मजदूर की बेटी बनी IAS, संघर्षों से भरी थी इनकी कहानी, फिर पाया ये मुकाम

यूपीएससी प्रीलिमनरी परीक्षा के लिए फॉर्म आ गए हैं। IAS, IPS बनने के लिए हर साल लाखों उम्मीदवार तैयारी करते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही अपने लक्ष्य को हासिल..

Update:2020-02-23 14:08 IST

नई दिल्ली। यूपीएससी प्रीलिमनरी परीक्षा के लिए फॉर्म आ गए हैं। IAS, IPS बनने के लिए हर साल लाखों उम्मीदवार तैयारी करते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही अपने लक्ष्य को हासिल कर पाते हैं। ऐसी एक लड़की की कहानी लेकर आए हैं जिसने कम सुविधा होने के बावजूद, अपने दम पर यूपीएससी परीक्षा पास कर IAS बनी हैं।

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पिछले साल जब यूपीएससी परीक्षा का रिजल्ट आया तो परीक्षा में कई ऐसे चेहरे सामने आए हैं, जिन्होंने मुश्किल हालात में पढ़ाई कर परीक्षा पास की थी। इन्हीं में एक नाम था श्रीधन्या सुरेश का, जो केरल के वायनाड जिले की रहने वाली हैं। 2018 में हुई यूपीएससी की परीक्षा में उन्होंने 410वीं रैंक हासिल की थी।

जानिए श्रीधन्या के बारे में

श्रीधन्या सुरेश। केरल की पहली आदिवासी लड़की है। उनके पिता मनरेगा में मजदूरी करते थे और बाकी समय धनुष-तीर बेचा करते थे। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। कुछ समय पहले उनके परिवार को घर बनाने के लिए सरकार की ओर से जमीन मिली थी।

 

 

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लेकिन जमीन मिलने के बाद भी उनके पास पैसों की कमी थी। जिसके बाद उनका परिवार घर नहीं बनवा पाया था। जब श्रीधन्या कर रही थी तो आधे- अधूरे बने घर में अपने माता-पिता, और दो भाई-बहनों के साथ रहती आ रही थीं। उनके माता- पिता गरीब थे, लेकिन पैसों की कमी कभी भी श्रीधन्या की पढ़ाई के बीच में नहीं आई थी।

 

 

उन्होंने कोझीकोड के सेंट जोसफ कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री ली, उसके बाद ही उसी कॉलेज से जूलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली। पढ़ाई पूरी होने के बाद वह अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के पद पर काम करने लगी। फिर उन्होंने वायनाड के एक आदिवासी हॉस्टल में वार्डन के तौर पर काम किया।

पैसे नही थे इंटरव्यू देने के लिेए

यहीं पर ही उन्हें यूपीएससी परीक्षा देने के लिए मोटिवेट किया गया। बता दें, यूपीएससी परीक्षा में तीसरे प्रयास में उन्हें सेलेक्शन इंटरव्यू के लिए हुआ था। उस समय श्रीधन्या के पास दिल्ली आने के लिए पैसे भी नहीं थे, लेकिन दोस्तों से मिलकर उन्होंने पैसे जमा किए और दिल्ली आकर इंटरव्यू दिया।

 

 

श्रीधन्या ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैं राज्य के सबसे पिछड़े जिले से हूं। यहां से कोई आदिवासी आईएएस अधिकारी नहीं हैं, जबकि यहां पर बहुत बड़ी जनजातीय आबादी है। मुझे आशा है कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सभी बाधाओं को दूर करने में एक प्रेरणा का काम करेगी।'

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