वृक्ष ही जीवन है: यहां पेड़ों को बचाने के लिए छात्र चला रहे हैं अनूठी मुहिम, जानें इसके बारें में
कुछ साल पहले 50 छात्रों और कुछ संवेदनशील नागरिकों के एक दल ने शहर में पेड़ बचाने के लिए काम करना शुरू किया था। एक इलाके से शुरू हुआ यह अभियान अब पूरे शहर में विस्तार पा रहा है।
भोपाल: ‘वृक्ष ही जीवन है’। इस पंक्ति को हर किसी ने जरुर सुना और इसके बारें में पढ़ा होगा। स्कूल के दिनों में बहुत से लोगों ने इस पर निबंध भी लिखा होगा लेकिन उनमें से चंद लोग ही ऐसे होंगे जिन्होंने उसमें लिखी गई बातों पर अमल करने की कोशिश की होगी।
आज हम आपको मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के कुछ ऐसे ही छात्रों के बारें में बता रहे है। जिन्होंने न केवल उपरोक्त पंक्ति को अपने जीवन में उतारने का काम किया है। बल्कि कीलों के जरिए हो रही पेड़ों की हत्या को रोकने के लिए कारगर मुहिम शुरू की है। तो आइये जानते है इस मुहिम के बारें में:-
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एक इलाके से शुरू किया था अभियान, अब पूरे शहर में फैला
कुछ साल पहले 50 छात्रों और कुछ संवेदनशील नागरिकों के एक दल ने शहर में पेड़ बचाने के लिए काम करना शुरू किया था। एक इलाके से शुरू हुआ यह अभियान अब पूरे शहर में विस्तार पा रहा है।
यह दल फिलहाल शहर के बागमुगलिया क्षेत्र में पेड़ों से विज्ञापनों के लिए ठोकी गई कीलों को निकालने का काम कर रहा है। लेकिन इस नेक काम को पूरे शहर में सराहा जा रहा है।
300 से ज्यादा पेड़ों को कराया जा चुका है मुक्त
अब तक 300 से ज्यादा पेड़ों को कीलों और विज्ञापनों से मुक्त करा कर नया जीवन दे चुके हैं। शहर में कहां ऐसे पेड़ हैं, जिनमें विज्ञापनों के लिए कीले ठोक दी गई हैं, इसकी जानकारी जुटाने के लिए सोशल मीडिया पर एक पेज तैयार किया है।
ऐसे पेड़ों की जान बचाने के लिए संबंधित पेड़ और स्थान की जानकारी लोग इस पर साझा कर रहे हैं। यहां से मिलने वाली जानकारी के आधार पर छुट्टी के दिन दल के सदस्य अलग-अलग समूहों में निकल कर पेड़ों को कीलों से मुक्ति दिलाने में जुट जाते हैं।
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स्पष्ट नियमों का अभाव
पेड़ों पर कील ठोकने के मामले में ठोस नियमों का अभाव है। नगर निगम सिर्फ संपत्ति विरूपण अधिनियम के तहत ही कार्रवाई कर विज्ञापनों को जब्त कर सकता है। साथ ही विज्ञापनदाता के खिलाफ जुर्माने की कार्रवाई का भी प्रावधान है। लेकिन अब तक नगर निगम ने पेड़ों पर अवैध रूप से लगे विज्ञापन को लेकर कार्रवाई नहीं की। पेड़ पर कील ठोकने को लेकर स्पष्ट नियम-कानूनों का प्रावधान ही नहीं है।
न करें जीव हत्या
दल के सदस्य शांतनु शर्मा ने बताया कि पेड़ों से निकाले गए विज्ञापनों से मिले नंबर पर फोन लगा संवाद किया जाता है। विज्ञापनदाताओं से पेड़ों पर विज्ञापन नहीं लगाने की अपील की जाती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि पेड़ पर कील ठोकना जीव हत्या से कम नहीं। अत: आप हत्यारे न बनें।
पेड़ के लिए क्यों जानलेवा है कील
पर्यावरणविदों ने बताया कि कील ठोकने से पेड़ को बहुत नुकसान होता है। उसे पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता और शाखाएं भी नहीं बढ़ पातीं। कील ठोकने वाले स्थान पर से छाल गिरने लगती है और पेड़ बीमार व कमजोर होने लगता है। जिन पेड़ों में कई कीलें ठोक दी गई हों, वे अकसर सूख जाते हैं।
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