीं
गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा के बाद गाजीपुर बॉर्डर पर सुरक्षा व्यवस्था काफी सख्त कर दी गई है। सड़क पर कई लेयर की सुरक्षा व्यवस्था की गई है और कई नेताओं ने तो इस सुरक्षा व्यवस्था को देखकर तंज भी कसा।
विपक्ष के सांसदों की टीम में अकाली दल के सांसद हरसिमरत कौर, एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले, डीएमके सांसद कनिमोझी और टीएमसी सांसद सौगत राय शामिल थे। हरसिमरत कौर ने कहा कि यहां 3 किलोमीटर तक बैरिकेडिंग लगी हुई है। ऐसे में समझा जा सकता है कि किसानों की क्या हालत हो रही होगी। इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था तो पाकिस्तान बॉर्डर पर भी नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी सांसदों को भी किसान नेताओं से मिलने से रोका गया।
नई बातचीत पर अभी कोई फैसला नहीं
कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर किसानों के आंदोलन से पैदा हुआ गतिरोध जल्द टूटता नजर नहीं आ रहा है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के रुख से भी लग रहा है कि निकट भविष्य में सरकार और किसान नेताओं के बीच बातचीत नहीं होने वाली।
जब उनसे दोनों पक्षों के बीच बातचीत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब इसके बारे में कोई फैसला किया जाएगा तो हम सूचित करेंगे। जब उनसे प्रदर्शनकारियों की रिहाई के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था की किसान नेताओं को इस बाबत पुलिस आयुक्त से बात करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह कानून व्यवस्था से जुड़ा मामला है और इस पर टिप्पणी करना मेरा काम नहीं है। मालूम हो कि कुछ किसान नेताओं ने कहा है कि जब तक गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों की रिहाई नहीं होती है तब तक बातचीत का कोई सवाल ही नहीं है।
शाहीनबाग की तर्ज पर निपटेगी सरकार
जानकारों का कहना है कि सरकार अभी किसान नेताओं से बातचीत के मूड में नहीं दिख रही है। सरकार अब इस आंदोलन से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए शाहीनबाग आंदोलन की तर्ज पर निपटना चाहती है। सरकार और किसान नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत विफल होने के बाद अभी तक सरकार की ओर से किसान नेताओं को कोई नया प्रस्ताव नहीं दिया गया है।
सूत्रों के मुताबिक अगर किसान संगठनों ने डेढ़ साल तक कानून को स्थगित रखने और विशेषज्ञ समिति के प्रस्ताव पर सहमति नहीं जताई तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने का मन बना लिया है।
आंदोलनकारियों को निश्चित दायरे में रखेगी सरकार
दिल्ली की सीमाओं पर कई लेयर की सुरक्षा व्यवस्था का मकसद आंदोलनकारियों को एक निश्चित जगह तक सीमित रखना है। सीएए के खिलाफ आंदोलन के दौरान भी केंद्र सरकार ने इसी रणनीति पर काम किया था। शाहीनबाग की चारों ओर से घेरेबंदी कर ली गई थी और सरकार की ओर से बातचीत की कोई पहल नहीं की गई थी। अब सरकार किसान आंदोलन के संबंध में भी यही रणनीति अपनाती दिख रही है।
किसान भी लंबी लड़ाई के लिए तैयार
सरकार की ओर से बातचीत का कोई नया प्रस्ताव न दिए जाने के बाद अब यह साफ हो गया है कि सरकार इस मामले को लंबे समय तक खींचना चाहती है। दूसरी ओर किसान संगठनों की ओर से भी लगातार दावा किया जा रहा है कि वे लंबी लड़ाई की तैयारी करके आए हैं।
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सुप्रीम कोर्ट की ओर से पिछले दिनों इस मामले में समिति का गठन किया गया था जिसमें से एक सदस्य ने खुद को अलग कर लिया है। ऐसे में तीन सदस्यीय समिति की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। समिति को अगले महीने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट देनी है। अब देखने वाली बात यह होगी की इस रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से क्या कदम उठाया जाता है।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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