कृषि कानून के ये पहलूः सबने साध रखी है चुप्पी, आखिर किसान आंदोलन कब तक
कृषि कानूनों की चर्चा गर्म है उसमें फोकस मुख्यतः न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को ही लेकर है जबकि किसी भी कानून में एमएसपी के बारे में कोई बात कही ही नहीं गयी है। यानी जिस बात का जिक्र ही कानून में नहीं है उसे लेकर हल्ला है और जिस बात का उल्लेख है उस पर सब चुप्पी साधे हुए हैं।
नीलमणि लाल
लखनऊ। देश में जिन तीन कृषि कानूनों की चर्चा गर्म है उसमें फोकस मुख्यतः न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को ही लेकर है जबकि किसी भी कानून में एमएसपी के बारे में कोई बात कही ही नहीं गयी है। यानी जिस बात का जिक्र ही कानून में नहीं है उसे लेकर हल्ला है और जिस बात का उल्लेख है उस पर सब चुप्पी साधे हुए हैं। दरअसल, सरकार ने आवश्यक वस्तुओं (संशोधन) अधिनियम विधेयक, 2020 के जरिये अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याजज और आलू जैसी वस्तु्ओं को आवश्यवक वस्तुओं की सूची से हटा दिया है। अब निजी खरीददारों द्वारा इन वस्तुओं के भंडारण या जमा करने पर सरकार का नियंत्रण नहीं होगा। यानी इन वस्तुओं का कितना ही भण्डारण करें, वो गैरकानूनी नहीं कहलायेगा।
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सुरक्षा का उपाय भी है
ऐसा नहीं है कि सरकार ने सबको खुली छूट दे दी है। कानून में संशोधन के तहत यह भी व्यगवस्था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है। यानी कीमत अगर असामान्य रूप से बढ़ेगी तो सरकार हस्तक्षेप जरूर कर सकेगी।
सन 55 में बना था कानून
आवश्यक वस्तु कानून 1955 में ऐसे समय में बना था जब भारत खाद्य पदार्थों की भयंकर कमी से जूझ रहा था। उस जमाने में पर्याप्त उपज ही नहीं होती थी। बहुत खाद्य पदार्थ इम्पोर्ट करने पड़ते थे। इसलिए इस कानून का उद्देश्य इन वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकना था ताकि उचित मूल्य पर सभी को खाने का सामान मुहैया कराया जा सके।
देश में हरित क्रांति आई और देश खाद्य पदार्थों के मामले में न केवल आत्मनिर्भर बना बल्कि एक्सपोर्ट करने लगा। ऐसे में अब सरकार का कहना है कि चूँकि भारत इन वस्तुओं का पर्याप्त उत्पादन करता है सो ऐसे में इन पर नियंत्रण की जरूरत नहीं है।
केंद्र का कहना है कि वैसे तो भारत में ज्याादातर कृषि जिंसों या वस्तुउओं के उत्पारदन में सरप्ल स की स्थिति है, लेकिन इसके बावजूद कोल्डो स्टोारेज, प्रसंस्कपरण और निर्यात में निवेश के अभाव में किसान अपनी उपज के उचित मूल्यत पाने में असमर्थ रहे हैं क्योंककि आवश्यतक वस्तुल अधिनियम की लटकती तलवार के कारण उनका बिजनेस हतोत्सा हित होता है।
सरकार का यह भी दावा है कि उत्पाोदन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आजादी से व्या पक स्तरर पर उत्पाकदन करना संभव हो जाएगा। साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी और प्रत्यलक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सकेगा। इससे कोल्डक स्टोउरेज में निवेश बढ़ाने और सप्लाएई चेन के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी।
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विरोध भी है
सरकार के दावे के विपरीत विरोधियों का आरोप है कि इस विधेयक से किसान और उपभोक्ता को काफी नुकसान होगा और जमाखोरी के चलते सिर्फ निजी खरीददारों, ट्रेडर्स, कंपनियों आदि को फायदा होगा।
कम्पनियाँ खूब भण्डारण कर लेंगी और बाद में महंगे दाम पर बेचेंगी। आरोप है कि चूँकि कंपनियों और बड़े ट्रेडर्स के पास भण्डारण क्षमता होगी सो वही लोग फायदा उठाएंगे। ये बात सही है कि सरकार उचित कीमत कैसे तय करेगी ये स्पष्ट नहीं किया गया है।
इस विधेयक के कुछ प्रतिकूल प्रभाव के बारे में ये भी आरोप है कि गावों में मंहगाई बढ़ेगी, क्योंकि किसानों की सारी उपज व्यापारियों द्वारा खरीद कर स्टॉक कर ली जाएगी और महंगे दामों में बेची जाएगी। क्योंकि भारत के गरीब किसान के पास तो अपनी उपज को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए कोई स्टोरेज नहीं है। इसलिए इसका पूर्ण लाभ बड़े व्यापारियों को मिलेगा।
