1984 में कानपुर में हुए सिख विरोधी दंगे की जांच के लिए SIT का गठन

यूपी के कानपुर में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए यूपी की योगी सरकार ने पूर्व डीजीपी अतुल की अध्यक्षता में चार सदस्यीय एसआईटी गठित की है। एसआईटी 6 महीने में जांच पूरी कर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी।

Update:2019-02-06 09:55 IST

कानपुर : यूपी के कानपुर में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए यूपी की योगी सरकार ने पूर्व डीजीपी अतुल की अध्यक्षता में चार सदस्यीय एसआईटी गठित की है। एसआईटी 6 महीने में जांच पूरी कर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी।

थे। एसआईटी उन मुकदमों की दोबारा विवेचना करेगी, जिनमें साक्ष्यों के अभाव में अंतिम रिपोर्ट लगा दी गई।

प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मनजीत सिंह की याचिका पर सरकार को कानपुर के बजरिया और नजीबाबाद इलाकों में सिख दंगों को दौरान दर्ज हुए मामलों की जांच के लिए एसआईटी के गठन के निर्देश दिए

आपको बता दें, कानपुर में 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर बर्बाद होने के आरोप लगे थे। जांच करने वाले रंगनाथ मिश्रा आयोग ने दंगों में सिर्फ 127 मौतें होने की बात कही थी।

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इंदिरा गांधी की हत्या के बाद शुरू हुआ था दंगा

1984 के सिख विरोधी दंगे पूर्व भारतीय पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली से शुरू हुए थे। 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके दो सिख गार्ड ने हत्या कर दी थी।

दंगों में मरे थे 3 हजार से अधिक लोग

-31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में दंगे भड़के थे।

-इसमें 3 हजार से ज्यादा सि‍ख मारे गए थे।

-मोदी सरकार के आने के बाद से सि‍ख 84 दंगों से जुड़े केसों की फाइलें‍ फिर से खोलने की मांग कर रहे थे।

-सिर्फ दिल्ली में ही इन दंगों को दौरान 2,733 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर सिख थे।

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जरनैल सिंह भिंडरावाले से कनेक्शन

पाकिस्तान भिंडरावाले को पंजाब में भारत विरोधी गतिविधियों के लिए मदद कर रहा था। प्लान ये था कि खेतों के रास्ते खालड़ा बॉर्डर पार कर भिंडरावाले और उसके साथी उधर से गुरिल्ला वार शुरू कर देंगे और पाकिस्तान उन्हें हर संभव मदद देगा। लेकिन देश की ख़ुफ़िया एजेंसीज को इस बात की भनक लग गई और पाकिस्तान के मंसूबों को आर्मी ने रौंद के रख दिया।

13 अप्रैल 1984 को लेफ्टिनेट जनरल प्रेम नाथ के नेतृत्व में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कुमाऊं रेजिमेंट ने सियाचिन पर हमला बोल दिया। ऑपरेशन को नाम मिला ‘मेघदूत’। इस समय सियाचिन का इलाका बर्फ से ढका होता है। पाकिस्तानी आर्मी हाड़ कपा देने वाली इस ठंडक से बचने के लिए चौकियों को छोड़ बेस कैंप में लौट जाती थी। भारत ने इस मौके का फायदा उठाया और सर्दियों के आखिरी दिनों में इन चौकियों पर कब्जा कर लिया।

लेफ्टिनेट जनरल प्रेम नाथ इस बात को अच्छे से जानते थे। उनके नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट ने बिना किसी विरोध के पकिस्तान की लगभग 2600 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्ज़ा कर लिया।

इसके साथ ही जून 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरावाले से भी मुक्ति मिल गई। इसके बाद पीएम इंदिरा गांधी की हत्या हुई और देश सिख दंगों की चपेट में आ गया।

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नानावटी जांच आयोग

पूर्व की एनडीए सरकार ने दंगों की जांच के लिए नानावटी जांच आयोग बनाया था। इस आयोग ने दिल्ली छावनी व पुल बंगश इलाकों में हुई हत्याओं की जांच दोबारा करने की सिफारिश की। जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने जांच के बाद इन मामलों में 2010 में कड़कड़डूमा कोर्ट में दो आरोप पत्र दाखिल किए थे।

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