Shyama Prasad Mukherjee Jayanti: एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं... नारा देने वाले जानिए कौन थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी
Shyama Prasad Mukherjee Jayanti:श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही देश विभाजन के समय प्रस्तावित पाकिस्तान में से बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग उठाकर वर्तमान बंगाल और पंजाब को बचाया था।
Shyama Prasad Mukherjee Jayanti: डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज यानी छह जुलाई को जयंती है। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेंगे का नारा दिया था। राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए अपना पूरा जीवन अर्पित करने वाले महान शिक्षाविद् व प्रखर राष्ट्रवादी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कारण ही आज जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू हो पाया है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपने बात और जिद पर अड़े रहने वाले एक सच्चे देश भक्त थे। गांधी जी के कहने पर ही वे मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 यानी आज ही के दिन कलकता के अत्यंत प्रतिष्ठित परिवार में विख्यात शिक्षाविद् सर आशुतोष मुखर्जी और माता जोगमाया के यहां हुआ था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही देश विभाजन के समय प्रस्तावित पाकिस्तान में से बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग उठाकर वर्तमान बंगाल और पंजाब को बचाया था।
गांधी जी के अनुरोध पर मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे
श्याम प्रसाद मुखर्जी महात्मा गांधी और सरदार पटेल के अनुरोध पर आजाद भारत के पहले मंत्रिमंडल में गैर-कांग्रेसी उद्योग मंत्री के रूप में शामिल हुए थे। लेकिन उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से अक्सर मतभेद बराबर बने रहे। अंततः राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की और 1952 के पहले संसदीय चुनावों में डॉ. मुखर्जी सहित 3 सांसद इस पार्टी के चुन कर आए थे।
जम्मू को बनाना चाहते थे भारत का पूर्ण व अभिन्न अंग
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमंत्री वजीरे-आजम अर्थात प्रधानमंत्री कहलाता था। यही नहीं जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए परमिट लेना पड़ता था। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने संकल्प व्यक्त किया कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या इस उद्देश्य के लिए जीवन बलिदान कर दूंगा।
जम्मू-कश्मीर पहुंचे ही कर लिया गया था अरेस्ट
श्यामा प्रसाद मुखर्जी 8 मई, 1953 को बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े और वहां पहुंचते ही 11 मई को उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। वह 40 दिनों तक जेल में बंद रहे और इसी दौरान 23 जून, 1953 को जेल के अस्पताल में ही रहस्यमयी परिस्थितियों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु हो गई।