क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत, केंद्र राज्य सरकारों के माध्यम से कुल आठ श्रेणियों के वस्तुओं पर नियंत्रण रखती है। आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में डीजल पेट्रोल से लेकर गेहूं, चावल, गुड़, चीनी, दवाएं, केमिकल, फर्टीलाइजर आदि भी शामिल हैं।
सरकार इस लिस्ट में समय समय पर बदलाव करती है। जो चीजें लिस्ट में आ जाती हैं सरकार उनके भंडारण और आपूर्ति की लिमिट तय कर देती है। तय लिमिट से ज्यादा भंडारण होने पर जुर्माना, जेल और कंपनी, संस्थान पर कार्रवाई की जाती है। कोरोना के दौरान सरकार ने मास्क और सैनेटाइजर की अंधाधुंध बढ़ती कीमतों को इसी कानून के जरिए नियंत्रित किया था।
केंद्र इस कानून में दी गईं शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राज्य सरकारों को नियंत्रण आदेश जारी करने के लिए कहता है, जिसके तहत वस्तुओं को स्टॉक यानी जमा करने की एक सीमा तय की जाती है और सामान के आवागमन पर नजर रखी जाती है। जब कभी राज्यों ने इन शक्तियों का इस्तेमाल किया है, ऐसे हजारों पुलिस केस दर्ज किए गए, जिसमें नियंत्रण आदेश के उल्लंघन के आरोप थे।
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दायरा सीमित किया गया
सरकार ने कानून में संशोधन करके अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्या ज और आलू को धारा 3 (1) के दायरे से बाहर कर दिया गया है, जिसके तहत केंद्र को आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण पर नियंत्रण करने का अधिकार मिला हुआ है। अब सिर्फ अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में ही सरकार द्वारा इन वस्तुओं पर नियंत्रण किया जा सकेगा।
इस कानून के तहत केंद्र को यह भी अधिकार मिला हुआ है कि वो जरूरत के हिसाब से आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में जोड़ या घटा कर सकती है। इसके पहले भी केंद्र ने इस एक्ट के जरिये नियंत्रण के दायरे के कुछ वस्तुओं को बाहर किया था। 2002 में वाजपेयी सरकार ने गेहूं, धान, चावल, मोटे अनाज और खाद्य तेलों पर लाइसेंस और स्टॉक सीमा को समाप्त कर दिया था।
स्टॉक लिमिट
सरकार द्वारा स्टॉक लिमिट या वस्तुओं को जमा करने की सीमा तय करने का फैसला कृषि उत्पाद के मूल्य वृद्धि पर निर्भर करेगी। शीघ्र नष्टर होने वाली कृषि उपज के मामले में 12 महीने पहले या पिछले पांच वर्षों के औसत खुदरा मूल्य की तुलना में यदि उत्पाद के वर्तमान मूल्य में 100 फीसदी वृद्धि होती है, तो इसके स्टॉक की सीमा तय की जाएगी।
इसी तरह शीघ्र नष्ट न होने वाले कृषि खाद्य पदार्थों के मामले में पिछले 12 महीने पहले या पिछले पांच वर्षों के औसत खुदरा मूल्य की तुलना में यदि उत्पाद के वर्तमान मूल्य में 50 फीसदी वृद्धि होती है, तो इसके स्टॉक की सीमा तय की जाएगी। सरकार को अब स्टॉक सीमा तय करने के फैसले लेने के लिए एगमार्कनेट मूल्यों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
एगमार्कनेट केंद्रीय कृषि मंत्रालय का एक पोर्टल है जो कि मंडियों में कृषि उत्पादों के आवक तथा मूल्यों की जानकारी देता है। विपक्ष का कहना है कि मूल्य वृद्धि के आधार पर स्टॉक लिमिट लगाने की शर्त यथार्थ से परे है और इसकी बिल्कुल संभावना है कि शायद ही कभी आसानी से इन प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाएगा।.
आर्थिक सर्वेक्षण
पिछले साल के आर्थिक सर्वेक्षण में भारत के कृषि अर्थव्यवस्था की गड़बड़ियों के बारे में विस्तार से बताया गया था। इसमें विशेष रूप से ये भी बताया गया है कि आवश्यक वस्तु अधिनियन के तहत कृषि उत्पादों के स्टॉक की सीमा तय करने से न तो मूल्यों में गिरावट आई है और न ही कीमत अस्थिरता में कमी आई है।
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